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भारत में लाखों मजदूर रोज़ी-रोटी कमाने के लिए खदानों, पत्थर तोड़ने वाली फैक्ट्रियों और निर्माण स्थलों पर काम करते हैं, लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं होता कि वे धीरे-धीरे मौत की ओर बढ़ रहे हैं। सिलिका धूल के लंबे समय तक संपर्क में रहने से होने वाली जानलेवा बीमारी 'सिलिकोसिस' मजदूरों के लिए किसी धीमे ज़हर से कम नहीं है।
क्या है सिलिकोसिस?
सिलिकोसिस एक गंभीर फेफड़ों की बीमारी है, जो तब होती है जब कोई व्यक्ति लंबे समय तक सिलिका (Quartz) की बारीक धूल को सांस के साथ अंदर लेता है। यह धूल फेफड़ों में जम जाती है और धीरे-धीरे उन्हें नष्ट कर देती है। इस बीमारी के लक्षणों में सांस फूलना, सीने में दर्द, लगातार खांसी, कमजोरी और गंभीर मामलों में मृत्यु भी शामिल है।
भारत में सिलिकोसिस का भयावह असर
देश में हर साल करीब 10 लाख मजदूर इस जहरीली धूल के संपर्क में आते हैं, जिनमें से 50,000 से अधिक लोग सिलिकोसिस से प्रभावित होते हैं। सबसे ज्यादा खतरा निम्नलिखित क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों को है:
खदानों में काम करने वाले मजदूर
पत्थर तोड़ने (Stone Crushing) वाले श्रमिक
कांच (Glass) और चीनी मिट्टी (Ceramic) उद्योग में कार्यरत कर्मचारी
निर्माण कार्य (Construction), ईंट-भट्ठों और सीमेंट उद्योग में मजदूरी करने वाले श्रमिक
ये वही मजदूर हैं, जिनके श्रम पर देश की बुनियादी संरचना खड़ी होती है, लेकिन दुर्भाग्यवश, इन्हीं की ज़िंदगी का कोई मोल नहीं।
सरकार और उद्योग जगत की निष्क्रियता
भारत में "Factories Act, 1948" जैसे कानून तो मौजूद हैं, लेकिन ये केवल संगठित क्षेत्र तक सीमित हैं। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की स्थिति बदतर बनी हुई है। 1995 में WHO और ILO ने 2030 तक सिलिकोसिस को खत्म करने का लक्ष्य रखा था, लेकिन भारत में इस दिशा में बहुत धीमी प्रगति हुई है।
हालांकि, गुजरात सरकार ने कुछ सकारात्मक कदम उठाए हैं:
✔ मुफ्त स्वास्थ्य जांच और इलाज
✔ जागरूकता अभियान
✔ विशेष स्वास्थ्य इकाइयों की स्थापना
✔ NGOs के सहयोग से खदानों की निगरानी
लेकिन ये उपाय अभी भी सीमित क्षेत्रों तक ही सीमित हैं, जबकि यह समस्या पूरे देश में फैली हुई है।
सिलिकोसिस की भयावहता को देखते हुए, इसे रोकने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने आवश्यक हैं:
🔹 नियमित स्वास्थ्य जांच: हर मज़दूर का सिलिका एक्सपोज़र टेस्ट अनिवार्य किया जाए।
🔹 धूल नियंत्रण तकनीक: आधुनिक मशीनों और गीले कटिंग सिस्टम का उपयोग किया जाए।
🔹 मुआवजा और बीमा योजना: सिलिकोसिस से पीड़ित हर मजदूर को आर्थिक सहायता और स्वास्थ्य बीमा मिले।
🔹 सख्त कानून और निगरानी: केवल कागज़ों पर नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर कार्यान्वयन हो।
🔹 'सिलिकोसिस हेल्थ बोर्ड' का गठन: हर राज्य में इस बीमारी की रोकथाम और पीड़ितों की देखभाल के लिए विशेष स्वास्थ्य बोर्ड बनाया जाए।
सरकार की जिम्मेदारी और मजदूरों का भविष्य
यदि सरकार और उद्योग जगत इस गंभीर समस्या को गंभीरता से नहीं लेते, तो आने वाले वर्षों में लाखों मजदूर इस "धीमी मौत" का शिकार होते रहेंगे। मजदूरों के अधिकारों और उनके स्वास्थ्य की सुरक्षा को प्राथमिकता देना आवश्यक है, ताकि वे सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन जी सकें।भारत में विकास और उद्योगों की प्रगति जरूरी है, लेकिन यह उन मजदूरों की कीमत पर नहीं होनी चाहिए जो इनकी नींव रखते हैं। अब समय आ गया है कि सरकार, उद्योग जगत और समाज मिलकर इस अनदेखी त्रासदी को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाएं।
Baten UP Ki Desk
Published : 24 March, 2025, 7:54 pm
Author Info : Baten UP Ki