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अगर किसी नेता या अधिकारी के घर से बोरी भरकर नोट मिलते, तो मीडिया में भूचाल आ जाता, सोशल मीडिया पर हंगामा मच जाता! लेकिन जब किसी जज के घर से ऐसा कुछ निकलता है, तो मामला अलग तरीके से देखा जाता है। यही से फिर उठता है NJAC (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) एक्ट का मुद्दा, जिसे 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। अब, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर इसकी चर्चा कर इस बहस को हवा दे दी है।
कैसे होती है जजों की नियुक्ति?
भारत में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति कॉलेजियम सिस्टम के जरिए होती है। मजे की बात यह है कि इस कॉलेजियम सिस्टम का संविधान में कोई जिक्र नहीं है, और न ही इसे किसी कानून के तहत बनाया गया था। यह एक ऐसा सिस्टम है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खुद के फैसलों के आधार पर तैयार किया और यह सालों से लागू है।
कॉलेजियम सिस्टम कैसे काम करता है?
✅ सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम: इसमें मुख्य न्यायाधीश (CJI) और चार वरिष्ठ जज होते हैं।
✅ हाईकोर्ट कॉलेजियम: इसमें हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठ जज होते हैं।
✅ नियुक्ति प्रक्रिया: यही जज तय करते हैं कि नए जज कौन बनेंगे और किनका तबादला होगा।
✅ सरकार की भूमिका: सरकार सिर्फ इन नामों को मंजूरी दे सकती है, लेकिन असल फैसला जज ही लेते हैं।
NJAC: क्या था यह कानून?
NJAC यानी National Judicial Appointments Commission (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग)। यह एक कानून था, जिसे 2014 में संसद में पारित किया गया था। इसका मकसद था कॉलेजियम सिस्टम को हटाकर जजों की नियुक्ति को ज्यादा पारदर्शी और जवाबदेह बनाना।
NJAC में कौन-कौन शामिल था?
🔹 मुख्य न्यायाधीश (CJI)
🔹 दो वरिष्ठतम जज
🔹 कानून मंत्री
🔹 दो प्रतिष्ठित लोग (जिन्हें प्रधानमंत्री, CJI और विपक्ष के नेता मिलकर चुनते)
मतलब, जजों की नियुक्ति केवल जज ही नहीं, बल्कि सरकार और बाहरी विशेषज्ञों की निगरानी में होती।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों किया NJAC को खारिज?
2015 में सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 के बहुमत से इस एक्ट को असंवैधानिक घोषित कर दिया। कोर्ट का तर्क था कि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है, क्योंकि सरकार को जजों की नियुक्ति में दखल देने का अधिकार मिल सकता था। इसके बाद फिर से पुराना कॉलेजियम सिस्टम लागू हो गया, जिसमें जज ही जजों की नियुक्ति का फैसला करते हैं।
अब क्यों उठ रही है फिर से NJAC की मांग?
अब आगे क्या?
सवाल यही है कि क्या भारत में जजों की नियुक्ति का सिस्टम पारदर्शी होना चाहिए या न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए कॉलेजियम सिस्टम ही बेहतर है? NJAC को वापस लाने की मांग फिर से तेज हो रही है, लेकिन क्या सरकार इसे दोबारा लागू करने की कोशिश करेगी या फिर से सुप्रीम कोर्ट इसे खारिज कर देगा? यह देखना दिलचस्प होगा।
Baten UP Ki Desk
Published : 28 March, 2025, 5:56 pm
Author Info : Baten UP Ki