मार्च अभी पूरा भी नहीं हुआ है, लेकिन देश के प्रमुख जलाशयों का जल स्तर तेजी से गिरने लगा है। केंद्रीय जल आयोग (CWC) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, देश के अधिकांश बड़े जलाशयों में पानी उनकी कुल क्षमता के मुकाबले 45% तक कम हो गया है। वहीं, मौसम विभाग ने मार्च से मई के बीच भीषण गर्मी की चेतावनी दी है, जिससे हालात और गंभीर हो सकते हैं।
जलाशयों का घटता जलस्तर: बढ़ती गर्मी और बढ़ती चिंता
देश के जलाशय न केवल सिंचाई के लिए बल्कि ग्रामीण और शहरी जल आपूर्ति के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। लेकिन लगातार बढ़ते तापमान और अत्यधिक जल दोहन के कारण जल संकट गहराता जा रहा है। CWC की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 155 प्रमुख जलाशयों में फिलहाल केवल 8,070 करोड़ क्यूबिक मीटर (BCM) पानी बचा है, जबकि इनकी कुल क्षमता 18,080 करोड़ क्यूबिक मीटर है।
हिमाचल और पंजाब में जल संकट सबसे गहरा
देश के विभिन्न क्षेत्रों में जलाशयों की स्थिति अलग-अलग है, लेकिन उत्तर भारत में हालात सबसे खराब हैं।
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उत्तर क्षेत्र: जलाशयों में कुल क्षमता का मात्र 25% पानी बचा है। पंजाब, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के 11 प्रमुख जलाशयों में पानी की भारी कमी देखी जा रही है।
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हिमाचल प्रदेश: सामान्य से 36% कम जल उपलब्धता।
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पंजाब: जलाशयों में 45% तक पानी की कमी।
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अन्य क्षेत्र:
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पश्चिमी क्षेत्र – 55% क्षमता
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मध्य क्षेत्र – 49% क्षमता
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पूर्वी क्षेत्र – 44% क्षमता
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कृषि पर बड़ा संकट: फसल उत्पादन पर गहरा असर
भारत में पानी का सबसे अधिक उपयोग खेती में होता है। लेकिन जलाशयों का घटता जलस्तर किसानों के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
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देश के कई हिस्सों में तापमान पहले ही सामान्य से अधिक हो चुका है।
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मानसून आने में अभी दो महीने से अधिक समय बाकी है।
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ऐसे में रबी और खरीफ के बीच उगाई जाने वाली फसलों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
20 में से 14 नदी घाटियों में पानी की भारी कमी
देश की 20 प्रमुख नदी घाटियों में से 14 में जल भंडारण उनकी क्षमता के मुकाबले आधे से भी कम रह गया है।
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गंगा नदी: अपनी सक्रिय क्षमता के मात्र 50% पर।
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गोदावरी नदी: 48% जल भंडारण।
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नर्मदा नदी: 47% जल उपलब्धता।
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कृष्णा नदी: केवल 34% पानी शेष।
जीवन और अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा गहरा प्रभाव
भारत की नदियां और जलाशय केवल पानी का स्रोत नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की जीवनरेखा हैं। गिरता जलस्तर कई गंभीर प्रभाव डाल सकता है:
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सिंचाई संकट: कृषि उत्पादन में भारी गिरावट का खतरा।
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घरेलू जल आपूर्ति: शहरों और गांवों में पेयजल संकट गहराएगा।
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औद्योगिक गतिविधियों पर असर: पानी की कमी से कई उद्योग प्रभावित होंगे।
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रोजगार पर प्रभाव: जल संकट से मछली पालन, पर्यटन और अन्य जल आधारित रोजगार भी प्रभावित होंगे।
समाधान क्या हो सकता है?
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वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा देना।
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कृषि में जल-संरक्षण तकनीकों का उपयोग।
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अत्यधिक जल दोहन को रोकने के लिए सख्त नियम।
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स्थानीय स्तर पर जल प्रबंधन रणनीति अपनाना।
अगर समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले महीनों में हालात और बिगड़ सकते हैं। जल की हर बूंद कीमती है, इसे बचाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।