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भारत की राजनीति में एक बड़ा बदलाव होने की संभावना है, क्योंकि 2026 में होने वाला परिसीमन लोकसभा और विधानसभा सीटों के नए स्वरूप को निर्धारित करेगा। आखिरी बार 1971 की जनसंख्या के आधार पर परिसीमन किया गया था, लेकिन उसके बाद 1976 में इंदिरा गांधी सरकार ने इस प्रक्रिया पर रोक लगा दी। बाद में, 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इस रोक को 2026 तक बढ़ा दिया। अब, जब 2026 नजदीक है, तो यह बदलाव तय माना जा रहा है।
परिसीमन का मतलब क्या है?
परिसीमन का अर्थ होता है लोकसभा और विधानसभा सीटों का नए सिरे से निर्धारण, ताकि हर सीट पर लगभग समान संख्या में मतदाता हों। अभी देश में यह असंतुलन साफ़ नजर आता है, जहां कुछ सीटों पर 10 लाख तो कुछ पर 30 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। इसी असमानता को दूर करने के लिए परिसीमन किया जाता है।
लोकसभा सीटों में संभावित बढ़ोतरी
अगर 20 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सीट का नया फॉर्मूला लागू होता है, तो भारत की लोकसभा सीटों की संख्या 543 से बढ़कर 753 हो सकती है। इस बदलाव का सबसे ज्यादा लाभ उत्तर भारतीय राज्यों को मिलेगा, खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान को।
उत्तर प्रदेश की मौजूदा 80 सीटें बढ़कर 128 हो सकती हैं।
बिहार की सीटें 40 से बढ़कर 70 हो सकती हैं।
राजस्थान और मध्य प्रदेश की लोकसभा सीटों में भी बड़ी बढ़ोतरी संभव है।
इसका सीधा असर इन राज्यों की राजनीतिक ताकत पर पड़ेगा, जिससे राष्ट्रीय राजनीति की दिशा और दशा बदल सकती है।
दक्षिण भारतीय राज्यों की चिंता
परिसीमन के नए नियमों को लेकर दक्षिण भारतीय राज्यों में चिंता बढ़ गई है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने इस पर नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि अगर यह फॉर्मूला लागू होता है, तो तमिलनाडु की लोकसभा सीटें 8 तक घट सकती हैं। यही स्थिति केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के लिए भी हो सकती है। दक्षिण भारतीय राज्य, जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में बेहतर कार्य किया है, अब खुद को नुकसान में देख रहे हैं। इन राज्यों का तर्क है कि विकास, शिक्षा और आर्थिक योगदान को भी परिसीमन के मानकों में शामिल किया जाना चाहिए, न कि केवल जनसंख्या आधारित फॉर्मूले को अपनाया जाना चाहिए।
क्या यह देश के संघीय ढांचे के लिए चुनौती बनेगा?
इस मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक बहस तेज हो गई है। उत्तर भारतीय राज्यों को अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिलने से सत्ता संतुलन में बड़ा बदलाव आ सकता है। वहीं, दक्षिण भारतीय राज्य इसे अपने खिलाफ एक अन्यायपूर्ण निर्णय मान रहे हैं। आने वाले महीनों में इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों और राज्यों के बीच खींचतान और तेज़ हो सकती है। 2026 का परिसीमन भारत की राजनीति का नक्शा बदलने वाला है, यह तय है – बस देखना यह होगा कि यह बदलाव किस दिशा में जाता है।
Baten UP Ki Desk
Published : 27 March, 2025, 5:04 pm
Author Info : Baten UP Ki