केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बहुप्रतीक्षित 'एक देश, एक चुनाव' (One Nation, One Election) विधेयक को मंजूरी दे दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस महत्वाकांक्षी पहल को संसद में पेश करने का रास्ता साफ हो गया है। इससे पहले सितंबर 2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति ने इस मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
क्या है 'एक देश, एक चुनाव' का विचार?
'एक देश, एक चुनाव' का तात्पर्य है कि लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। इसका उद्देश्य बार-बार चुनावों पर होने वाले खर्च को कम करना और प्रशासनिक कार्यों में बाधाओं को समाप्त करना है। इस विचार की शुरुआत 2019 में प्रधानमंत्री मोदी ने 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर की थी। इसके बाद से इस मुद्दे पर कई बार चर्चा हो चुकी है। 2024 में भी प्रधानमंत्री ने इसे राष्ट्रहित में एक महत्वपूर्ण कदम बताया था।
इतिहास में कब हुए थे एक साथ चुनाव?
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पहले चार आम चुनाव:
1951-52, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए गए थे।
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1968-69 में बदलाव:
इस समय कई राज्यों की विधानसभाएं समय से पहले भंग हो गईं, जिसके कारण एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया बाधित हो गई।
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जस्टिस एके सीकरी की राय:
- 1960 के दशक के बाद क्षेत्रीय दलों की वृद्धि से यह परंपरा प्रभावित हुई।
- संविधान की धारा 356 (राज्य सरकारों को बर्खास्त करने का प्रावधान) के इस्तेमाल ने भी अलग-अलग समय पर चुनाव कराने की आवश्यकता बढ़ाई।
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वर्तमान स्थिति:
1967 के बाद अब तक देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होते रहे हैं।
क्यों है 'एक देश, एक चुनाव' की जरूरत?
- आर्थिक बचत: विधि आयोग की रिपोर्ट (2018) के अनुसार, एक साथ चुनाव होने से चुनावी खर्च में बड़ी कटौती हो सकती है।
- प्रशासनिक सहूलियत: बार-बार आचार संहिता लागू होने से विकास कार्यों पर जो प्रभाव पड़ता है, वह समाप्त हो जाएगा।
- राजनीतिक स्थिरता: इससे सरकारों को अपने पूरे कार्यकाल में नीतियां लागू करने का पर्याप्त समय मिलेगा।
कोविंद समिति की सिफारिशें-
रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि 'एक देश, एक चुनाव' को दो चरणों में लागू किया जाए:
- पहला चरण: लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं।
- दूसरा चरण: स्थानीय निकाय चुनाव (पंचायत और नगर पालिका) आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर कराए जाएं।
इसके लिए एक समान मतदाता सूची तैयार करने और प्रशासनिक तंत्र को मजबूत करने की बात कही गई है।
कैसे होगा लागू?
इस पहल को लागू करने के लिए संविधान में कम से कम पांच संशोधन जरूरी हैं। इनमें शामिल हैं:
- अनुच्छेद 83 और 85 (लोकसभा की अवधि और भंग करने की प्रक्रिया)।
- अनुच्छेद 172 और 174 (राज्य विधानसभाओं की अवधि और विघटन)।
- अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन का उपयोग)।
संसद में इसे पारित करने के साथ ही सभी राज्यों की सहमति अनिवार्य होगी।
सरकार और विपक्ष का रुख-
भाजपा इस पहल को राष्ट्रहित में एक महत्वपूर्ण कदम बता रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे देश के विकास और लोकतंत्र की मजबूती के लिए एक बड़ा कदम कहा है। वहीं, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि यह लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है।
चुनाव आयोग की भूमिका-
मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) राजीव कुमार ने कहा है कि चुनाव आयोग एक साथ चुनाव कराने के लिए तैयार है, बशर्ते इसके लिए संसद और संबंधित राज्य विधानसभाओं से मंजूरी मिल जाए।
फायदे और चुनौतियां क्या हैं?
फायदे:
- चुनावी खर्च में कमी।
- प्रशासनिक तंत्र पर कम दबाव।
- विकास कार्यों में तेजी।
- मतदाताओं की भागीदारी में वृद्धि।
चुनौतियां:
- राज्यों और केंद्र के बीच सहमति बनाना।
- संवैधानिक संशोधन की जटिलता।
- चुनावी मशीनरी का बड़ा प्रबंधन।
एक देश, एक चुनाव: क्यों उठ रही है बहस?
कैसे तय होगी आगे की राह?
एक साथ चुनाव कराना भारतीय लोकतंत्र में एक बड़ा बदलाव होगा। इसके लिए केंद्र सरकार को राज्यों, राजनीतिक दलों और अन्य हितधारकों के साथ व्यापक चर्चा करनी होगी। हालांकि, यह कदम लोकतंत्र और संघीय ढांचे को कैसे प्रभावित करेगा, यह समय ही बताएगा। 'एक देश, एक चुनाव' न केवल आर्थिक और प्रशासनिक रूप से फायदेमंद हो सकता है, बल्कि यह देश में चुनावी प्रक्रिया को अधिक व्यवस्थित और स्थिर बना सकता है। लेकिन इसे लागू करने के लिए व्यापक राजनीतिक और सामाजिक सहमति जरूरी होगी।