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तपेदिक (टीबी) से लड़ाई में भारत की रणनीति ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भारत की पोषण-आधारित उपचार पद्धति को मान्यता दी है, जिसमें सिर्फ दवाओं पर निर्भर रहने के बजाय मरीजों को पौष्टिक आहार भी मुहैया कराया जाता है।
पोषण पैकेज ने घटाया टीबी का खतरा
यह मॉडल झारखंड के 10 हज़ार से अधिक परिवारों पर आज़माया गया, जहां नतीजे चौंकाने वाले रहे। अध्ययन में शामिल करीब 2,800 टीबी मरीजों में पौष्टिक आहार मिलने से टीबी की मौत का जोखिम 60% तक घट गया, जबकि परिजनों में संक्रमण फैलने की आशंका 39% तक कम हो गई।
अध्ययन से सामने आए नतीजे
10,345 परिवारों को अध्ययन में शामिल किया गया।
मरीजों को दाल, चावल, तेल और अंडे जैसे पोषण पैकेज उपलब्ध कराए गए।
सिर्फ दो महीने में मरीजों का औसतन 5% वजन बढ़ा।
बीमारी के दोबारा सक्रिय होने के मामले बेहद कम पाए गए।
कुपोषण और टीबी का गहरा रिश्ता
विशेषज्ञों का मानना है कि गरीबी और कुपोषण टीबी के सबसे बड़े कारक हैं। जब शरीर को पर्याप्त पोषण नहीं मिलता तो प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है, और टीबी का बैक्टीरिया आसानी से सक्रिय हो जाता है। आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल ने अनुसार—“भारत के अनुभव से पूरी दुनिया सीखेगी कि दवाओं के साथ सही पोषण कितना जरूरी है। हमारी मेहनत का लाभ अब वैश्विक स्तर पर मरीजों को मिलेगा।”
भारत का लक्ष्य – 2025 तक टीबी मुक्त
भारत सरकार ने संकल्प लिया है कि 2025 तक देश को टीबी मुक्त किया जाएगा, जबकि डब्ल्यूएचओ का लक्ष्य वर्ष 2030 है। झारखंड का यह सफल प्रयोग इस दिशा में एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।
नतीजे क्यों अहम हैं?
भारत दुनिया के टीबी मरीजों का सबसे बड़ा हिस्सा झेल रहा है।
पोषण + दवा मॉडल अपनाने से मरीज जल्दी ठीक होते हैं।
डब्ल्यूएचओ ने सभी देशों को अपनी नीति में बदलाव की सलाह दी है।
भारत की यह पहल न केवल देश के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए उम्मीद की नई किरण बन चुकी है। अगर यही मॉडल बड़े पैमाने पर लागू हुआ, तो टीबी को हराने का सपना जल्द ही हकीकत बन सकता है।
Baten UP Ki Desk
Published : 19 August, 2025, 12:58 pm
Author Info : Baten UP Ki