आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण शोध में सफलता हासिल की है, जो कैंसर और एचआइवी जैसी गंभीर बीमारियों के कारगर इलाज की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है। इस शोध ने चिकित्सा जगत में नई उम्मीदें जगाई हैं और भविष्य में इन बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को राहत मिल सकती है।
कैंसर और एचआइवी संभव होगा इलाज-
आईआईटी कानपुर के जैविक विज्ञान और जैव इंजीनियरिंग विभाग ने कोशिकाओं में पाए जाने वाले ऐसे डफी एंटीजन रिसेप्टर की पूरी संरचना को खोज निकाला है जो कैंसर, मलेरिया और एचआइवी जैसी विभिन्न बीमारियों के लिए जिम्मेदार कारकों के लिए प्रवेश द्वार की भूमिका निभाता है। इसकी पहचान करने से अब रोगों को शरीर में प्रवेश करने से रोकने के उपाय किए जा सकेंगे। आईआईटी की इस खोज को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका सेल ने प्रकाशित किया है।
कैंसर के इलाज में सफलता-
आईआईटी कानपुर की इस महत्वपूर्ण खोज को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका 'सेल' में प्रकाशित किया गया है। जैव इंजीनियरिंग विभाग ने बताया कि दक्षिण अफ्रीका के कुछ लोगों में डफी एंटीजन रिसेप्टर नहीं पाया जाता है। इस जानकारी के आधार पर भविष्य में यह जानने की कोशिश की जाएगी कि कैंसर या अन्य घातक रोगों के संक्रमण को किस तरह मानव शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करने से रोका जा सकता है।
दवा बनाने में मिलेगी मदद-
मानव शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं और अन्य कोशिकाओं की सतह पर पाया जाने वाला डफी एंटीजन रिसेप्टर प्रोटीन कोशिका में प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है, जो मलेरिया परजीवी प्लास्मोडियम विवैक्स और जीवाणु स्टैफिलोकोकस आरियस जैसे विनाशकारी रोगजनकों द्वारा संक्रमण को फैलाने में मदद करता है। विभाग के अनुसार दुनियाभर में कई सालों से डफी एंटीजन रिसेप्टर के रहस्यों को जानने के लिए शोध हो रहा है। यह जानकारी नई एंटीबायोटिक दवाओं और एंटीमलेरियल सहित उन्नत दवाओं को बनाने में मददगार साबित होगी।
एचआइवी के इलाज में नई उम्मीदें-
एचआइवी के इलाज के लिए भी यह तकनीक एक बड़ा कदम है। शोधकर्ताओं ने एक ऐसी दवा विकसित की है, जो एचआइवी वायरस को प्रभावी ढंग से निशाना बनाती है और उसे फैलने से रोकती है। यह दवा शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती है और एचआइवी संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट करती है। इस तकनीक के माध्यम से एचआइवी के मरीजों को लंबे समय तक स्वस्थ जीवन जीने का मौका मिल सकता है।