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क्या होगा जब अस्पतालों को बिजली न मिले? इस रिपोर्ट ने जताई गंभीर चेतावनी!

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भारत ने पेरिस समझौते में जलवायु परिवर्तन से निपटने और हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने का वादा किया था। खासतौर पर स्वास्थ्य क्षेत्र को "क्लाइमेट-स्मार्ट" बनाने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए। इसके बावजूद हालिया सर्वेक्षण यह साफ़ करता है कि जमीनी हकीकत अभी भी चिंताजनक है।

623 अस्पतालों में सिर्फ 2% ने अपनाई सौर ऊर्जा

राष्ट्रीय टास्क फोर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 18 राज्यों में किए गए सर्वेक्षण में शामिल 623 अस्पतालों में से केवल 2 फीसदी अस्पताल ही सौर ऊर्जा पर चल रहे हैं। वहीं 87 फीसदी अस्पताल अब भी पूरी तरह ग्रिड बिजली पर निर्भर हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि हरित ऊर्जा को अपनाने की रफ्तार बेहद धीमी है।

सरकार की पहल और अधूरी तैयारियां

केंद्र सरकार ने फरवरी 2023 में 76 पन्नों की गाइडलाइन जारी की थी, फिर जून 2024 में “क्लाइमेट-स्मार्ट हॉस्पिटल” पर राष्ट्रीय सर्वे भी लॉन्च किया गया। इतना ही नहीं, अक्तूबर 2024 में तत्कालीन स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. अतुल गोयल ने सभी सरकारी अस्पतालों में दिसंबर 2024 तक सौर संयंत्र लगाने का आदेश दिया था। इसके बावजूद रिपोर्ट बताती है कि अस्पतालों की ऊर्जा खपत तेजी से बढ़ रही है, लेकिन सौर ऊर्जा और अन्य हरित विकल्पों का विस्तार नगण्य है। यानी नीति और अमल के बीच अब भी बड़ा अंतर है।

क्यों ज़रूरी है अस्पतालों में हरित ऊर्जा?

अस्पताल 24 घंटे चलने वाली सुविधाएं हैं, जिनकी बिजली खपत अन्य संस्थानों की तुलना में कहीं ज्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक:

  • सिर्फ सरकारी अस्पतालों में एक दिन की खपत लगभग 24 लाख किलोवाट है।

  • पूरे देश में सिर्फ अस्पतालों की मांग हर साल 8,000 मेगावॉट तक बढ़ रही है।

  • आने वाले वर्षों में यह मांग 40,000 मेगावॉट तक पहुंच सकती है।

यह स्थिति दोहरी चुनौती खड़ी करती है। एक ओर स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती मांग, दूसरी ओर बिजली उत्पादन में कोयले जैसी पारंपरिक ऊर्जा पर निर्भरता। साफ है कि अगर अस्पतालों ने तेजी से हरित ऊर्जा नहीं अपनाई, तो आने वाले समय में ऊर्जा संकट और कार्बन उत्सर्जन दोनों बढ़ेंगे।

सरकारी और निजी अस्पतालों की स्थिति

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कुल 2.44 लाख अस्पताल हैं—जिनमें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, डिस्पेंसरी, जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज शामिल हैं। इनका बड़ा हिस्सा अब भी ग्रिड बिजली पर निर्भर है। चौंकाने वाली बात यह है कि निजी अस्पताल, जिनकी हिस्सेदारी 60% से ज्यादा है, वहां भी नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग बेहद सीमित है।

क्या है समाधान और आगे की राह?

टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट में करीब एक दर्जन सिफारिशें की हैं। इनमें प्रमुख हैं:

  • सभी अस्पतालों में सौर संयंत्रों की अनिवार्य स्थापना।

  • ऊर्जा दक्षता सूचकांक (EPI) को अस्पतालों के परफॉर्मेंस मूल्यांकन का हिस्सा बनाना।

  • नई अस्पताल बिल्डिंग्स में ग्रीन बिल्डिंग मानकों का पालन।

  • राज्य सरकारों को आर्थिक प्रोत्साहन (Incentives) और निजी क्षेत्र को टैक्स लाभ।

हरित ऊर्जा से ही सुरक्षित होगा स्वास्थ्य तंत्र

अस्पतालों को हरित ऊर्जा से जोड़ना सिर्फ पर्यावरणीय आवश्यकता नहीं, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिरता का भी सवाल है। अगर भारत आने वाले वर्षों में अस्पतालों को “क्लाइमेट-स्मार्ट” बनाने में सफल नहीं हुआ, तो यह न केवल पेरिस समझौते के लक्ष्यों पर असर डालेगा, बल्कि बढ़ती ऊर्जा मांग और कार्बन उत्सर्जन से स्वास्थ्य क्षेत्र ही सबसे बड़ा दबाव झेलेगा।

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