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टैरिफ वार के बीच भारत की बड़ी चाल, यूरेशिया संग बनेगा नया ट्रेड गेमचेंजर!

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अमेरिका के साथ टैरिफ को लेकर बढ़ते तनाव के बीच भारत अब अपनी व्यापारिक रणनीति में बड़ा मोड़ ले रहा है। बुधवार को भारत और यूरेशियन आर्थिक संघ (EAEU) के बीच मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर वार्ता औपचारिक रूप से शुरू हो गई है। इस कदम को केवल आर्थिक समझौते के रूप में नहीं देखा जा सकता, बल्कि यह भारत की दीर्घकालिक भू-राजनीतिक और व्यापारिक रणनीति का हिस्सा है।

क्यों अहम है यह समझौता?

भारत और अमेरिका के बीच पिछले कुछ वर्षों से टैरिफ और मार्केट एक्सेस को लेकर खींचतान चल रही है। अमेरिकी प्रशासन भारत के कुछ निर्यात उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की नीति अपनाए हुए है। ऐसे में भारत के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह अपने निर्यात बाजारों को सीमित न रखकर उन्हें विविध बनाए। ईएईयू के साथ एफटीए इसी दिशा में एक रणनीतिक कदम है। ईएईयू रूस, आर्मेनिया, बेलारूस, कजाकिस्तान और किर्गिस्तान का समूह है, जिसकी संयुक्त जीडीपी लगभग 6.5 ट्रिलियन डॉलर है। यह समूह भारत को नई खपत क्षमता और वैकल्पिक व्यापारिक गलियारों तक पहुंच उपलब्ध कराएगा।

क्या होगी भारत-ईएईयू व्यापार की मौजूदा तस्वीर

2024 में भारत और ईएईयू के बीच 69 अरब डॉलर का व्यापार हुआ, जो 2023 की तुलना में 7% ज्यादा है। आंकड़े यह दर्शाते हैं कि भारत का इस ब्लॉक के साथ व्यापार पहले से ही बढ़ रहा है। अगर एफटीए होता है, तो भारत को कम टैरिफ, नए बाजार, निवेश में इजाफा और एमएसएमई के लिए अवसर मिलने की संभावना है।

क्या हैं इसके भू-राजनीतिक दृष्टि से मायने?

यह समझौता केवल व्यापार तक सीमित नहीं रहेगा। अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ मौजूदा तनाव, चीन की बढ़ती आर्थिक ताकत और रूस के पश्चिम से अलग-थलग पड़ने के बीच भारत-ईएईयू साझेदारी को भू-राजनीतिक संतुलन के तौर पर भी देखा जा रहा है। भारत के लिए रूस एक लंबे समय से विश्वसनीय रणनीतिक साझेदार रहा है। ऊर्जा सुरक्षा से लेकर रक्षा सहयोग तक, दोनों देशों के बीच गहरी समझ है। अब आर्थिक सहयोग को नए स्तर पर ले जाना भारत की विविधीकृत कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा है।

एफटीए से क्या हो सकता है संभावित लाभ?

  1. निर्यात वृद्धि – भारत के फार्मा, आईटी, मशीनरी और कृषि उत्पादों को नए बाजार मिलेंगे।

  2. ऊर्जा सुरक्षा – रूस और कजाकिस्तान जैसे देशों से ऊर्जा आयात पर बेहतर शर्तें संभव होंगी।

  3. एमएसएमई को बढ़ावा – छोटे और मध्यम उद्योगों के लिए कम टैरिफ का सीधा फायदा।

निवेश और तकनीकी सहयोग – भारत और यूरेशिया के बीच उद्योग, शिक्षा और बुनियादी ढांचे में साझेदारी की गुंजाइश।

चुनौतियाँ भी कम नहीं

हालांकि एफटीए को लेकर कई अवसर हैं, लेकिन चुनौतियाँ भी मौजूद हैं। रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध, लॉजिस्टिक चुनौतियाँ, और भारत को ईएईयू देशों में स्थानीय प्रतिस्पर्धा से जूझना होगा। इसके अलावा, एफटीए पर बातचीत में टैरिफ कटौती, नियमों का सामंजस्य और व्यापार संतुलन जैसी जटिलताएँ सामने आ सकती हैं।

यूरेशिया डील से अमेरिका पर दबाव बढ़ाएगा भारत?

अमेरिका के साथ टैरिफ वार ने भारत को नए विकल्प खोजने के लिए मजबूर किया है। ईएईयू के साथ एफटीए की शुरुआत इसी रणनीति का हिस्सा है। अगर यह समझौता आगे बढ़ता है, तो भारत न केवल नए बाजारों तक पहुंचेगा बल्कि अपने भू-राजनीतिक और आर्थिक हितों को भी मजबूत करेगा। यह कहना गलत नहीं होगा कि यूरेशिया भारत की टैरिफ डिप्लोमेसी का नया ब्रह्मास्त्र बन सकता है।

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