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इंडिगो ने उड़ाई मुनाफे की ऊँची उड़ान, घाटे के बादलों में क्यों फँस गई एअर इंडिया?

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भारतीय एविएशन सेक्टर एक बार फिर से सुर्खियों में है। लोकसभा में नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा साझा किए गए आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 2024-25 एयरलाइंस कंपनियों के लिए मिला-जुला साबित हुआ। जहां इंडिगो ने अभूतपूर्व लाभ दर्ज किया, वहीं एअर इंडिया और एअर इंडिया एक्सप्रेस को भारी घाटे का सामना करना पड़ा।

घाटे का बोझ: टाटा समूह की दोहरी चुनौती

टाटा समूह के स्वामित्व वाली एअर इंडिया और उसकी सहायक कम लागत वाली शाखा, एअर इंडिया एक्सप्रेस ने मिलकर ₹9,568.4 करोड़ का कर-पूर्व घाटा दर्ज किया। खास बात यह है कि लंबे समय तक लाभ में रहने वाली एअर इंडिया एक्सप्रेस ने ही सबसे अधिक घाटा—₹5,678.2 करोड़—दर्ज किया, जबकि एअर इंडिया को ₹3,890.2 करोड़ का नुकसान हुआ। यहां सवाल यह उठता है कि टाटा समूह के अधिग्रहण के बाद, जब दोनों कंपनियों में व्यापक पुनर्गठन और ब्रांडिंग पर काम किया गया, तब भी इतनी बड़ी वित्तीय गिरावट क्यों देखने को मिली?

दूसरी ओर इंडिगो की उड़ान

वहीं, इंडिगो ने इस अवधि में ₹7,587.5 करोड़ का कर-पूर्व लाभ दर्ज किया। यह आंकड़ा बताता है कि एक ही मार्केट में काम करने वाली कंपनियों के बीच संचालन दक्षता, लागत प्रबंधन और बाज़ार रणनीति में भारी अंतर है। इंडिगो ने न सिर्फ बाज़ार हिस्सेदारी बढ़ाई बल्कि वित्तीय अनुशासन भी बनाए रखा। इसके विपरीत, अपेक्षाकृत नई अकासा एयर को ₹1,983.4 करोड़ और पुरानी स्पाइसजेट को ₹58.1 करोड़ का घाटा हुआ। इससे यह स्पष्ट होता है कि इंडस्ट्री में नए खिलाड़ी और संघर्षरत एयरलाइंस अभी भी स्थिरता हासिल करने में नाकाम हैं।

कर्ज़ का दबाव

एक और अहम पहलू एयरलाइंस कंपनियों पर चढ़ा कर्ज़ है। एअर इंडिया का कर्ज़ ₹26,879.6 करोड़ तक पहुंच चुका है, जबकि इंडिगो का कर्ज़ इससे भी अधिक—₹67,088.4 करोड़—है। लेकिन यहां दिलचस्प विरोधाभास यह है कि भारी कर्ज़ के बावजूद इंडिगो लाभ में है, जबकि तुलनात्मक रूप से कम कर्ज़ वाली एअर इंडिया घाटे में है। यह अंतर दर्शाता है कि केवल कर्ज़ की मात्रा ही नहीं, बल्कि कर्ज़ प्रबंधन और नकदी प्रवाह (cash flow) की क्षमता ही किसी कंपनी की वित्तीय सेहत तय करती है।

व्यापक विश्लेषण: कहाँ है असली समस्या?

  • ऑपरेशनल लागत: एअर इंडिया और उसकी सहायक कंपनियों की लागत संरचना अब भी अपेक्षाकृत ऊँची है।

  • नेटवर्क पुनर्गठन: अंतरराष्ट्रीय और घरेलू रूट्स पर सही संतुलन स्थापित करने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

  • ब्रांड ट्रांज़िशन: अधिग्रहण और रीब्रांडिंग के बाद यात्रियों की धारणा बदलने में समय लग रहा है।

  • मार्केट शेयर: इंडिगो की आक्रामक रणनीति ने प्रतिस्पर्धियों के लिए जगह और सीमित कर दी है।

एयर इंडिया को घाटे से बाहर कैसे निकलेगी?

नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल ने स्पष्ट किया कि 1994 के बाद से भारतीय विमानन सेक्टर पूरी तरह नियंत्रण-मुक्त है। इसका अर्थ है कि सरकार एयरलाइंस के वित्तीय प्रबंधन में सीधे हस्तक्षेप नहीं करती। ऐसे में टाटा समूह को ही एअर इंडिया और एअर इंडिया एक्सप्रेस को घाटे से बाहर निकालने की ठोस रणनीति तैयार करनी होगी।

मुनाफे की उड़ान बनाम घाटे की गिरावट

भारत जैसे तेजी से बढ़ते एविएशन मार्केट में, जहां यात्री संख्या सालाना करोड़ों में है, एयरलाइंस कंपनियों के लिए अवसर भी बड़े हैं और जोखिम भी। अगर एअर इंडिया और उसकी सहायक कंपनियाँ परिचालन लागत घटाने, बेहतर वित्तीय अनुशासन लाने और ग्राहक अनुभव सुधारने में सफल होती हैं, तो आने वाले वर्षों में तस्वीर बदल सकती है।फिलहाल का संकेत साफ है—भारतीय एविएशन सेक्टर में मुनाफे की उड़ान और घाटे की गिरावट दोनों एक साथ मौजूद हैं। टाटा समूह के लिए यह चुनौती है कि वह एअर इंडिया को घाटे की खाई से निकालकर फिर से आसमान की बुलंदी तक पहुँचा सके।

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