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आज 18वीं लोकसभा सत्र का आज दूसरा दिन है ।पहले दिन सांसदों का शपथ ग्रहण समारोह हुआ। कल जिन सांसदों का शपथ ग्रहण नहीं हो पाया था उनका आज शपथ ग्रहण होगा। लोकसभा स्पीकर को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच तकरारा बढ़ गई है। NDA की ओर से ओम बिरला ने नामांकन दाखिल किया है। वहीं विपक्षी गठबंधन की तरफ से के. सुरेश को लोकसभा स्पीकर पद का उम्मीदवार बनाया गया। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 72 सालों बाद स्पीकर पद के लिए मतदान होगा।
इससे पहले कब हुआ था चुनाव?
15 मई 1952 को पहली लोकसभा के अध्यक्ष का चुनाव हुआ था। इस चुनाव में सत्ता पक्ष के जीवी मावलंकर उमीदवार थे। उनका मुकाबला शंकर शांतराम मोरे से हुआ था। मावलंकर के पक्ष में 394 वोट, जबकि 55 वोट उनके खिलाफ पड़े थे। इस तरह मावलंकर आजादी से पहले देश के पहले लोकसभा स्पीकर बने थे। फिर 1976 में जब देश मेंं आपात काल चल रहा था, उस समय भी लोकसभा के सभापति के लिए चुनाव हुआ था. 1976 में जगन्नाथ राव और बालीग्राम भगत बीच मुकाबला हुआ था। आजाद भारत में ये तीसरा मौका है जब पक्ष और विपक्ष के बीच आम सहमति ना हो पाने के कारण चुनाव होना तय हो गया है। इसके अलावा अब तक पक्ष और विपक्ष के बीच सहमति से स्पीकर बनता आया है।
विपक्ष की तरफ से के. सुरेश उम्मीदवार
लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच सहमति नहीं बन पाई सहमति बनाने के लिए केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे सहित अन्य विपक्ष के नेताओं से बात की थी, लेकिन बात नहीं बन पाई। कांग्रेस सांसद कोडिकुनिल सुरेश यानी के. सुरेश ने इस पद के लिए विपक्ष की ओर से नामांकन दाखिल किया। पिछली लोकसभा में अध्यक्ष रहे ओम बिरला ने एनडीए के उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल किया है।
कैसे होता है लोकसभा स्पीकर का चुनाव?
लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव संविधान के अनुच्छेद 93 के मुताबिक किया जाता है। सांसद, सदन के दो सांसदों को स्पीकर और डिप्टी स्पीकर चुनते है। लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव से एक दिन पहले सदस्यों को उम्मीदवारों को समर्थन का नोटिस जमा करना होता है। लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव साधारण बहुमत के जरिए होता है। यानी जिस उम्मीदवार को उस दिन लोकसभा में मौजूद आधे से ज्यादा सांसद वोट देते हैं, वह लोकसभा अध्यक्ष बनता है। 17वीं लोकसभा के दौरान डिप्टी स्पीकर का पद पूरे कार्यकाल में खाली रहा था। 18वीं लोकसभा के लिए पहले विपक्ष ने डिप्टी स्पीकर पद की मांग की थी, लेकिन बाद में स्पीकर पद के लिए भी उम्मीदवार उतार दिया।
के सुरेश के करियर पर एक नजर -
कांग्रेस पार्टी के नेता के.सुरेश 8वीं बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने सीपीएम के अरुण कुमार सीए को 10868 वोटों से हराया था। जून 1962 में जन्मे के. सुरेश पहली बार 27 साल की उम्र में सांसद चुने गए। 1989 में उन्होंने अदूर से जीत हासिल की । 1991, 1996 और 1999 में भी अदूर निर्वाचन क्षेत्र से जीतकर संसद पहुंचे। 1998 और 2004 में वह चुनाव हार गए। 2009 में के.सुरेश ने अपना निर्वाचन क्षेत्र बदला और मवेलीकारा से सांसद चुने गए। इसके बाद वह लगातार सभी चुनावों में इस सीट जीतते रहे। यूपीए-2 की मनमोहन सिंह सरकार में सुरेश केंद्रीय श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री रहे। 2024 में जीत के बाद उन्हें कांग्रेस की ओर से लोकसभा में सचेतक की जिम्मेदारी सौंपी गई है। के. सुरेश केरल कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष भी हैं और वह संगठन में बड़े पदों पर काम कर चुके हैं।
कितना महत्वपूर्ण है लोकसभा अध्यक्ष?
भारत में लोकसभा अध्यक्ष सभा का संवैधानिक और औपचारिक प्रमुख होता है। वह सभा का प्रमुख प्रवक्ता होता है। लोकसभा की कार्यवाही के संचालन का उत्तरदायित्व अध्यक्ष पर ही होता है। लोकसभा अध्यक्ष को संसद के अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन में आने वाली वास्तविक आवश्यकताओं और समस्याओं का समाधान करना पड़ता है। सदन का संचालन, प्रश्न और अभिलेख, ध्वनि मत, विभाजन, अविश्वास प्रस्ताव, मतदान और सदस्यों की अयोग्यता जैसे अहम मामले अध्यक्ष की शक्तियों में आते हैं।
Baten UP Ki Desk
Published : 25 June, 2024, 12:45 pm
Author Info : Baten UP Ki