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प्रियंका गांधी ने आज यानी 28 नवंबर को लोकसभा सांसद के रूप में शपथ ली, और इस शपथ ग्रहण ने एक ऐतिहासिक अध्याय की शुरुआत की है। वायनाड से चार लाख से ज्यादा मतों से जीतकर प्रियंका लोकसभा पहुंची हैं। नेहरू-गांधी परिवार की यह नई पीढ़ी अब संसद में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही है, जिससे इस परिवार की राजनीति में एक और महत्वपूर्ण कड़ी जुड़ी है। प्रियंका गांधी इस प्रतिष्ठित परिवार की 16वीं सदस्य हैं, जिन्होंने भारतीय संसद में कदम रखा, और उनके शपथ ग्रहण समारोह में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने उन्हें विधिवत शपथ दिलाई।
नेहरू-गांधी परिवार का भारतीय राजनीति में प्रभाव-
प्रियंका का संसद में प्रवेश इस बात का प्रतीक है कि नेहरू-गांधी परिवार का प्रभाव भारतीय राजनीति में अभी भी जीवित है, और उनकी उपस्थिति भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक स्थायी जगह रखती है। यह परिवार अब तक 71 वर्षों से भारतीय राजनीति का अभिन्न हिस्सा रहा है, और प्रियंका का कदम इसे एक नए दौर में प्रवेश कराता है।
नेहरू-गांधी परिवार और भारतीय संसद-
नेहरू-गांधी परिवार का भारतीय संसद से जुड़ाव 1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव से आरंभ हुआ था। जवाहरलाल नेहरू, जो भारत के पहले प्रधानमंत्री बने, इस परिवार के पहले सदस्य थे जिन्होंने लोकसभा में कदम रखा। इसके साथ ही, उनके साथी सदस्य विजयलक्ष्मी पंडित, उमा नेहरू, फिरोज गांधी और श्योराजवती नेहरू ने भी संसद में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। 1952 से लेकर आज तक, नेहरू-गांधी परिवार के कुल 16 सदस्य लोकसभा में चुने गए हैं, जिनमें से प्रत्येक ने भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य और उनका लोकसभा में योगदान
इस परिवार के सदस्य 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में संसद पहुंचे थे:
1957 में इस परिवार के तीन प्रमुख सदस्य—जवाहरलाल नेहरू, उमा नेहरू और फिरोज गांधी—ने अपनी सीटें बरकरार रखीं।
1962 में केवल जवाहरलाल नेहरू संसद में थे, और उनके निधन के बाद उनकी बहन विजयलक्ष्मी पंडित ने उपचुनाव में जीत हासिल की।
इस लोकसभा में इंदिरा गांधी ने अपने कदम रखे और कांग्रेस को पुनः मजबूत किया। विजयलक्ष्मी पंडित ने भी अपनी सीट बरकरार रखी।
यह वह समय था जब आपातकाल के बाद कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और नेहरू-गांधी परिवार का कोई सदस्य लोकसभा में मौजूद नहीं था।
1980: नया दौर, नई उम्मीदें-
1980 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी ने रायबरेली से और उनके बेटे संजय गांधी ने अमेठी से जीत हासिल की। संजय गांधी की असामयिक मृत्यु के बाद उनके छोटे भाई राजीव गांधी ने राजनीति में कदम रखा और अमेठी से सांसद बने। राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 1984 के चुनाव में रिकॉर्ड बहुमत से जीत दर्ज की, लेकिन 1991 में उनकी हत्या के बाद परिवार को एक बड़ा आघात पहुंचा।
सोनिया गांधी और नए नेतृत्व की शुरुआत-
1998 में सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और 1999 में अमेठी से लोकसभा चुनाव जीता। उनकी नेतृत्व क्षमता के चलते कांग्रेस ने 2004 और 2009 के चुनावों में महत्वपूर्ण जीत हासिल की। उनके बेटे राहुल गांधी ने 2004 में अमेठी से चुनाव लड़ा और संसद में अपनी उपस्थिति दर्ज की। अब प्रियंका गांधी ने रायबरेली से चुनाव जीतकर परिवार की राजनीतिक धारा को आगे बढ़ाया है।
नेहरू-गांधी परिवार: सत्ता, विवाद और लोकप्रियता का संतुलन-
नेहरू-गांधी परिवार का भारतीय राजनीति में योगदान निर्विवाद है, लेकिन इस परिवार को हमेशा वंशवाद और राजशाही के आरोपों का सामना भी करना पड़ा है। बावजूद इसके, उनकी लगातार लोकप्रियता ने उन्हें भारतीय राजनीति में एक सशक्त और प्रभावशाली शक्ति बनाए रखा है। इस परिवार का प्रभाव न केवल चुनावों में, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की संरचना में भी गहरा रहा है।
प्रियंका गांधी: आनेवाले समय की राजनीति
प्रियंका गांधी का लोकसभा में प्रवेश भारतीय राजनीति में एक नया अध्याय खोलता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रियंका अपने भाई राहुल गांधी के साथ मिलकर कांग्रेस पार्टी को किन नई ऊंचाइयों तक ले जाती हैं। उनका नेतृत्व भारतीय राजनीति में एक नई दिशा को जन्म दे सकता है, और उनके फैसले भारतीय जनता के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
Baten UP Ki Desk
Published : 28 November, 2024, 1:35 pm
Author Info : Baten UP Ki