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तबला वादन को वैश्विक मंच पर नई पहचान दिलाने वाले महान संगीतकार उस्ताद जाकिर हुसैन अब हमारे बीच नहीं रहे। 73 वर्ष की आयु में उन्होंने अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। परिवार के अनुसार, वे पिछले कुछ समय से फेफड़ों की गंभीर बीमारी इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस से जूझ रहे थे। बीते दो हफ्तों से अस्पताल में भर्ती उस्ताद की हालत बिगड़ने पर उन्हें आईसीयू में स्थानांतरित किया गया, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद संगीत जगत ने अपना यह अनमोल रत्न खो दिया।
उस्ताद अल्ला रक्खा के नक्शे-कदम पर चलने वाले जाकिर-
जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ। वे प्रसिद्ध तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा खां के पुत्र थे। संगीत के प्रति उनका झुकाव बचपन से ही दिखाई दिया। उन्होंने महज 11 साल की उम्र में अपना पहला संगीत कार्यक्रम दिया और 12 वर्ष की आयु में अमेरिका में शो किया। उस समय उन्हें 5 रुपये मिले थे, जिसे उन्होंने अपने जीवन की सबसे कीमती कमाई बताया।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारतीय तबले की गूंज-
1973 में उनका पहला एल्बम 'लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड' आया। इसके बाद उन्होंने 1979 से 2007 तक दुनिया भर के संगीत समारोहों में अपनी कला का प्रदर्शन किया। 2016 में, वे पहले भारतीय संगीतकार बने जिन्हें तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 'ऑल स्टार ग्लोबल कॉन्सर्ट' में आमंत्रित किया।
पुरस्कारों की माला से सजी जिंदगी:
पद्मश्री से लेकर ग्रैमी तक का सफर
उस्ताद जाकिर हुसैन को संगीत की दुनिया में कई पुरस्कारों से नवाजा गया।
1988: पद्मश्री
2002: पद्मभूषण
2023: पद्मविभूषण
ग्रैमी पुरस्कार: उन्होंने कुल पांच ग्रैमी पुरस्कार जीते। इस वर्ष 66वें ग्रैमी अवॉर्ड्स में उन्हें तीन पुरस्कार मिले।
तबला वादन को नई पहचान दी-
उन्होंने अपने पिता के पंजाब घराने की विरासत को आगे बढ़ाते हुए भारतीय शास्त्रीय संगीत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नई पहचान दी। उनके ग्रैमी विजेता प्रोजेक्ट्स 'द प्लेनेट ड्रम' और 'ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट' उनके योगदान की गहराई को दर्शाते हैं।
तबले की थाप से बनाई थी दिलों में जगह-
जाकिर हुसैन तबले को आम लोगों से जोड़ने के लिए शास्त्रीय प्रस्तुतियों में डमरू, शंख और बारिश की बूंदों जैसी ध्वनियां निकालते थे। वे कहते थे, "शिवजी के डमरू से जो शब्द निकले, गणेश जी ने उन्हें ताल की जुबान दी, और हम तालसेवक उन्हीं शब्दों को अपने वाद्य पर बजाते हैं।"
अभिनय में भी आजमाया हाथ-
1983 में जाकिर हुसैन ने फिल्म 'हीट एंड डस्ट' से अभिनय की शुरुआत की। इसके बाद 'द परफेक्ट मर्डर' और 'साज' जैसी फिल्मों में भी अभिनय किया। एक विज्ञापन में मॉडलिंग करते हुए उन्होंने भारत की एक मशहूर चाय ब्रांड को नई पहचान दी।
जाकिर हुसैन ने 1978 में कथक नृत्यांगना एंटोनिया मिनेकोला से विवाह किया। उनके परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटियां, अनीशा कुरैशी और इसाबेला कुरैशी हैं। परिवार ने बयान में कहा, "उस्ताद जाकिर हुसैन अनगिनत संगीत प्रेमियों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे।"
सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि की बाढ़-
जाकिर हुसैन के निधन की खबर के बाद बॉलीवुड से लेकर राजनीति और कला जगत की हस्तियों ने सोशल मीडिया पर गहरा शोक व्यक्त किया। उनके संगीत के चाहने वालों ने लिखा, "तबले की वो थाप अब केवल स्मृतियों में गूंजेगी।"
बहन ने अफवाहों का किया था खंडन-
"वे गंभीर हैं, लेकिन हमारे बीच हैं"
जाकिर हुसैन की बहन खुर्शीद ने पहले उनके निधन की खबर का खंडन किया था। उन्होंने कहा था, "मेरा भाई बहुत बीमार है, लेकिन उनकी देखभाल चल रही है।" हालांकि, कुछ ही घंटों बाद उनके निधन की पुष्टि हो गई। यह खबर संगीत जगत के लिए एक बड़ी क्षति साबित हुई।
हमेशा अमर रहेंगी उनकी धुनें-
उस्ताद जाकिर हुसैन भले ही अब हमारे बीच न हों, लेकिन उनके द्वारा रची गई संगीत की धुनें और तबले की थाप अमर रहेंगी। उन्होंने न सिर्फ संगीत को जिया, बल्कि इसे एक ऐसी ऊंचाई पर पहुंचाया जिसे भुलाया नहीं जा सकता।
Baten UP Ki Desk
Published : 16 December, 2024, 1:30 pm
Author Info : Baten UP Ki