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लव जिहाद, लैंड जिहाद के बाद अब सियासी गलियारों में "वोट जिहाद" की चर्चा, आखिर क्या है इन शब्दों का असली मतलब

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चुनावी समर में नेता एक-दूसरे पर कटाक्ष करते हैं और कभी-कभी नेताओं के द्वारा कड़े शब्दों का भी इस्तेमाल किया जाता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में आजकल "वोट जिहाद" नामक शब्द की  खूब चर्चा हो रही है। दरअसल यूपी के फर्रुखाबाद में INDIA गठबंधन के प्रत्याशी के समर्थन में मारिया आलम खां ने एक चुनावी सभा को सम्बोधित करते हुए इस शब्द का इस्तेमाल किया। मारिया आलम खां दिग्गज कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की भतीजी हैं। इन्होंने "वोट जिहाद" कर लोगों से बीजेपी को हराने की अपील की। इसके लिए इनपर FIR भी दर्ज की जा चुकी है। जिसके बाद से वोट जिहाद को लेकर अब सियासी गलियारों में इस शब्द की चर्चा तेज हो गयी हैं। "वोट जिहाद" और जिहाद शब्द का इस्तेमाल करना कितना सही और कितना गलत है इसपर विस्तार से जानेंगे।

कहां से आया है ये शब्द?

दरअसल 'जिहाद' एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ 'संघर्ष करना' है। इसे अरबी भाषा में हर प्रकार के संघर्ष के लिए उपयोग किया जाता है। मौजूदा समय में जिहाद शब्द का अलग-अलग अर्थ निकाला जाता है, जिसके चलते आज जिहाद को नकारात्मक रूप में देखा जाता है। ऐसे में जिहाद को कुरान की रोशनी और पैगम्बर मुहम्मद साहब के कथनों से जोड़कर देखा जाना चाहिए। हदीस के अनुसार चार तरह के जिहाद माने गए हैं, जो हैं, दिल से, जबान से, हाथ से और तलवार से। दिल से जिहाद का अर्थ है अपने भीतर बसी बुराइयों का शैतान से लड़ना, जुबान से जिहाद का अर्थ है सच बोलना और इस्लाम के पैगाम को व्यक्त करना, हाथ से जिहाद का मतलब है अन्याय या गलत का शारीरिक बल से मुकाबला करना, जिसमें हथियार वर्जित है। चौथा तलवारी या सशस्त्र जिहाद है।

राजनीति में जिहाद शब्द का इस्तेमाल-

जिहाद को महज युद्ध से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि अरबी-इस्लाम में भाषा में युद्ध के लिए अलग शब्द 'गजवा' या 'मगाजी' का उपयोग किया जाता है। जिहाद को लेकर बहुत गलतफहमियां हैं। मौजूदा दौर में कुछ लोगों ने मारकाट को जिहाद मान लिया। वहीं, पश्चिमी जगत जिहाद को 'पवित्र युद्ध' के रूप में पेश करता है। भारत की बात करें तो यहाँ बदलती राजनिति और बदलते वक्त के साथ जिहाद शब्द का इस्तेमाल कई चीजों के साथ जोड़ कर किया गया जैसे कि लव जिहाद, लैंड जिहाद और अब वोट जिहाद।

इन धाराओं में दर्ज हुआ केस-

फिलहाल इस पूरे मामले पर मारिया आलम खां और सलमान खुर्शीद पर आईपीसी के सेक्शन 188, 295A तथा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत केस दर्ज किया गया है। बता दें कि  IPC की धारा 188 का इस्तेमाल उन मामलों में किया जाता है जहां सार्वजनिक सुरक्षा और व्यवस्था दांव पर लगी हो, जैसे सार्वजनिक जमावड़े पर रोक आदि। वहीं दूसरी ओर IPC के Section 295A के तहत अगर कोई व्यक्ति भारतीय समाज के किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करता है या उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य करता है या इससे संबंधित वक्तव्य देता है, तो वह दोषी माना जाएगा।

चुनाव में धर्म के आधार पर वोट मांगना गैर-कानूनी-

चुनाव में धर्म या जाति के नाम पर वोट मांगने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2017 में इसे पूरी तरह से गैरकानूनी करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के अनुसार अब कोई उम्मीदवार अपने धर्म, जाति या भाषा के आधार पर वोट नहीं मांग सकेगा।  किसी वर्ग विशेष के मतदाताओं से भी एक उम्मीदवार या पार्टी को वोट देने की साझा अपील नहीं की जा सकेगी। कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123(3) की व्याख्या की थी। इस फैसले में कहा गया था कि कानून को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जायेगा। धर्म, जाति, भाषा, समुदाय या वर्ग के आधार पर प्रत्याशी, उसके एजेंट या प्रत्याशी की सहमति से कोई और व्यक्ति अपील करता है तो वह गैरकानूनी है और उसे चुनाव का भ्रष्ट तरीका माना जाएगा। चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया है। इसमें धर्म की कोई भूमिका नही है। व्यक्ति का भगवान से रिश्ता व्यक्तिगत होता है इन गतिविधियों में राज्य के शामिल होने की संविधान में मनाही है।

By Aakash

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