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डॉलर के मुकाबले रुपया हुआ कमजोर, क्या कदम उठा रहा है RBI?

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भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर हो रहा है, और इसका असर अर्थव्यवस्था पर देखा जा सकता है। सोमवार को रुपये ने शुरुआती कारोबार में 1 पैसा गिरकर 84.38 रुपये प्रति डॉलर का नया निम्नतम स्तर छू लिया। इस गिरावट का क्या कारण है, विदेशी निवेशक किस तरह प्रभावित कर रहे हैं, और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) इस पर कैसे प्रतिक्रिया दे रहा है, आइए जानते हैं।

रुपये की कमजोरी के पीछे क्या कारण हैं?

विशेषज्ञों के मुताबिक, रुपये में आई इस गिरावट का प्रमुख कारण विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली और घरेलू शेयर बाजार में सुस्ती है। जब विदेशी फंड अपने निवेश को निकालते हैं और डॉलर में मजबूती आती है, तो इसका सीधा असर रुपये की विनिमय दर पर पड़ता है। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर सूचकांक में लगातार मजबूती भी रुपये पर दबाव बना रही है।

शेयर बाजार में बिकवाली का असर-

रुपये में कमजोरी का एक बड़ा कारण शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की बिकवाली है। अक्टूबर 2024 में एफआईआई ने 94,017 करोड़ रुपये की भारी बिकवाली की, जो अब तक की सबसे अधिक थी। नवंबर के पहले 10 दिनों में भी 1.6 बिलियन डॉलर की निकासी की गई है। शेयर बाजार में उच्च मूल्यांकन और तिमाही नतीजों में आई कमी इस बिकवाली को और बढ़ावा दे रही है, जिससे रुपये पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है।

विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की स्थिति-

रुपये में गिरावट के चलते भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी घटता जा रहा है। पिछले कुछ हफ्तों में रिजर्व बैंक ने जानकारी दी है कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार घट रहा है। एक नवंबर को खत्म हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.675 अरब डॉलर घटकर 682.13 अरब डॉलर पर आ गया, जो अर्थव्यवस्था के लिए एक चेतावनी का संकेत है।

रुपये को स्थिर करने के लिए RBI की रणनीति-

रुपये में गिरावट रोकने के लिए RBI विभिन्न उपाय कर सकता है। हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि आरबीआई का उद्देश्य सिर्फ रुपये को डॉलर के मुकाबले नहीं बल्कि चीनी युआन जैसी अन्य अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं के मुकाबले प्रतिस्पर्धी बनाए रखना भी है। इससे भारतीय बाजार को निर्यात के लिए प्रतिस्पर्धी बने रहने में मदद मिलेगी।

क्या रुपया और गिर सकता है?

विशेषज्ञों का मानना है कि विदेशी निवेशकों की बिकवाली और शेयर बाजार में अस्थिरता के चलते आने वाले समय में रुपये में और कमजोरी आ सकती है। साथ ही, यदि वैश्विक स्तर पर डॉलर मजबूत बना रहता है और भारतीय शेयर बाजार में सुधार नहीं आता है, तो रुपये पर दबाव बने रहने की संभावना है। रुपये में आई यह कमजोरी भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने चुनौतीपूर्ण स्थिति खड़ी कर रही है। RBI के कदम और विदेशी निवेशकों का रुख तय करेगा कि रुपये की स्थिति में कब और कैसे स्थिरता आएगी।

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