केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज लोकसभा में आर्थिक सर्वे 2024-25 प्रस्तुत करते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था के उज्ज्वल भविष्य की झलक दिखाई। सर्वे के अनुसार, वैश्विक उतार-चढ़ाव के बावजूद वित्त वर्ष 2026 में रियल GDP ग्रोथ 6.3% से 6.8% के बीच रहने की संभावना है। रेलवे, सड़कों, हवाई अड्डों और बंदरगाहों जैसे बुनियादी क्षेत्रों में निरंतर प्रगति अर्थव्यवस्था को स्थिर गति देने का वादा कर रही है।
बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने पर जोर
सरकार ने बीते पांच वर्षों में बुनियादी ढांचे के विकास पर विशेष ध्यान दिया है। 2020 से 2024 तक सरकारी पूंजीगत खर्च में 38.8% की दर से वृद्धि हुई है। चुनाव के बाद जुलाई से नवंबर 2024 के बीच खर्चों में बढ़ोतरी हुई, जिससे इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र को सपोर्ट मिला है।
रेलवे, रोड, एयरपोर्ट और पोर्ट में सतत विकास
आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया कि रेलवे, रोड, एयरपोर्ट और पोर्ट जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सतत विकास जारी है। इनकी क्षमता विस्तार की योजनाओं पर भी काम हो रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था को दीर्घकालिक लाभ मिलेगा।
फिस्कल डेफिसिट को नियंत्रित रखने की कोशिश
चुनौतियों के बावजूद, सरकार का लक्ष्य है कि वित्तीय वर्ष 2026 में राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) GDP के 4.5% से कम रखा जाए।
अर्थव्यवस्था की स्थिरता के संकेत
इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास और नियंत्रित फिस्कल डेफिसिट जैसे प्रयासों से भारतीय अर्थव्यवस्था को अगले कुछ वर्षों में स्थिरता और संतुलन मिलने की उम्मीद है। इकोनॉमिक सर्वे, भारतीय अर्थव्यवस्था का आईना माना जाता है। इकोनॉमिक सर्वे क्या है? इसे कौन पेश करता है? आम जनता और निवेशकों के लिए सर्वे का महत्व क्या है? इन सारे सवालों का जवाब आइए विस्तार से जानते हैं...
इकोनॉमिक सर्वे: भारतीय अर्थव्यवस्था का आईना
इकोनॉमिक सर्वे क्या है?
इकोनॉमिक सर्वे एक महत्वपूर्ण वित्तीय दस्तावेज है जो भारत की अर्थव्यवस्था का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इसमें विकास की संभावनाओं, आर्थिक चुनौतियों और नीतिगत कदमों की विस्तृत जानकारी दी जाती है।
इकोनॉमिक सर्वे के तीन हिस्से:
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अर्थव्यवस्था का ओवरव्यू:
- अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति
- विकास की संभावनाएं और चुनौतियां
- सुधारात्मक नीतियों का सुझाव
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क्षेत्रीय प्रदर्शन और आंकड़े:
- कृषि, उद्योग, सेवा क्षेत्र का विश्लेषण
- विकास दर और संबंधित आंकड़े
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मुख्य आर्थिक संकेतक:
- रोजगार और बेरोजगारी
- महंगाई और उत्पादन
- आयात-निर्यात के आंकड़े
कब पेश हुआ था भारत में आर्थिक सर्वे?
भारत में पहला आर्थिक सर्वे वर्ष 1950-51 में पेश किया गया था। हालांकि, 1964 से इसे बजट से ठीक एक दिन पहले संसद में प्रस्तुत करने की परंपरा शुरू हुई। यह सिर्फ एक दस्तावेज नहीं, बल्कि देश की आर्थिक सेहत की रिपोर्ट कार्ड है, जो जनता और नीति निर्माताओं को आर्थिक चुनौतियों और संभावनाओं का जायजा देती है। सरकार न केवल अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति से अवगत कराती है बल्कि भविष्य के सुधारात्मक कदमों की रूपरेखा भी सर्वे के जरिए सामने रखती है।
आम जनता और निवेशकों के लिए क्या है सर्वे का महत्व?
- जनता के लिए: महंगाई, बेरोजगारी और खर्च संबंधी जानकारी के लिए।
- निवेशकों के लिए:यदि सर्वे में इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस बताया गया है, तो निवेशक इस सेक्टर की ओर आकर्षित हो सकते हैं।
- आर्थिक दृष्टिकोण: भविष्य की नीतियों का संकेत और संभावनाओं का आकलन के लिए।
इकोनॉमिक सर्वे: कौन करता है तैयारी?
आर्थिक सर्वे को तैयार करना एक गहन और विशेषज्ञ प्रक्रिया है। इसकी शुरुआत वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों की इकोनॉमिक्स डिविजन से होती है, जहां मुख्य आर्थिक सलाहकार (Chief Economic Advisor) की देखरेख में यह दस्तावेज तैयार किया जाता है। तैयार होने के बाद इसे वित्त मंत्री की मंजूरी के लिए भेजा जाता है। अंततः वित्त मंत्री संसद में इसे पेश करते हैं। इसके बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार देश की अर्थव्यवस्था का विस्तृत लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हैं, जो वित्त वर्ष की स्थिति और भविष्य की दिशा को दर्शाता है।
इकोनॉमिक सर्वे का क्या है महत्व?
यह दस्तावेज न केवल अर्थव्यवस्था का सही आकलन देता है बल्कि सरकार की प्राथमिकताओं और रणनीतिक नीतियों की दिशा भी तय करता है। इसी वजह से इसे बजट से पहले पेश करने की परंपरा बनी हुई है।