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गन्ना नहीं अब पराली भी बनेगी आमदनी का जरिया! पूर्वांचल के इस शहर को मिला एथेनॉल गिफ्ट

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 6 अप्रैल को  गोरखपुर के गीडा सेक्टर-26 में केयान डिस्टिलरीज प्राइवेट लिमिटेड के एथेनॉल प्लांट का उद्घाटन किया। इस अत्याधुनिक प्लांट की स्थापना से न केवल पूर्वांचल के किसानों को नई उम्मीद मिली है, बल्कि यह क्षेत्रीय रोजगार और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी एक बड़ा कदम माना जा रहा है। इस प्लांट में गन्ना, मक्का और चावल जैसे अनाजों से प्रतिदिन 3 लाख लीटर एथेनॉल का उत्पादन होगा, जिसे आने वाले समय में बढ़ाकर 10 लाख लीटर प्रतिदिन किया जाएगा। इस परियोजना से लगभग 4000 लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार मिलने की उम्मीद है।

किसानों की दशा सुधारने की दिशा में एक क्रांतिकारी पहल

उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है। वर्ष 2023-24 में राज्य में लगभग 50 लाख किसानों ने गन्ने की खेती की, और करीब 2300 लाख टन उत्पादन हुआ। इसके बावजूद किसानों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है:

  • भुगतान में देरी: जनवरी 2024 तक किसानों का 7,000 करोड़ रुपये से अधिक बकाया था।

  • बढ़ती लागत, घटता लाभ: खाद, बीज, मजदूरी व सिंचाई के खर्च बढ़ने के बावजूद फसल का मूल्य लगभग स्थिर है।

  • बाय-प्रोडक्ट्स का उपयोग नहीं: फसल कटाई के बाद बची पराली को जलाना किसानों की मजबूरी बन चुका है, जिससे प्रदूषण फैलता है।

एथेनॉल प्लांट से किसानों को क्या मिलेगा?

यह नया एथेनॉल प्लांट इन समस्याओं का समाधान लेकर आया है। इसके फायदे इस प्रकार हैं:

किसानों के लिए नया बाजार: अब किसान सिर्फ शुगर मिलों पर निर्भर नहीं रहेंगे। मक्का, धान और गन्ने के बाय-प्रोडक्ट्स से भी उन्हें आमदनी होगी।
पराली का उपयोग: अब खेतों की पराली जलेगी नहीं, बल्कि एथेनॉल बनाने में इस्तेमाल होगी। इससे प्रदूषण रुकेगा और किसानों को अतिरिक्त आय होगी।
ऊर्जा आत्मनिर्भरता: भारत सरकार 2025 तक पेट्रोल में 20% एथेनॉल मिलाने का लक्ष्य लेकर चल रही है। इस प्लांट से उस लक्ष्य की दिशा में एक और कदम बढ़ा है।
ग्रामीण विकास: यह प्लांट सिर्फ एक फैक्ट्री नहीं, बल्कि एक ऐसा इंजन है जो ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार और औद्योगिक विकास को गति देगा।

पर्यावरण को भी मिलेगा लाभ

पराली जलाने से हर साल अक्टूबर-नवंबर में उत्तर भारत के शहरों में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुँच जाता है। WHO के अनुसार, PM 2.5 का सुरक्षित स्तर 25 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होता है, लेकिन यूपी के कई शहरों में यह 200 से 300 तक पहुँच जाता है। लखनऊ, कानपुर, मेरठ और वाराणसी जैसे शहर लगातार खराब वायु गुणवत्ता के कारण सूची में शामिल रहते हैं। इस प्लांट के माध्यम से पराली का उपयोग कर प्रदूषण को भी नियंत्रित किया जा सकेगा।

खेती से क्लीन एनर्जी तक: गोरखपुर का नया सफर

गोरखपुर में शुरू हुआ यह एथेनॉल प्लांट पूर्वांचल के लिए सिर्फ एक औद्योगिक परियोजना नहीं, बल्कि कृषि, पर्यावरण और रोजगार के क्षेत्र में परिवर्तन का संकेत है। इससे एक ओर जहाँ किसानों की आय बढ़ेगी, वहीं दूसरी ओर देश को ऊर्जा आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी यह एक मजबूत कदम साबित होगा।

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