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उत्तर प्रदेश में जल्द ही एक नया ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर जुड़ने जा रहा है। बरेली में सूफी परंपरा के प्रमुख केंद्र खानकाह-ए-नियाजिया के मुख्य द्वार के रूप में एक भव्य बुलंद दरवाज़ा का निर्माण किया जा रहा है। यह दरवाजा न केवल वास्तुकला की दृष्टि से उत्कृष्ट है, बल्कि सूफिज्म की समृद्ध परंपरा और उसके संदेश को भी मजबूती से आगे बढ़ाने का प्रतीक बनेगा।
वास्तुकला का अनूठा नमूना-
बुलंद दरवाज़ा का ज़िक्र आते ही लोगों के मन में सबसे पहले फतेहपुर सीकरी का बुलंद दरवाजा आता है, जो अपनी अद्भुत स्थापत्य शैली और ऐतिहासिक महत्त्व के कारण विश्व प्रसिद्ध है। लेकिन अब बरेली भी इसी तर्ज पर अपना बुलंद दरवाजा बना रहा है, जो खानकाह-ए-नियाजिया की सूफी परंपरा को विश्व पटल पर एक नया स्थान देगा। यह दरवाजा 65 फीट ऊंचा होगा, और इसे भारतीय, मुगल, फारसी और तुर्की वास्तुकला की मिश्रित शैली से बनाया जा रहा है। दरवाजे की जटिल नक्काशी, संगमरमर की जालियों, और भूरे-सफेद रंग की मेहराबों और मीनारों को देखना किसी भी पर्यटक के लिए एक अनोखा अनुभव होगा। दरवाजे की भव्यता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इसके निर्माण में तेलंगाना, गुजरात, और राजस्थान से कारीगर बुलाए गए हैं, जो इसमें विशेष पत्थरों से काम कर रहे हैं।
खानकाह-ए-नियाजिया की विरासत-
खानकाह-ए-नियाजिया बरेली में सूफी परंपरा का प्रमुख केंद्र है, जहां सूफी मत के अनुयायी बड़ी संख्या में आते हैं। यह नया बुलंद दरवाजा सूफी खानकाह के महत्व को और बढ़ाएगा, साथ ही इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को भी प्रदर्शित करेगा। यह दरवाजा पूर्व सज्जादनशीन हसनी मियां का सपना था, जिसे अब मौजूदा सज्जादनशीन मेहंदी मियां साकार कर रहे हैं। दरवाजे के निर्माण का 90 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है, और इसके पूरा होने पर यह उत्तर प्रदेश के सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन को भी एक नई पहचान देगा। खास बात यह है कि इस दरवाजे की खूबसूरती चांदनी रात में दूर से भी देखी जा सकेगी, जो इसे एक अद्भुत और आकर्षक स्थल बनाएगी।
फतेहपुर सीकरी के बुलंद दरवाजे से तुलना-
जब भी बुलंद दरवाजे की बात होती है, तो फतेहपुर सीकरी का नाम अवश्य लिया जाता है। इसका निर्माण 1602 में मुगल बादशाह अकबर ने गुजरात पर विजय की स्मृति में करवाया था। 55 मीटर ऊंचे इस दरवाजे पर कुरान की आयतें खुदी हुई हैं, जो इसे धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाती हैं। इसके अलावा, यह दरवाजा मुगल वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है। बरेली का नया बुलंद दरवाजा भी इसी प्रकार का एक शानदार स्मारक बनेगा, जो भविष्य में बरेली को एक विशेष पर्यटन स्थल के रूप में पहचान दिला सकता है।
सूफी विरासत का नया केंद्र-
बरेली का बुलंद दरवाजा सूफी खानकाह-ए-नियाजिया के साथ मिलकर इस क्षेत्र को धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का केंद्र बनाएगा। यह दरवाजा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक होगा, बल्कि सूफिज्म के शांति और प्रेम के संदेश को भी जन-जन तक पहुँचाने का माध्यम बनेगा। दरवाजे के निर्माण में पारंपरिक शिल्प और आधुनिक तकनीक का अनूठा मिश्रण किया जा रहा है। इसके साथ ही दरवाजे पर की गई नक्काशी और पच्चीकारी इसे एक विशेष रूप देती है। यह दरवाजा बरेली की पहचान का हिस्सा बनेगा, और सूफी परंपरा के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख स्थल के रूप में उभरेगा।
पर्यटकों के लिए नया आकर्षण-
बरेली का बुलंद दरवाजा न केवल धार्मिक अनुयायियों के लिए, बल्कि कला और वास्तुकला के प्रेमियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र होगा। यह दरवाजा अपनी अद्भुत डिजाइन और विशालता के कारण दूर-दूर से लोगों को अपनी ओर खींचेगा। इसके निर्माण से बरेली का नाम पर्यटन मानचित्र पर भी प्रमुखता से उभरेगा।
सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा-
बरेली में बनने वाला नया बुलंद दरवाजा उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनेगा। यह न केवल सूफी विरासत को बढ़ावा देगा, बल्कि बरेली को एक नए धार्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन केंद्र के रूप में स्थापित करने में भी मदद करेगा।
Baten UP Ki Desk
Published : 16 September, 2024, 7:16 pm
Author Info : Baten UP Ki