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उत्तर प्रदेश की राजव्यवस्था- राज्यपाल

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भारतीय संघ के समान अन्य राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश में ‘संसदीय शासन प्रणाली’ को अपनाया गया है। संसदीय प्रणाली में राज्यपाल, राज्य कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख होता है। राज्य के सभी कार्य राज्यपाल के नाम से किये जाते हैं। राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्री परिषद होती है। मंत्री परिषद सामूहिक रूप से राज्य विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होती है। संवैधानिक रूप से राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होती है जबकि वास्तविक रूप से इन शक्तियों का प्रयोग मंत्रीपरिषद की सिफ़ारिश द्वारा किया जाता है। मंत्रीपरिषद का मुखिया मुख्यमंत्री होता है। मंत्रीपरिषद राज्यपाल के प्रसाद पर्यन्त पद ग्रहण करती है।

राज्यपाल
भारतीय संविधान के भाग 6 में राज्य कार्यपालिका के अंतर्गत, अनुच्छेद 153 से 162 में राज्यों के राज्यपाल के संबंध में प्रावधान किया गया है। अनुच्छेद 153 प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल के संबंध में प्रावधान करता है। उत्तर प्रदेश की प्रथम राज्यपाल श्रीमती सरोजनी नायडू थी, जबकि निवर्तमान राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल हैं। उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल श्रीमती सरोजनी नायडू थी।

राज्यपाल के लिए आवश्यक अहर्ता :

अनुच्छेद 157 के अंतर्गत राज्यपाल पद के लिए निम्न योग्यतायें होनी चाहिए-

  • भारत का नागरिक हो ।
  • 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो ।
  • राज्यपाल, संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं हो सकता है। यदि संसद का कोई सदस्य किसी राज्य का राज्यपाल नियुक्त किया जाता है तो उसकी नियुक्ति की तिथि से सदन में उसका स्थान रिक्त समझा जायेगा।
  • अनुच्छेद 158 के अनुसार राज्यपाल लाभ का पद धारण नहीं कर सकता है। यद्यपि संविधान में लाभ के पद को परिभाषित नहीं किया गया है।

राज्यपाल पद की संवैधानिक सुचिता बनाये रखने के लिए, सरकारिया आयोग ने कुछ सुझाव दिए हैं, अपवादों को छोड़कर इस परम्परा का पालन किया जा रहा है –

  • राज्यपाल के पद पर नियुक्त होने वाला व्यक्ति, स्थानीय दलीय राजनीति से मुक्त हो ।
  • राज्यपाल की नियुक्ति में संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री से सलाह ली जाए ।
  • राज्यपाल को पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने दिया जाए ।

राज्यपाल का कार्यकाल :

संविधान के अनुच्छेद 156 के अनुसार, राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद ग्रहण करता है। राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है किन्तु राष्ट्रपति को त्यागपत्र देकर राज्यपाल कभी भी अपने पद से मुक्त हो सकते हैं। चूँकि राज्यपाल राज्य के समस्त कार्यकारी/कार्यपालिकीय कार्य राज्यपाल के नाम से किए जाएंगे। ऐसे में राज्यपाल का पद रिक्त नहीं रह सकता है, नये राज्यपाल की नियुक्ति तक राज्यपाल पद पर बने रहते हैं। 

  • अनुच्छेद -166 के अनुसार राज्यपाल, राज्य सरकार के कामकाज को अधिक सुविधाजनक बनाने तथा उक्त कार्यो को मंत्रियों में आवंटन के लिए नियम बनाएगा।  
  • राज्यपाल के वेतन एवं भत्ते– राज्यपाल के वेतन भत्ते का निर्धारण संसद विधि द्वारा करती है। राज्यपाल का वेतन राज्य की संचित निधि से दिया जाता है। उसके वेतन भत्ते पदावधि के दौरान कम नहीं किये जा सकते । 
  • राज्यपाल की शपथ– संविधान के अनुच्छेद 159 के अनुसार राज्यपाल को राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उनकी अनुपस्थिति में सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश पद की शपथ दिलाते हैं। 

राज्यपाल की शक्तियाँ 

कार्यपालिकीय शक्तियाँ –

  • अनुच्छेद 154 (1) के अनुसार ‘राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी । इस शक्ति का प्रयोग वह संविधान के अनुसार स्वयं या मंत्रीपरिषद की सिफ़ारिश पर करता है।
  • अनुच्छेद 164 (1) के अनुसार – राज्यपाल, मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है तथा मुख्यमंत्री की सलाह पर मंत्रीपरिषद का गठन करता है। राज्यपाल मुख्यमंत्री समेत मंत्रीपरिषद के सभी सदस्यों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाता है। राज्य के मंत्री राज्यपाल के प्रसाद पर्यन्त पद ग्रहण करते हैं।
  • अनुच्छेद 167 के अनुसार राज्यपाल राज्य के शासन प्रशासन के संबंध में मुख्यमंत्री से कोई भी जानकारी मांग सकता है। 

 राज्यपाल द्वारा की जाने वाली नियुक्तियां –

  • मुख्यमंत्री, अन्य मंत्री समेत महाधिवक्ता की नियुक्ति करता है।
  • राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति (पदमुक्ति राष्ट्रपति द्वारा)
  • विश्वविद्यालय में उपकुलपति की नियुक्ति
  • राज्य लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति
  • उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जहाँ विधानपरिषद है वहां विधानपरिषद की कुल सदस्य संख्या का 1/ 6 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत किये जाते हैं। जो साहित्य, कला , विज्ञान, समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान रखते हैं।

विधायी शक्तियाँ –

  • अनु. 168. के तहत राज्यपाल राज्य विधानमंडल का भाग है, अर्थात राज्यपाल की अनुमति से ही कोई विधेयक अधिनियम बनता है।

वीटो शक्ति (अनुच्छेद 200)-

  • विधेयक को अनुमति न दे (पूर्ण वीटो )
  • विधेयक को पुर्नविचार के लिए वापस लौटा दे। (निलंबनकारी वीटो )
  • पॉकेट वीटो (केवल साधारण विधेयक )
  • किसी भी विधेयक को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित करना ।

विधानमंडल से जुड़ी अन्य शक्तियां 

  • राज्य विधानमंडल के सत्र को आहूत, सत्रावसन, राज्य विधानसभा का विघटन करना ।
  • आम चुनाव के बाद या प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र में सदन में अभिभाषण (जिसे मंत्रीपरिषद द्वारा लिखा जाता है)।
  • राज्य विधानमंडल को संदेश भेजना ।

अध्यादेश जारी करने की शक्ति (213)- 

अध्यादेश एक अस्थायी कानून है। जब विधानमंडल के दोनों सदन या कोई एक सदन सत्र में न हो तब राज्यपाल आपातकालीन परिस्थिति में अस्थायी कानून बना सकता है। जिसे अध्यादेश कहते हैं। अध्यादेश उन विषयो पर ज़ारी कर सकता हैं, जिन पर राज्य विधानमंडल को कानून बनाने की शक्ति है अर्थात राज्य सूची या समवर्ती सूची के विषय पर।राज्यपाल द्वारा अध्यादेश जारी करने के बाद दोनों सदनों द्वारा सत्रआहुत होने के 6 सप्ताह के अंदर, दोनों सदनों द्वारा इस कानून को पारित करना होता है, अन्यथा समयसीमा के बाद कानून निष्प्रभावी हो जायेगा । 

न्यायिक शक्तियाँ-

  • अनुच्छेद 161 के अंतर्गत क्षमादान की शक्ति – किसी विधि के विरुद्ध जिन पर राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है किये गये किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध व्यक्ति के दण्ड को क्षमा करने, प्रविलम्ब करने, विराम या परिहार करने की या लघुकरण की शक्ति है लेकिन राज्यपाल को मृत्युदण्ड के मामले में, या संघ सूची के विषयों से संबंधित विधि के विरुद्ध किये गये अपराध में और सैन्य न्यायालयो के निर्णयों के विरुद्ध क्षमादान की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
  • उच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति के संदर्भ में राष्ट्रपति राज्यपाल से परामर्श लेता है।
  • राज्यपाल जिला जलों की नियुक्ति और प्रोन्नति आदि उच्च न्यायालय के परामर्श से करता है।

अन्य शक्तियां   

  • अनुच्छेद 192 के अनुसार - राज्यपाल, निर्वाचन आयोग की सलाह पर विधानमण्डल के सदस्यों की निर्हता से संबंधित प्रश्नों का निर्णय करता है।
    विवेकाधीन शक्तियां –
  • अनुच्छेद 356- राष्ट्रपति को राष्ट्रपति शासन के लिए रिपोर्ट देना ( बिना मंत्रीपरिषद की सिफ़ारिश के )। उत्तर प्रदेश में अब तक 10 बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है।
  • अनुच्छेद 200- राष्ट्रपति के लिए राज्य विधानमंडल के विधेयक आरक्षित करना ।
  • राज्य विधानमंडल के विधेयक को पुर्नविचार के लिए वापस भेजना।
  • राज्य विधानमंडल को स्पष्ट बहुमत न होने की स्थिति में मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल अपने स्वविवेक से करता है।
  •  राज्य विधानसभा में बहुमत खो चुकी सरकार की सलाह पर विधान सभा को भंग करने के लिए बाध्य नहीं ।
  • मुख्यमंत्री से मंत्रिपरिषद के संबंध में सूचना प्राप्त करना ।
  • कुछ विशेष परिस्थितियों में जैसे मुख्यमंत्री के पास बहुमत को लेकर संदेह की स्थिति में राज्यपाल विधानसभा का विशेष अधिवेशन बुला सकते हैं। 

राज्यपाल के पद से संबंधित विवाद-

राज्यपाल का पद सर्वाधिक विवादित संवैधानिक पद है क्योंकि राज्यपाल की नियुक्ति केंद्र द्वारा की जाती है ऐसे में किसी राज्य में विपक्षी दल की सरकार होने पर राज्य के मुख्यमंत्री और राज्यपाल के मध्य विवाद देखने को मिलता है। 

राज्यपाल की पदमुक्ति के संबंध में विवाद-
राज्यपाल, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद ग्रहण करता है। कोई निश्चित कार्यकाल नहीं है। ऐसे में राज्यपाल स्वतंत्र भूमिका का निर्वहन नहींकर सकता'। विपक्ष दल द्वारा शासित राज्यों में आरोप लगता है कि राज्यपाल केन्द्र के एजेन्ट के रूप में कर कर रहे हैं। राज्यपाल द्वारा विवेकाधीन शक्तियों (जैसे-राष्ट्रपति शासन के लिए दुर्भावनापूर्ण रिपोर्ट देना, राष्ट्रपति के लिए विधेयक को आरक्षित करना और मुख्यमंत्री की नियुक्ति के संबंध में) के दुरुपयोग पर प्रश्न उठता रहता है।

 

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