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समसामयिक मुद्दे भाग 2 : महारत्न कंपनियों के कार्यप्रणालियों के नियमन हेतु सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

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हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस के. एम जोसेफ, बी.वी नागरत्ना और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने एक महत्त्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के प्रावधान पब्लिक सेक्टर की कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड पर लागू होंगे। इस तरह कोल इंडिया लिमिटेड पर कंप्टीशन एक्ट लागू होने की बात सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दी है। यह निर्णय करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कोल इंडिया की इस दलील को खारिज कर दिया कि कोयला खदान अधिनियम के कारण कंप्टीशन एक्ट उस पर लागू नहीं होता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय क्यों दिया? इसको जानने के लिए सीसीआई और कोल इंडिया लिमिटेड के बीच के विवाद को समझना आवश्यक है।

सीसीआई ने नॉन कुकिंग कोयले की सप्लाई के लिए पॉवर प्रोड्यूसर्स के साथ फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट में अनुचित / भेदभावपूर्ण शर्ते लगाने हेतु कोल इंडिया पर 1773.05 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था। हालांकि, कंप्टीशन एपीलेट ( Appellate ) ट्रिब्यूनल हस्तक्षेप के बाद जुर्माना घटाकर 591 करोड़ रुपये कर दिया गया था। इस पर कोल इंडिया लिमिटेड का कहना था कि प्रतिस्पर्धा अधिनियम के प्रावधान उस पर लागू नहीं होते। कोल इंडिया लिमिटेड ने प्रतिस्पर्धा अपीलीय न्यायाधि करण के दिसंबर 2016 के फैसले को चुनौती दी थी।

कंप्टीशन एपीलेट ट्रिब्यूनल ने साल 2014 में कोल इंडिया की उस चुनौती को खारिज कर दिया था, जिसके खिलाफ सीसीआई ने अपना फैसला सुनाया था। सीसीआई ने नियमों के तहत कोल इंडिया को अपनी डॉमिनेंस का दुरुपयोग का दोषी पाया था जिसके बाद भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने कोल इंडिया लिमिटेड को 'इस तरह के प्रतिस्पर्धा-विरोधी आचरण को बंद करने का निर्देश दिया था। दूसरी तरफ सीआईएल का कहना था चूंकि वह पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग (PSU) है और कोल माइंस (नेशनलाइजेशन) एक्ट 1973 के तहत दिशानिर्देशित है, इसलिए उस पर प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 लागू नहीं होता। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को प्रतिस्पर्धा आयोग के दायरे से बाहर नहीं रखा जा सकता। इस निर्णय से इस बात का रास्ता साफ हो गया है कि कोयला क्षेत्र की प्रमुख कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड से जुड़ी शिकायतों तथा विवादों की सुनवाई भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग कर सकता है। इससे कोयला क्षेत्र के विभिन्न शेयरधारकों के हितों को सुरक्षित करने में मदद मिलेगी।

यहां यह प्रश्न उठता है कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का औचित्य क्या है और इस फैसले का क्या सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा? यहां यह विचारणीय है कि देश के विभिन्न उद्योगों, वाणिज्यिक समूहों, व्यापार कंपनियों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को सुनिश्चित किए बिना आर्थिक विकास में असंतुलन की संभावना बनी रहती है। विभिन्न औद्योगिक समूह, इकाईयां, कंपनियां यह चाहती हैं कि उनके अपने बिजनेस को बढ़ाने का समान निष्पक्ष अवसर मिले नियमों कानूनों में छूट को लेकर उनके साथ भेदभाव न हो, अनुचित ट्रेड प्रेक्टिसेज को बढ़ावा न मिले, विभिन्न औद्योगिक श्रमिक, व्यापारिक कानूनों का अनुपालन इस प्रकार से हो कि किसी नियम को आधार बनाकर कोई कंपनी मनमाना आचरण न कर सके। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा न होने से उद्यमशीलता की प्रवृत्ति हतोत्साहित होती है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने 2002 में देश की संसद में भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून पारित किया था जिसके अन्तर्गत प्रतिस्पर्धा आयोग का गठन किया गया था।

महारत्न का दर्जा देने के लिए निर्धारित मानदंड:
निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करने वाले सीपीएसई महारत्न का दर्जा देने के लिए विचार किए जाने के पात्र हैं:
नवरत्न का दर्जा प्राप्त होना।

  • सेबी नियमों के तहत न्यूनतम निर्धारित सार्वजनिक शेयरधारिता के साथ भारतीय स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होना ।
  • औसत वार्षिक कारोबार पिछले 3 वर्षों के दौरान 25,000 करोड़ रुपये का होना।
  • औसत वार्षिक शुद्ध संपत्ति पिछले 3 वर्षों के दौरान 15,000/- करोड़ रुपये का होना ।
  • पिछले 3 वर्षों के दौरान 5,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर पश्चात औसत वार्षिक शुद्ध लाभ होना ।
  • महत्त्वपूर्ण वैश्विक उपस्थिति या अंतर्राष्ट्रीय संचालन होना।

इस समय देश में 12 महारत्न कंपनियां हैं:

  1. भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड
  2. भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड
  3. कोल इंडिया लिमिटेड
  4. गेल इंडिया लिमिटेड
  5. हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड
  6. इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड
  7. एनटीपीसी लिमिटेड
  8. ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड
  9. पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन
  10. पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड
  11. ग्रामीण विद्युतीकरण निगम लिमिटेड
  12. स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड

सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी आरईसी ( REC Ltd) को भी 'महारत्न' सेंट्रल पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइज (CPSE) का दर्जा मिल गया है। यह दर्जा मिलने से कंपनी को ज्यादा ऑपरेशनल और फाइनेंशियल ऑटोनॉमी मिली है। आरईसी महारत्न का खिताब पाने वाली 12वीं कंपनी है। वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले लोक उपक्रम विभाग ने इस बारे में आदेश जारी किया था। आरईसी का गठन 1969 में हुआ था। यह गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) है जो देशभर में पावर सेक्टर के फाइनेंस और डेवलपमेंट पर केंद्रित है। 

नवरत्न का दर्जा देने के लिए निर्धारित मानदंड:
मिनीरत्न श्रेणी-1 और अनुसूची 'ए' सीपीएसई जिन्होंने पिछले पांच वर्षों में से तीन में समझौता ज्ञापन प्रणाली के तहत 'उत्कृष्ट' या 'बहुत अच्छी ' रेटिंग प्राप्त की है तथा चयनित छह वर्षों में उनका समग्र स्कोर 60 या उससे अधिक है। प्रदर्शन पैरामीटर के आधार निम्न हैं:

  • शुद्ध लाभ से शुद्ध मूल्य ।
  • उत्पादन/सेवाओं की कुल लागत से जनशक्ति लागत ।
  • नियोजित पूंजी पर मूल्यह्रास, ब्याज और करों से पहले लाभ ।
  • टर्नओवर के लिए ब्याज और करों से पहले लाभ।
  • प्रति शेयर कमाई और अंतर क्षेत्रीय प्रदर्शन |

भारत में नवरत्न कंपनियां
देश में अभी तक नवरत्न कंपनियों की संख्या 12 थी। रेल विकास निगम लिमिटेड के जुड़ने के साथ इनकी संख्या 13 हो गई है:

  1. भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड
  2. कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड
  3. इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड
  4. हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड
  5. महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड
  6. नेशनल एल्युमीनियम कंपनी लिमिटेड
  7. नेशनल बिल्डिंग्स कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन लिमिटेड
  8. नेवेली लिग्नाइट कॉर्पोरेशन लिमिटेड
  9. एनएमडीसी लिमिटेड
  10. ऑयल इंडिया लिमिटेड
  11. राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड
  12. शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड
  13. रेल विकास निगम लिमिटेड

मिनीरत्न - 1 श्रेणी की कुल 62 कंपनियां देश में थी। रेल विकास निगम लिमिटेड के नवरत्न में शामिल होने के बाद इनकी संख्या 61 हो गई है। मिनी रत्न - 2 श्रेणी में इस समय देश में 12 कंपनियां शामिल हैं। मिनीरत्न दर्जा देने के लिए निर्धारित मानदंड:

मिनीरत्न श्रेणी का दर्जा: जिन सीपीएसई ने पिछले तीन वर्षों में लगातार लाभ कमाया है, तीन वर्षों में से कम से कम एक कर-पूर्व लाभ 30 करोड़ रुपये या अधिक है और सकारात्मक निवल मूल्य है, वे मिनीरत्न का दर्जा प्रदान करने के पात्र हैं। 
मिनीरत्न श्रेणी ॥ का दर्जा: जिन सीपीएसई ने पिछले तीन वर्षों से लगातार लाभ कमाया है और उनकी निवल संपत्ति सकारात्मक है, वे मिनीरत्न- ॥ का दर्जा देने के लिए पात्र हैं। मिनीरत्न सीपीएसई को सरकार को देय किसी भी ऋण के पुनर्भुगतान/ब्याज भुगतान में चूक नहीं करनी चाहिए। मिनीरत्न सीपीएसई बजटीय सहायता या सरकारी गारंटी पर निर्भर नहीं रहेंगे।

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग के बारे में:
भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग, भारत सरकार का एक सांविधिक निकाय (Statutory Body) है जो प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के प्रावधानों को लागू करने के लिये जिम्मेदार है। कंप्टीशन कमीशन ऑफ इंडिया को मार्च 2009 में गठित किया गया था। राघवन समिति की सिफारिश पर एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापार व्यवहार अधिनियम, 1969 (MRTP Act) को निरस्त करके इसके स्थान पर प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम 2002 लाया गया था। भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग का उद्देश्य निम्नलिखित रूपों में देश भर में एक सुदृढ़ प्रतिस्पद्ध वातावरण तैयार करना है:

  • उपभोक्ता, उद्योग, सरकार और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्राधिकारों सहित सभी हितधारकों के साथ सक्रिय संलग्नता के माध्यम से कार्य करना।
  • उच्च क्षमता स्तर के साथ एक ज्ञान प्रधान संगठन के रूप में दिशा निर्देश जारी करना।
  • प्रवर्तन में पेशेवर कुशलता, पारदर्शिता, संकल्प और ज्ञान के माध्यम से कारोबार की सुगमता को बढ़ावा देना।
  • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 में संशोधन करते हुए प्रतिस्पर्द्धा (संशोधन) अधिनियम, 2007 पारित किया गया था।
  • इसके तहत प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण की भी स्थापना की गई थी।
  • वर्ष 2017 में भारत सरकार ने प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण (COMPAT) को राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) से प्रतिस्थापित कर दिया था।

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के कार्य:

  • प्रतिस्पर्धा के प्रतिकूल प्रथाओं को समाप्त करें
  • क्षमता निर्माण एवं प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने का कार्य करना
  • प्रतिस्पर्धा के मुद्दों पर सरकार को सलाह देना
  • उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना
  • बाजारों में व्यापार की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना
  • प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना और उसे सतत बनाए रखना

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