अमेरिका में Google के खिलाफ चल रहा एक ऐतिहासिक मामला टेक इंडस्ट्री और उपभोक्ताओं दोनों के लिए बड़ा मोड़ साबित हो सकता है। यह मामला Google की ऑनलाइन सर्च और टेक्नोलॉजी मार्केट में अपनी दबदबे वाली स्थिति को चुनौती देता है। अमेरिकी न्याय विभाग (DOJ) और Google के बीच यह लड़ाई न केवल Google की रणनीतियों पर असर डाल सकती है बल्कि पूरी टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री के कामकाज को भी बदल सकती है।
कहां से हुई मामले की शुरुआत?
अगस्त 2024 में अमेरिकी फेडरल जज अमित मेहता ने Google को ऑनलाइन सर्च मार्केट में अपने एकाधिकार का दोषी ठहराया। इसके बाद 20 नवंबर को DOJ ने Google पर सख्त कार्रवाई के लिए कई बड़े प्रस्ताव पेश किए। इन प्रस्तावों का उद्देश्य न केवल सर्च मार्केट को मुक्त करना है बल्कि Chrome ब्राउज़र और Android ऑपरेटिंग सिस्टम में भी प्रतियोगिता को बढ़ावा देना है।
DOJ के प्रस्ताव और Google पर प्रभाव-
DOJ के प्रस्तावों में निम्नलिखित कदम शामिल हैं:
- Google को अपना Chrome ब्राउज़र बेचना होगा।
- Android ऑपरेटिंग सिस्टम का डिवेस्टमेंट किया जा सकता है।
- Google को ब्राउज़र मार्केट में पांच साल तक प्रवेश करने से रोका जाएगा।
- Apple और अन्य कंपनियों को Google को डिफॉल्ट सर्च इंजन बनाने के लिए भुगतान करने पर रोक लगाई जाएगी।
- Google को अपने सर्च इंडेक्स को प्रतियोगियों के लिए नाममात्र शुल्क पर उपलब्ध कराना होगा।
- पब्लिशर्स और कंटेंट क्रिएटर्स को अपनी जानकारी AI मॉडल ट्रेनिंग से ब्लॉक करने की अनुमति दी जाएगी।
Google ने इन प्रस्तावों को “अत्यधिक और हस्तक्षेपकारी” बताते हुए इसका विरोध किया है। कंपनी का कहना है कि इससे:
- उपभोक्ताओं की प्राइवेसी और सिक्योरिटी को खतरा हो सकता है।
- Google के AI इनोवेशन और निवेश प्रभावित होंगे।
- उपयोगकर्ताओं के लिए Google Search का एक्सेस करना मुश्किल हो सकता है।
उपभोक्ताओं पर क्या पड़ेगा प्रभाव?
आज ज्यादातर स्मार्टफोन में Google के ऐप्स और सर्च इंजन डिफॉल्ट रूप से इंस्टॉल रहते हैं। DOJ इस "डिफॉल्ट सेटअप" को खत्म करना चाहता है। इसके लिए DOJ ने “चॉइस स्क्रीन” की बात की है, जिससे उपयोगकर्ताओं को अन्य विकल्पों जैसे Bing, DuckDuckGo, और Brave चुनने का मौका मिलेगा। Google का तर्क है कि यह कदम उपभोक्ताओं के अनुभव को जटिल बना सकता है।
क्या है आगे का रास्ता?
यह मामला अप्रैल 2025 में जज अमित मेहता के सामने अंतिम सुनवाई तक जाएगा। DOJ 7 मार्च 2025 को अपने संशोधित प्रस्ताव पेश करेगा। Google भी अपनी योजनाओं को पेश करेगा। इस बीच, अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का रुख भी महत्वपूर्ण रहेगा। ट्रंप ने पहले Google के खिलाफ सख्त रुख अपनाया था, हालांकि बाद में उन्होंने अपने बयान से पीछे हटने की कोशिश की।
इसका वैश्विक प्रभाव और भारत के लिए मायने-
यह मामला वैश्विक टेक्नोलॉजी मार्केट में बदलाव का संकेत देता है। अगर DOJ के प्रस्ताव लागू होते हैं, तो यह भारत जैसे देशों के लिए भी अहम साबित होगा। भारत में Competition Commission of India (CCI) ने पहले ही Google के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है। यह मामला यह भी दिखाता है कि टेक कंपनियों को नियंत्रित करने के लिए मजबूत नीतियों की आवश्यकता है।
इस मामले से महत्वपूर्ण सीख-
- मोनोपॉली और प्रतिस्पर्धा: यह मामला बताता है कि बाजार में एकाधिकार कैसे प्रतिस्पर्धा को खत्म करता है।
- डेटा और AI: Google द्वारा उपयोगकर्ता डेटा के उपयोग से जुड़ी चिंताएं डिजिटल गवर्नेंस और साइबर सिक्योरिटी के लिए उदाहरण बन सकती हैं।
- नीतिगत हस्तक्षेप: DOJ की रणनीतियां यह समझने में मदद करती हैं कि सरकारें कैसे टेक्नोलॉजी कंपनियों पर नियंत्रण रख सकती हैं।
डिजिटल गवर्नेंस के लिए मील का पत्थर-
Google के खिलाफ चल रहा यह मामला टेक इंडस्ट्री और डिजिटल गवर्नेंस के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस लड़ाई का क्या परिणाम निकलता है और यह दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनी के बिजनेस मॉडल को कैसे बदलता है।