बड़ी खबरें

योगी कैबिनेट की आज होगी बैठक, दो दर्जन प्रस्तावों को मिल सकती है मंजूरी 4 घंटे पहले वायु प्रदूषण से यूपी और दिल्ली के लोगों की पांच साल घट गई जिंदगी, रिपोर्ट में हुआ खुलासा 4 घंटे पहले महिलाओं से बैड टच पर सख्त महिला आयोग, सभी डीएम से बुटीक, जिम और योगा सेंटर की मांगी रिपोर्ट 4 घंटे पहले योगी सरकार ने दिव्यांगजनों के प्रमोशन में आने वाली बाधा की दूर, नियुक्ति विभाग ने जारी किया शासनादेश 4 घंटे पहले उत्तर प्रदेश में दो और पुलिस मॉडर्न स्कूल होंगे स्थापित, डीजीपी ने पुलिस शिक्षा समिति की बैठक में दिए कई निर्देश 4 घंटे पहले यूपी के सहकारी बैंकों के खाली 100 फीसदी सीटों पर जल्द होगी भर्ती प्रक्रिया, निदेशक ने अनुमति के लिए भेजा पत्र 4 घंटे पहले UPSSSC, मुख्य सेविका भर्ती में 126 पद हुए कम, अब 2 हजार 567 पदों पर होगी भर्ती 4 घंटे पहले BHU ने जारी किया 56 स्पेशल कोर्स का बुलेटिन, 21 दिसंबर तक होगा एडमिशन, 300 से 600 रुपए तक होगी रजिस्ट्रेशन फीस 4 घंटे पहले BHU ने जारी किया 56 स्पेशल कोर्स का बुलेटिन, 21 दिसंबर तक होगा एडमिशन, 300 से 600 रुपए तक होगी रजिस्ट्रेशन फीस 4 घंटे पहले काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद मामला, सुप्रीम कोर्ट ने ASI और मस्जिद प्रबंधन को नोटिस जारी किया 2 घंटे पहले

यूपी के लोकगीत - भाग 2

उत्तर प्रदेश हो या कोई अन्य राज्य हो यहाँ के लोकगीत हमेशा उसी क्षेत्र से जुड़े लोगो या क्षेत्रीय संस्कृति का बखान करने वाले होते हैं। ऐसा ही वीर रस से जुड़ा एक संगीत है-आल्हा।

आल्हा

आल्हा बुंदेलखंड क्षेत्र का एक बहुत प्रसिद्ध लोकगीत है। आल्हा की शुरुआत महोबा से हुई और आल्हा वीर रस से सराबोर होता है। यह लोकगीत महोबा जिले के 12वीं शताब्दी के वीर योद्धा आल्हा और ऊदल की वीरता की कहानी है। जो उत्तर भारत के घर-घर में गाया जाता है। दरअसल चंदेल राजा परमार की सेना में आल्हा और ऊदल नाम के दो सेनापति थे जो युद्ध कला में अद्भुत थे इनकी बहादुरी और युद्ध कला के चर्चे इतने ज्यादा फैले के उनके ऊपर जागनिक नामक दरबारी कवि ने पूरा काव्य परमार रासो नामक किताब में लिख डाला। कहा जाता इन दोनों योद्धाओं ने अलग-अलग 52 लड़ाइयां लड़ीं और सभी में विजयी हुए। यही नहीं पृथ्वीराज चौहान और उनकी सेना को भी इनकी लड़ाई से  काफी नुकसान पहुंचाया था। आल्हा-ऊदल को बुंदेलखंड के लोग भगवान की तरह पूजते हैं। आल्हा गीत को ब्रजभाषा, अवधी और भोजपुरी में भी गाया जाता है। आल्हा गीत की खास बात इनके लय में उतार चढाव होता है जैसे-जैसे वीर रस बढ़ता जाता है वैसे-वैसे गायन की गति और तेज होती जाती है। आज भी उत्तर प्रदेश में आल्हा को सुनने के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती है।

बिरहा

बात अगर बिरहा की करें तो बिरहा पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक लोकगीत है। जिसे प्रायः अहीर समुदाय के लोगो द्वारा गया जाता है। बिरहा बिरह शब्द से बना है जिसका मतलब होता है-वियोग। इन लोकगीतों में प्रायः  विरह का भाव होता है। यह भाव पति के विरह में उदास पत्नी की दशा का वर्णन करता है। बिरहा के शब्द इतने तीखे और चुटीले होते हैं की ये व्यक्ति की भावनाओं को झकझोर कर रख देते है इसीलिए बिरहा पूरे उत्तरप्रदेश में एक समय बहुत प्रसिद्ध हुआ था। बिहारी लाल यादव को बिरहा के जनक के रूप में माना जाता है और चूँकि यह गाजीपुर के निवासी थे इसलिए गाजीपुर से फैलते हुए बिरहा धीरे धीरे बिहार क्षेत्र में भी पहुँच गया। बिरहा आजकल भारत के अलावा कई अन्य देशों में भी गया जाता है। दरअसल भारत से बिहार और उत्तरप्रदेश के जो मजदूर काम करने के लिए गिरमिटिया देशों में गए और वही के होकर रह गए और अपने साथ वो इन गीतों को भी ले गए। भले ही आज हम अपने इन लोक गीतों को भूल गए हो पर आज भी मॉरीशस सूरीनाम त्रिनिदाद और टोबैगो जैसे देशों में उत्तरप्रदेश और बिहार के ये गीत गाए जाते हैं।

 

अन्य ख़बरें