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World Cup में छिपा था 'सेहत के दुश्मनों' का गेम प्लान–क्या आप भी बने शिकार?

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2023 क्रिकेट वर्ल्ड कप में आपने जब Team India को खेलते देखा, तो हो सकता है आपको पता भी न चला हो कि आपसे और आपके बच्चों से एक 'खतरनाक खेल' खेला जा रहा था। AIIMS दिल्ली और ICMR की संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च (NICPR) की एक संयुक्त स्टडी ने खुलासा किया है कि क्रिकेट मैचों के दौरान दिखाए गए सेरोगेट तंबाकू, शराब और जंक फूड के विज्ञापनों का बड़ा हिस्सा भारतीय दर्शकों को टारगेट करता है।

स्टडी में क्या पाया गया?

रिपोर्ट के अनुसार, 5 अक्टूबर से 19 नवंबर 2023 के बीच खेले गए कुल 48 मैचों का विश्लेषण किया गया। इन मैचों में 341 घंटे से ज्यादा स्क्रीन टाइम को ट्रेस किया गया और चौंकाने वाला तथ्य सामने आया —

  • 86.7% सेरोगेट तंबाकू विज्ञापन भारतीय टीम के मैचों के दौरान दिखाए गए।

  • मैच ब्रेक्स के दौरान दिखाए गए कुल विज्ञापनों में से 80.9% तंबाकू, शराब और HFSS (ज्यादा फैट, शुगर, साल्ट) वाले जंक फूड से जुड़े थे।

यानी जब सबसे ज्यादा युवा दर्शक टीवी या मोबाइल स्क्रीन पर क्रिकेट देख रहे थे, उन्हीं को सबसे ज्यादा ‘अनहेल्दी’ विज्ञापनों से निशाना बनाया गया।

रोगेट विज्ञापन: कानून की आंखों में धूल?

भारत में तंबाकू और शराब के विज्ञापन केबल टेलीविजन नेटवर्क (Regulation) Act, 1995 और COTPA Act, 2003 के तहत पूरी तरह प्रतिबंधित हैं। फिर भी कंपनियां सेरोगेट ब्रांडिंग के नाम पर उन्हीं प्रोडक्ट्स का विज्ञापन करती हैं — जैसे पान मसाला की जगह 'इलायची' या शराब की जगह 'सोडा' ब्रांड।

डॉ. प्रशांत कुमार सिंह (NICPR) के अनुसार:

"यह पाबंदियों की खुली अनदेखी है। ऐसे विज्ञापन युवाओं के व्यवहार और आदतों पर गहरा असर डालते हैं।"

बच्चों को भी बनाया निशाना!

रिपोर्ट बताती है कि मैच के ओवर ब्रेक्स में दिखाए गए HFSS जंक फूड के 60.6% विज्ञापन ऐसे प्रोडक्ट्स के थे जिन्हें आमतौर पर बच्चे खाते हैं — जैसे चॉकलेट, चिप्स, नमकीन और मीठे ड्रिंक्स। यह चिंता का विषय है, क्योंकि यह बच्चों में मोटापा, डायबिटीज और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ावा दे सकता है।

अब आगे क्या?

AIIMS और NICPR के रिसर्चर्स ने अपनी रिपोर्ट में सरकार से मांग की है कि:

  • सेरोगेट विज्ञापनों पर सख्त निगरानी रखी जाए।

  • स्पोर्ट्स इवेंट्स के दौरान विज्ञापन कंटेंट की पारदर्शिता बढ़ाई जाए।

  • बच्चों और युवाओं को टारगेट करने वाली ब्रांडिंग रणनीतियों पर प्रतिबंध लगे।

मनोरंजन की आड़ में परोसा जा रहा सेहत को ज़हर

यह स्टडी सिर्फ एक रिपोर्ट नहीं, बल्कि एक चेतावनी है — जब हम खेल का आनंद ले रहे थे, तब स्क्रीन पर चल रहे थे ऐसे मैसेज जो हमारे समाज को अंदर ही अंदर बीमार कर सकते हैं। अब समय है कि दर्शक, नियामक एजेंसियां और ब्रॉडकास्टर्स जिम्मेदारी से कदम उठाएं, ताकि खेल मनोरंजन बना रहे, लेकिन बेरोकटोक ब्रांडिंग का जहर उसमें न घुले।

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