उत्तर प्रदेश के संभल में धार्मिक पहचान को लेकर उठा विवाद तब भयावह हो गया जब शाही जामा मस्जिद को हरिहर मंदिर बताने और उसके सर्वे का आदेश दिए जाने के बाद हिंसा भड़क उठी। चार लोगों की जान चली गई, और कई पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हुए। यह घटना न केवल धार्मिक भावनाओं को झकझोरती है, बल्कि कानून-व्यवस्था और प्रशासन की तैयारी पर भी बड़े सवाल खड़े करती है। यह घटनाक्रम उस नाजुक धागे की याद दिलाता है, जो धर्म, राजनीति और न्याय को आपस में जोड़ता है। आइए, इस पूरे मामले को सिलसिलेवार ढंग से समझने की कोशिश करें।
19 नवंबर: याचिका दाखिल, सर्वे का आदेश
मंगलवार, 19 नवंबर को सीनियर एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में याचिका दाखिल की। याचिका में शाही जामा मस्जिद को हरिहर मंदिर बताया गया। अदालत ने मुस्लिम पक्ष को सुने बिना ही ढाई घंटे की सुनवाई में मस्जिद के सर्वे का आदेश जारी कर दिया। कोर्ट ने सर्वे टीम को सात दिन में काम पूरा करने के निर्देश दिए और कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति की। शाम को कोर्ट कमिश्नर और सर्वे टीम ने मस्जिद का दौरा किया। स्थानीय लोगों की भीड़ और मस्जिद कमेटी की उपस्थिति में सर्वे का पहला चरण पूरा हुआ। वीडियोग्राफी के साथ टीम रात में वापस लौट गई।
22 नवंबर: कड़ी सुरक्षा में जुमे की नमाज
शुक्रवार, 22 नवंबर को मस्जिद में जुमे की नमाज शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुई। प्रशासन ने पहले से सतर्कता बरतते हुए 7 थानों की पुलिस फोर्स तैनात की थी। हर गतिविधि पर सीसीटीवी कैमरों से नजर रखी गई। हालांकि, नमाज के दौरान माहौल शांतिपूर्ण रहा।
24 नवंबर: दूसरा चरण और हिंसा की शुरुआत
रविवार, 24 नवंबर को सुबह सात बजे सर्वे टीम अपने दूसरे चरण के लिए मस्जिद पहुंची। मस्जिद के अंदर टीम सर्वे कर रही थी और बाहर पुलिसकर्मी तैनात थे। इसी बीच, हिंसा पर उतारू भीड़ ने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे, लेकिन हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही थी। इस दौरान चार लोगों की मौत हो गई और कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। हिंसा के कारण सर्वे अस्थायी रूप से रोकना पड़ा।
सर्वे का पूरा होना और प्रशासनिक कार्रवाई
दोपहर 11 बजे सर्वे टीम ने शांति बहाल होने के बाद अपना काम पूरा किया। इसके बाद प्रशासन ने संभल तहसील में अगले दिन, 25 नवंबर को नर्सरी से 12वीं तक के सभी स्कूलों को बंद रखने और इंटरनेट सेवाएं बंद करने का आदेश जारी किया। अब तक 21 लोगों को हिरासत में लिया गया है, और शहर में बिना अनुमति किसी भी नेता या संगठन के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है।
मुस्लिम पक्ष का विरोध और प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का हवाला
मुस्लिम पक्ष ने इस सर्वे के खिलाफ आवाज उठाई और प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का हवाला दिया। सपा के पूर्व सांसद एसटी हसन ने कहा कि अदालत का यह आदेश एक्ट का उल्लंघन है और इससे समुदाय को बार-बार परेशान किया जा रहा है।
प्रतिक्रियाएं: राजनीतिक बयानबाजी और प्रशासनिक सफाई
अखिलेश यादव की अपील
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा:
"संभल में शांति बनाए रखें और इंसाफ की उम्मीद न छोड़ें। नाइंसाफी का हुक्म ज्यादा दिन नहीं चलता। सरकार बदलेगी और न्याय का युग आएगा।"
मायावती ने शासन को ठहराया जिम्मेदार
बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा,
"संभल में सर्वे के दौरान जो हुआ, उसके लिए प्रशासन जिम्मेदार है। तनाव को रोकने के लिए दोनों पक्षों से संवाद करना चाहिए था।"
राहुल गांधी का भाजपा पर निशाना
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा,
"प्रशासन की असंवेदनशीलता ने माहौल को और बिगाड़ा। राज्य सरकार की जल्दबाजी भरी कार्रवाई ने हिंसा को जन्म दिया। इसका सीधा जिम्मेदार भाजपा शासन है।"
पुलिस ने दी सफाई
मुरादाबाद के कमिश्नर आंजनेय कुमार सिंह ने कहा,
"पुलिस ने गोली नहीं चलाई। अफवाहें फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। कानून सभी के लिए बराबर है।"
चंद्र शेखर आजाद का बयान
आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्र शेखर ने इस घटना को प्रशासन और सरकार की विफलता बताया। उन्होंने कहा,
"किसी भी धार्मिक स्थल को लेकर बार-बार विवाद खड़ा करना सही नहीं है। हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है।"
संभल में तनाव, शांति की अपील
संभल की हिंसा ने न केवल स्थानीय शांति को भंग किया, बल्कि संवेदनशील धार्मिक मामलों पर प्रशासनिक तैयारियों और निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े किए। अब शहर में शांति बहाल करने की कोशिशें जारी हैं, लेकिन इस घटना ने कई गहरे सवाल छोड़ दिए हैं।