बड़ी खबरें

'संभल में शाही जामा मस्जिद को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के हस्तक्षेप नहीं', सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका 12 घंटे पहले 25 राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों में वन क्षेत्रों पर अतिक्रमण, MP और असम में सबसे ज्यादा 12 घंटे पहले IIT गुवाहाटी ने विकसित की बायोचार तकनीक, अनानास के छिलके-मौसमी के रेशे साफ करेंगे पानी 12 घंटे पहले बेहद खतरनाक जलवायु प्रदूषक है ब्लैक कार्बन, मानसून प्रणाली में उत्पन्न कर रहा है गंभीर बाधा 12 घंटे पहले संपत्ति का ब्योरा न देने वाले आईएएस अफसरों को करें दंडित, संसदीय समिति ने की सिफारिश 12 घंटे पहले 'राष्ट्र को मजबूत बनाती भाषाएं...,' सीएम योगी बोले- राजनीतिक हितों के लिए भावनाओं को भड़का रहे नेता 12 घंटे पहले

कैंसर के खिलाफ AI का बड़ा हथियार, केजीएमयू ने किया सटीक रेडिएशन तकनीक का विकास

Blog Image

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के रेडियोथेरेपी विभाग ने कैंसर के उपचार में एक नई क्रांति ला दी है। विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) पर आधारित एक अद्वितीय उपकरण विकसित किया है, जो कैंसर मरीजों को रेडिएशन की सटीक खुराक देने में सक्षम है। इस नवाचार को न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली है, बल्कि यह कैंसर उपचार को और भी सुरक्षित और प्रभावशाली बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो रहा है।

एआई आधारित उपकरण से मिलेगा सही रेडिएशन-

कैंसर के इलाज में रेडियोथेरेपी का विशेष महत्व होता है। इसमें चुनौती होती है कि कैंसरग्रस्त हिस्से को ज्यादा से ज्यादा रेडिएशन दिया जाए और शरीर के अन्य हिस्सों को नुकसान से बचाया जाए। रेडियोथेरेपी विभाग ने बताया कि इस उपकरण की मदद से मरीज के शरीर के उन हिस्सों को, जो कैंसरग्रस्त नहीं हैं, कम से कम प्रभावित किया जाएगा। इसके साथ ही कैंसर वाले हिस्से को सटीक खुराक मिलेगी, जिससे इलाज अधिक प्रभावी होगा।

कोबाल्ट से लेकर एआई तक का सफर-

रेडियोथेरेपी में नवाचार के इतिहास पर नजर डालें तो सबसे पहले कोबाल्ट मशीन आई थी, जो वर्ग या आयताकार रूप में रेडिएशन देती थी। लेकिन कैंसर का आकार इन सीमाओं में फिट नहीं होता, जिससे अन्य अंगों को भी नुकसान होने की संभावना रहती थी। इसके बाद लीनियर एक्सीलरेटर आया, जो रेडिएशन को कैंसर के आकार के अनुसार ढाल देता था, लेकिन यह मरीज की श्वसन प्रक्रिया के कारण सटीक रेडिएशन देने में सफल नहीं था। अब एआई के आगमन से रेडिएशन थेरेपी और भी परिष्कृत हो गई है। इस नए उपकरण में मरीज की श्वास प्रक्रिया का अध्ययन कर सटीक समय पर रेडिएशन दिया जाता है, जिससे फेफड़े और हृदय जैसे महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान नहीं पहुंचता।

कैसे करता है काम यह उपकरण?

इस उपकरण की खास बात यह है कि यह मरीज के सांस लेने के पैटर्न को लेजर तकनीक की मदद से रिकॉर्ड करता है। इसके आधार पर मरीज के शरीर के उन हिस्सों को पहचान कर रेडिएशन दिया जाता है, जिन पर इसका अधिकतम असर हो और जिनसे अन्य अंगों को बचाया जा सके। फिलहाल इसका इस्तेमाल स्तन कैंसर के मरीजों पर किया जा रहा है और इसके परिणाम बेहद उत्साहजनक हैं।

मलेशिया में मिला अंतरराष्ट्रीय सम्मान-

इस उपकरण को अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी पहचान मिली है। पेनांग, मलेशिया में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में इसे प्रस्तुत किया गया, जहां इस प्रोजेक्ट को विशेष पुरस्कार से नवाजा गया। श्रीराम राजुरकर, जिन्होंने इस प्रोजेक्ट पर वरिष्ठ पीएचडी स्कॉलर के रूप में काम किया, भारत से इस सम्मान को प्राप्त करने वाले एकमात्र प्रतिभागी थे। कुलपति प्रो. सोनिया नित्यानंद ने पूरी टीम को इस उपलब्धि पर बधाई दी है।

कैंसर इलाज में आएगा बड़ा बदलाव?

यह उपकरण कैंसर के इलाज में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। एआई आधारित तकनीक के जरिए यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि मरीज को सही मात्रा में रेडिएशन मिले और इलाज के दौरान शरीर के अन्य हिस्सों को नुकसान से बचाया जा सके। इसके साथ ही, यह तकनीक रेडियोथेरेपी के क्षेत्र में और भी अधिक सटीकता और सुरक्षा प्रदान करेगी। इस सफलता से न केवल केजीएमयू को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है, बल्कि कैंसर के इलाज में भी यह उपकरण एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।

अन्य ख़बरें