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जिसे अब तक ‘क्लीन कार’ समझा जाता था, वह वास्तव में हवा में ‘धीमा ज़हर’ घोल रही है। यूरोपियन यूनियन के सबसे सख्त वाहन उत्सर्जन मानकों — यूरो 6-डी — को पूरा करने वाली गैसोलीन कारें भी गंभीर प्रदूषण फैला रही हैं। जर्मनी के हेल्महोल्ट्ज म्यूनिख और रोस्टॉक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की एक नई अंतरराष्ट्रीय रिसर्च ने इस दिशा में बड़ा खुलासा किया है।
लैब में साफ, असलियत में ज़हर
अध्ययन के अनुसार, इन आधुनिक कारों से निकला धुआं जब सूरज की रोशनी और वातावरण के अन्य तत्वों के संपर्क में आता है, तो वह अत्यंत विषाक्त हो जाता है। वैज्ञानिकों ने बताया कि उत्सर्जन में मौजूद गैसें "फोटोकैमिकल एजिंग" की प्रक्रिया से गुजरते हुए डीएनए को नुकसान पहुंचाने वाली और कोशिकाओं में ऑक्सीडेटिव तनाव पैदा करने वाली बन जाती हैं।
जीपीएफ भी बेअसर
गैसोलीन पार्टिकुलेट फिल्टर (GPF) जैसी आधुनिक तकनीकें सिर्फ टेलपाइप से निकलते ही प्रदूषकों को फिल्टर करती हैं, लेकिन वातावरण में पहुंचने के बाद उत्सर्जन का व्यवहार बदल जाता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि यह विषाक्तता केवल नैनो कणों (SOA, SIA) तक सीमित नहीं रहती, बल्कि वायुमंडल में बनने वाले कार्बोनिल यौगिकों तक फैलती है, जो फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं।
मानकों में बदलाव की ज़रूरत
शोधकर्ताओं ने वायु गुणवत्ता और वाहन उत्सर्जन मानकों को फिर से परिभाषित करने की सिफारिश की है। उनका कहना है कि मौजूदा नियम केवल प्राथमिक प्रदूषकों पर केंद्रित हैं, जबकि द्वितीयक रसायनिक रूपांतरण से बने प्रदूषक कहीं अधिक खतरनाक हैं और इन्हें भी नियंत्रित करना ज़रूरी है।
स्वास्थ्य पर सीधा असर
इस रिसर्च के अनुसार, यह उत्सर्जन न सिर्फ सामान्य फेफड़ों की कोशिकाओं को प्रभावित करता है बल्कि कैंसरग्रस्त कोशिकाओं में भी डीएनए को नुकसान पहुंचाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक ‘साइलेंट हेल्थ क्राइसिस’ बन सकता है, अगर जल्द कार्रवाई नहीं की गई।
क्लीन कारों का काला सच: ज़हरीला उत्सर्जन बना खतरा
सख्त मानकों के बावजूद अगर वाहन हवा को ज़हरीला बना रहे हैं, तो तकनीक के साथ-साथ नीति में भी बदलाव आवश्यक है। यह अध्ययन नीति-निर्माताओं, वाहन निर्माताओं और आम जनता – सभी के लिए एक चेतावनी है कि ‘क्लीन’ दिखने वाला उत्सर्जन भी असल में जानलेवा हो सकता है।
Baten UP Ki Desk
Published : 31 May, 2025, 12:27 pm
Author Info : Baten UP Ki