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घरेलू बायोमास से बनेगा बायोप्लास्टिक,पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक को करेगा पीछे!

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दुनिया भर में प्लास्टिक प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है, जो न केवल पर्यावरण के लिए एक गंभीर खतरा बन चुका है, बल्कि जलवायु परिवर्तन और जलीय जीवन को भी प्रभावित कर रहा है। महासागरों में प्लास्टिक के मल्टीलेयर पैच समुद्री जीवन के लिए घातक बनते जा रहे हैं, और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक हजारों सालों तक नष्ट नहीं होता। लेकिन अब इस समस्या का हल बीबीएयू के वैज्ञानिक डॉ. रवि गुप्ता ने ढूंढ लिया है। उन्होंने बैक्टीरिया और गाय के गोबर से बायोप्लास्टिक विकसित किया है, जो केवल 40-50 वर्षों में नष्ट होकर प्राकृतिक रूप से घुल जाएगा और इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होगा।

भारत सरकार ने दिया पेटेंट

डॉ. गुप्ता ने बैक्टीरिया और गाय के गोबर से कम लागत में बायोप्लास्टिक का उत्पादन किया है। इस बायोप्लास्टिक का उपयोग रोज़मर्रा की प्लास्टिक वस्तुएं, जैसे बोतलें, पॉलीबैग, और अन्य सामान बनाने के लिए किया जा सकता है। इस बायोप्लास्टिक के लिए भारत सरकार ने उन्हें 20 वर्षों का पेटेंट प्रदान किया है, और उनका यह शोध प्लास्टिक के प्रदूषण से निपटने में एक नई क्रांति की शुरुआत कर सकता है।

पारंपरिक प्लास्टिक से कम और सस्ता

प्लास्टिक के उत्पादन के लिए आमतौर पर पेट्रोलियम आधारित सामग्री का इस्तेमाल होता है, जो पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। डॉ. गुप्ता ने गाय के गोबर का उपयोग करके बायोप्लास्टिक के उत्पादन की लागत को लगभग 200 गुना कम किया है, जिससे यह व्यावसायिक रूप से भी आकर्षक और प्रभावी विकल्प बन गया है। इस प्रक्रिया से उत्पादित बायोप्लास्टिक का कोई रासायनिक प्रभाव नहीं होगा और यह 40-50 वर्षों में पूरी तरह से प्राकृतिक रूप से नष्ट हो जाएगा।

घरेलू बायोमास से बनेंगे बायोप्लास्टिक

डॉ. गुप्ता और उनके शोध दल ने बायोडिग्रेडेबल बायोप्लास्टिक को बनाने के लिए घरेलू बायोमास का उपयोग किया है। गन्ना, मक्का, गेहूं, चावल और केले के छिलके जैसे प्राकृतिक पदार्थों से बायोप्लास्टिक तैयार किया जा सकता है। इनमें सूक्ष्मजीवों द्वारा संश्लेषित पॉलीहाइड्रॉक्सी ब्यूटिरेट (PHB) जैसे गुण होते हैं, जो बायोप्लास्टिक के निर्माण में मदद करते हैं।

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