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चंद्रयान-मंगलयान के बाद अब समुद्र की गहराइयों में भारत का अगला कदम!

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भारत ने अंतरिक्ष में चंद्रयान-3 और आदित्य एल-1 जैसे मिशनों से सफलता प्राप्त करने के बाद अब समुद्र की गहराइयों में कदम रखने की तैयारी कर ली है। देश का नवीनतम और महत्वाकांक्षी मिशन है - समुद्रयान मिशन, जो भारत को समुद्र की गहराइयों में छिपे अनमोल खज़ानों तक पहुंचाने में मदद करेगा। यह मिशन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही यह भारत की तकनीकी क्षमता का प्रतीक भी है।

6000 मीटर की गहराई तक भारत की यात्रा-

भारत इस मिशन के तहत समुद्र की 6000 मीटर गहराई तक जाने की योजना बना रहा है, जो देश की स्वदेशी पनडुब्बी मत्स्य-6000 के ज़रिए संभव होगा। पनडुब्बी के सभी हिस्सों को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) द्वारा पूरी तरह से इंटीग्रेट किया जा चुका है। इस परियोजना का वेट टेस्ट यानी समुद्र में इसका पहला परीक्षण अक्टूबर के अंत या नवंबर की शुरुआत में होने वाला है।

समुद्रयान मिशन का उद्देश्य और महत्व-

इस मिशन की कुल लागत लगभग 4100 करोड़ रुपए है, और इसका मुख्य उद्देश्य समुद्र की गहराइयों में छिपे दुर्लभ खनिजों का खनन करना है। ये खनिज, जिनमें गैस हाइड्रेट्स, पॉलिमैटेलिक मैन्गनीज नॉड्यूल्स, हाइड्रो-थर्मल सल्फाइड्स और कोबाल्ट शामिल हैं, समुद्र की 1000 से 5500 मीटर तक की गहराइयों में पाए जाते हैं। समुद्रयान के जरिए इन दुर्लभ खनिजों के भंडार तक पहुंचने और उनकी जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया जाएगा। साथ ही, इस मिशन का उपयोग समुद्री जलवायु परिवर्तन की निगरानी और अध्ययन के लिए भी किया जाएगा।

मत्स्य-6000: स्वदेशी पनडुब्बी-

मत्स्य-6000 भारत की स्वदेशी तकनीक से विकसित की गई एक अत्याधुनिक पनडुब्बी है। इसका नाम भगवान विष्णु के अवतार मत्स्य के नाम पर रखा गया है। यह पनडुब्बी समुद्र के तल के 600 गुना अधिक दबाव को सहन कर सकती है और इसमें 2.1 मीटर का व्यास है, जिससे तीन व्यक्ति एक साथ 12 घंटे तक समुद्र की गहराई में रह सकते हैं। आपात स्थिति में इसमें 96 घंटे तक का जीवन समर्थन प्रणाली भी मौजूद है।

  • पनडुब्बी के प्रमुख फीचर्स में शामिल हैं:
  • उन्नत जीवन समर्थन प्रणाली
  • रोबोटिक आर्म्स से सैंपल संग्रहण की सुविधा
  • नेविगेशन उपकरण
  • उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग सिस्टम

वेट टेस्ट और आगामी योजनाएँ-

वेट टेस्ट के दौरान मत्स्य-6000 को चेन्नई बंदरगाह पर समुद्र में लगभग 15 मीटर की गहराई में उतारा जाएगा। इस परीक्षण का उद्देश्य पनडुब्बी की क्षमता, गति, जीवन समर्थन प्रणालियों की दक्षता और पानी के नीचे संचार प्रणाली की जांच करना है। साथ ही, यह भी देखा जाएगा कि पनडुब्बी समुद्र के गहरे दबाव को कितनी कुशलता से सह सकती है। परीक्षण के परिणामों के आधार पर आवश्यक सुधार किए जाएंगे, ताकि मिशन 2026 तक सफलतापूर्वक पूरा हो सके।

भारत की बढ़ती समुद्री शक्ति

समुद्रयान मिशन भारत को उन चुनिंदा देशों की कतार में खड़ा करेगा, जिनके पास समुद्र की गहराइयों तक पहुंचने की तकनीक है। फिलहाल अमेरिका, रूस, जापान, फ्रांस और चीन जैसे देशों के पास यह तकनीक है, और अब भारत भी इसी सूची में शामिल होने की ओर अग्रसर है। यह मिशन भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियों में एक और मील का पत्थर साबित होगा।समुद्रयान मिशन न केवल भारत के समुद्री अध्ययन में एक नया युग लेकर आएगा, बल्कि यह देश की तकनीकी क्षमता को भी वैश्विक स्तर पर स्थापित करेगा। यह मिशन भारत के लिए आर्थिक, वैज्ञानिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है। जैसे चंद्रयान-3 और आदित्य एल-1 ने अंतरिक्ष में भारत को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया, वैसे ही समुद्रयान मिशन देश को समुद्र की गहराइयों में अग्रणी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। भारत अब न केवल अंतरिक्ष में बल्कि समुद्र की गहराइयों में भी अन्वेषण के क्षेत्र में एक नया इतिहास रचने की ओर बढ़ रहा है।

 

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