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दुर्गा पूजा में क्यों इतना ख़ास है धुनुची नृत्य?

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भारत में जब भी त्यौहारों की बात होती है, तो दुर्गा पूजा का जिक्र जरूर आता है। दुर्गा पूजा सिर्फ़ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि बंगाल की संस्कृति और भावना का प्रतीक है। यह पर्व न सिर्फ़ बंगाल में, बल्कि उत्तरप्रदेश और बिहार समेत पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। पंडाल, मूर्तियाँ, लाइटिंग, सांस्कृतिक कार्यक्रम और खासकर धुनुची नृत्य – ये सब मिलकर इस त्योहार को खास बनाते हैं।  लेकिन इस साल लेकिन 'धुनुची नृत्य' पर  इस बार संकट के बादल मंडरा रहे हैं। 

 कैसा किया जाता है धुनुची नृत्य?

दरअसल धुनुची नृत्य, दुर्गा पूजा के दौरान किया जाने वाला एक खास भक्ति नृत्य है। इसमें भक्तगण एक 'धुनुची' नामक मिट्टी के बर्तन में जलती हुई धूप, नारियल की भूसी, और अन्य हवन सामग्रियों के साथ देवी दुर्गा के समक्ष नृत्य करते हैं। यह बर्तन आधा खुला होता है, और इससे उठने वाली धुएं की खुशबू देवी को समर्पित की जाती है। इस नृत्य का सबसे बड़ा आकर्षण यह है कि इसे कोई भी कर सकता है – महिलाएं, पुरुष, बच्चे – सभी इस परंपरा का हिस्सा बन सकते हैं।

 धुनुची नृत्य के पीछे क्या है कथा?

आपको जानकर हैरानी होगी कि धुनुची नृत्य सिर्फ़ एक साधारण नृत्य नहीं है। यह शक्ति और भक्ति का प्रतीक है। मान्यता है कि देवी दुर्गा ने महिषासुर के वध से पहले अपनी शक्तियों को जागृत करने के लिए इस नृत्य को किया था। तभी से इस परंपरा की शुरुआत हुई। आज भी, जब भक्त इस नृत्य को करते हैं, तो वे देवी दुर्गा के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण को व्यक्त करते हैं। नृत्य के दौरान जलती हुई धूप और धुएं से वातावरण एक अलग ही आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है।

धुनुची नृत्य का क्या है विशेष महत्व?

इसमें नर्तक अपने हाथों में जलते हुए धुनुची को पकड़कर पारंपरिक धुन पर नृत्य करते हैं। यह धुन ढाक, शंख और अन्य वाद्ययंत्रों के ताल के साथ होती है, जो पूजा का माहौल पूरी तरह से भक्ति में डुबो देता है। कुछ नर्तक इतने कुशल होते हैं कि वे अपने मुंह या सिर पर धुनुची को संतुलित करके भी नृत्य करते हैं। नर्तक विभिन्न मुद्राओं में धुनुची के साथ झूमते हैं, जो इस नृत्य को और भी मनोरंजक और भक्ति-पूर्ण बना देता है। यह दृश्य न केवल नर्तकों के लिए, बल्कि दर्शकों के लिए भी एक अद्भुत अनुभव होता है। इसका विशेष महत्व महानवमी के दिन होता है। सप्तमी से शुरू होकर महानवमी तक, यह नृत्य हर शाम दुर्गा आरती के दौरान किया जाता है। पंडालों में यह दृश्य तब और भी खास हो जाता है, जब सैकड़ों लोग एक साथ इस नृत्य में भाग लेते हैं। यह केवल एक नृत्य नहीं, बल्कि देवी को धन्यवाद और आशीर्वाद प्राप्त करने का तरीका है।

धुनुची नृत्य को लेकर एक बड़ी चुनौती-

इस साल 2024 की दुर्गा पूजा के लिए धुनुची नृत्य को लेकर एक बड़ी चुनौती सामने आ रही है। नारियल की भूसी, जो इस नृत्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लखनऊ जैसे शहरों में उपलब्ध नहीं हो पा रही है। पूजा समितियों के लोग महीनों से बाज़ारों में इसकी तलाश कर रहे हैं, लेकिन ज़रूरत के मुताबिक मात्रा में भूसी नहीं मिल पा रही है। इससे धुनुची नृत्य की परंपरा पर असर पड़ने की संभावना है। नारियल की भूसी के लिए पूरा नारियल खरीदना पड़ता है, जिससे लागत बहुत बढ़ जाती है। इस कमी का सीधा असर न सिर्फ़ नृत्य पर, बल्कि भक्तों और आयोजकों पर भी पड़ सकता है। अगर भूसी की कमी बनी रही, तो आयोजकों को अन्य विकल्प अपनाने पड़ेंगे, जैसे कि नारियल की रस्सी या लकड़ी का उपयोग करना। लेकिन इससे धुनुची नृत्य की पारंपरिक सुंदरता पर प्रभाव पड़ सकता है। 

धार्मिक आयोजनों में पर्यावरण का ध्यान-

यह कमी सिर्फ़ धार्मिक आयोजन को ही प्रभावित नहीं करेगी, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी नुकसानदायक साबित हो सकती है। लोग कम टिकाऊ विकल्पों की ओर रुख कर सकते हैं, जिससे पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को नुकसान हो सकता है। आजकल धार्मिक आयोजनों में भी पर्यावरण को ध्यान में रखा जा रहा है, और ऐसे में भूसी की कमी एक बड़ी समस्या बनकर सामने आई है। यह नृत्य देवी दुर्गा के प्रति भक्ति का एक अद्वितीय तरीका है, जो सदियों से चला आ रहा है। उम्मीद करते हैं कि पूजा समितियों की कोशिशें रंग लाएंगी, और इस साल भी हम इस भव्य नृत्य का आनंद उठा पाएंगे।

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