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अमेरिका ग्रीनलैंड के लिए दीवाना क्यों है?

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आज हम बात करेंगे एक ऐसे मुद्दे पर, जो न केवल ऐतिहासिक है बल्कि भू-राजनीति और वैश्विक रणनीतियों से भी जुड़ा हुआ है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर ग्रीनलैंड को खरीदने की इच्छा जाहिर की थी। हालांकि, ग्रीनलैंड ने स्पष्ट रूप से कह दिया – “हम बिकाऊ नहीं हैं!” लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों ग्रीनलैंड अमेरिका के लिए इतना महत्वपूर्ण है? अमेरिका ने पहले कब और कैसे नए क्षेत्र खरीदे हैं? और ग्रीनलैंड को खरीदने की कोशिशें पहले भी क्यों हुईं? आइए, इन सवालों का जवाब जानते हैं।

ग्रीनलैंड की अहमियत: तीन प्रमुख वजहें-

  • भौगोलिक और रणनीतिक स्थिति

ग्रीनलैंड कभी डेनमार्क का उपनिवेश था और अब यह डेनमार्क का स्वायत्त क्षेत्र है। यह उत्तरी अटलांटिक महासागर में, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बीच स्थित है। शीत युद्ध के समय से ही इसका भू-राजनीतिक महत्व बढ़ा है। यहां अमेरिका का एक बड़ा एयरबेस – पिटुफिक स्पेस बेस (पहले थुले एयर बेस) मौजूद है। यह बेस अमेरिका को रूस, चीन या उत्तर कोरिया से आने वाली मिसाइलों की निगरानी और उन्हें रोकने में मदद करता है।

  • खनिज संपदा

ग्रीनलैंड दुर्लभ खनिजों का खजाना है, जिनका उपयोग मोबाइल फोन, इलेक्ट्रिक गाड़ियों और हथियारों के निर्माण में होता है। फिलहाल, इन खनिजों का प्रमुख आपूर्तिकर्ता चीन है। 2021 में ग्रीनलैंड ने यूरेनियम खनन पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन खनिज संपदा के चलते यह अमेरिका के लिए बेहद आकर्षक है।

  • आर्कटिक में नई संभावनाएं

ग्लोबल वार्मिंग के चलते आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ पिघल रही है, जिससे नए समुद्री मार्ग खुल सकते हैं। इन मार्गों पर रूस और चीन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। अमेरिका इन देशों के प्रभुत्व को रोकना चाहता है, और ग्रीनलैंड इस रणनीति का अहम हिस्सा बन सकता है।

डोनाल्ड ट्रंप और ग्रीनलैंड का ‘रियल एस्टेट सौदा’-

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान ग्रीनलैंड को खरीदने की इच्छा व्यक्त की थी। उन्होंने इसे “एक बड़ा रियल एस्टेट सौदा” बताया। लेकिन जब डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन ने इस प्रस्ताव को ‘बेतुका’ करार दिया, तो ट्रंप ने डेनमार्क की अपनी यात्रा रद्द कर दी।

ग्रीनलैंड को खरीदने की ऐतिहासिक कोशिशें

ग्रीनलैंड को खरीदने की यह पहली कोशिश नहीं थी।

  • 1946: राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन ने ग्रीनलैंड को खरीदने के लिए डेनमार्क को 10 करोड़ डॉलर का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने यहां तक सुझाव दिया था कि अलास्का के कुछ हिस्से के बदले ग्रीनलैंड को लिया जा सकता है। हालांकि, यह योजना सफल नहीं हुई।

  • 1867: अमेरिकी विदेश विभाग ने पहली बार ग्रीनलैंड को खरीदने की संभावना पर विचार किया था, लेकिन तब भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

अमेरिका की ऐतिहासिक क्षेत्रीय खरीद-

अमेरिका ने अपने इतिहास में कई बार नए क्षेत्रों को खरीदा है। आइए, इन ऐतिहासिक सौदों पर एक नजर डालते हैं:

  • अलास्का की खरीद (1867): रूस से अलास्का को 72 लाख डॉलर में खरीदा गया। इस सौदे के जरिए अमेरिका को 15 लाख वर्ग किलोमीटर जमीन मिली।
  • लुइसियाना खरीद (1803): फ्रांस से 2 करोड़ वर्ग किलोमीटर जमीन खरीदी गई। इस सौदे के लिए अमेरिका ने 1.5 करोड़ डॉलर चुकाए।
  • डेनिश वेस्ट इंडीज (1917): अमेरिका ने कैरेबियन में डेनमार्क से कुछ द्वीप खरीदे और इन्हें यूएस वर्जिन आइलैंड्स नाम दिया।

ग्रीनलैंड क्यों ‘बिकाऊ नहीं’ है?

ग्रीनलैंड के निवासियों और डेनमार्क की सरकार ने अमेरिका के प्रस्तावों को हर बार ठुकरा दिया है। इसका कारण केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक भी है। ग्रीनलैंड अपने स्वायत्त शासन को बनाए रखना चाहता है और अपनी भूमि को बिक्री के लिए तैयार नहीं देखता।

ग्रीनलैंड: भू-राजनीतिक रणनीति और वैश्विक प्रभुत्व की अहम कड़ी-

ग्रीनलैंड अमेरिका के लिए केवल एक भूखंड नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक रणनीति, खनिज संसाधनों और वैश्विक प्रभुत्व का केंद्र है। हालांकि, ग्रीनलैंड की स्वायत्तता और डेनमार्क के साथ उसके गहरे संबंध इसे ‘बिकाऊ’ बनने से रोकते हैं। लेकिन इस कहानी से यह साफ है कि वैश्विक राजनीति में जमीन के टुकड़े भी कितने महत्वपूर्ण हो सकते हैं।

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