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महंगी दवाओं का सस्ता विकल्प बायोसिमिलर, लेकिन भारत में नियम बने बाधा!

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कैंसर, डायबिटीज़ और कई गंभीर बीमारियों का इलाज आम आदमी की पहुंच में लाने के लिए बायोसिमिलर मेडिसिन अहम भूमिका निभा सकती हैं। ये दवाएं महंगी जैविक दवाओं (Biologic Drugs) की किफायती प्रतिलिपि होती हैं, लेकिन इन्हें बनाने और बाजार में लाने की प्रक्रिया इतनी जटिल और महंगी है कि इसका लाभ लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा।

जेनेरिक और बायोसिमिलर मेडिसिन में क्या अंतर?

मेडिकल बाजार में दो प्रकार की सस्ती दवाएं उपलब्ध होती हैं—

1️⃣ जेनेरिक मेडिसिन: ये किसी ब्रांडेड दवा की नकल होती हैं लेकिन बहुत सस्ती मिलती हैं। उदाहरण के लिए, अगर किसी ब्रांडेड पेनकिलर की कीमत 100 रुपये है, तो उसकी जेनेरिक दवा सिर्फ 5-10 रुपये में मिल सकती है।

2️⃣ बायोसिमिलर मेडिसिन: ये बायोलॉजिकल दवाओं की कॉपी होती हैं, लेकिन इन्हें हुबहू बनाना मुश्किल होता है। इनके निर्माण में ज्यादा रिसर्च और टेस्टिंग की जरूरत पड़ती है, जिससे इनकी लागत बढ़ जाती है।

भारत में बायोसिमिलर के सामने चुनौतियां

भारत में बायोसिमिलर दवाओं को मंजूरी दिलाने के लिए बेहद सख्त और महंगे नियम बनाए गए हैं। कंपनियों को महंगे और अनावश्यक परीक्षणों से गुजरना पड़ता है, जिससे इनकी कीमत बढ़ जाती है। बड़ी फार्मा कंपनियां कानूनी लड़ाई लड़कर इन सस्ती दवाओं की लॉन्चिंग रोकती हैं, ताकि उनकी महंगी दवाओं की मोनोपोली बनी रहे। इसके विपरीत, अमेरिका, यूरोप और यूके जैसे देशों ने अपने नियमों को लचीला बनाकर बायोसिमिलर को तेजी से बाजार में आने दिया है। WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) का भी कहना है कि अगर किसी बायोसिमिलर की गुणवत्ता साबित हो चुकी है, तो उसे बार-बार टेस्ट करने की जरूरत नहीं है।

दुनिया से पीछे छूट रहा भारत

आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत ने साल 2000 में अपनी पहली बायोसिमिलर दवा लॉन्च की थी, जो अमेरिका और यूरोप से भी पहले थी। लेकिन अब हम पीछे रह गए हैं क्योंकि हमारे नियम पुराने हो चुके हैं। UK सरकार ने हाल ही में कहा कि “सभी बायोसिमिलर के लिए महंगे क्लीनिकल टेस्ट्स ज़रूरी नहीं हैं।” ऐसे में अगर भारत भी अपने नियमों में बदलाव करे, तो लाखों लोगों को कैंसर, डायबिटीज़ और अन्य गंभीर बीमारियों की दवाएं सस्ते दामों पर मिल सकती हैं।

सरकार से अपेक्षाएं

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत में बायोसिमिलर को लेकर नीतिगत सुधार किए जाएं, तो यह जेनेरिक दवाओं की तरह सस्ती और सुलभ हो सकती हैं। इसके लिए जरूरी है कि—

  • अनावश्यक परीक्षणों को हटाया जाए, ताकि कंपनियों की लागत कम हो सके।

  • नवाचार को बढ़ावा दिया जाए, जिससे घरेलू कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सकें।

  • बड़ी फार्मा कंपनियों की मोनोपोली को खत्म करने के लिए कानून बनाए जाएं, ताकि सस्ती दवाओं की उपलब्धता बढ़ाई जा सके।

अगर सही कदम उठाए गए, तो बायोसिमिलर मेडिसिन भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती हैं। इससे आम जनता को महंगे इलाज से राहत मिलेगी और देश एक बार फिर इस क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व कर सकेगा।

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