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SC के फैसले के बाद खत्म हुआ एमसीडी एल्डरमैन नियुक्ति विवाद, जानिए क्या है पूरा मामला

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दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में एल्डरमैन की भूमिका और उनकी नियुक्ति को लेकर काफी विवाद हुआ । यह विवाद आम आदमी पार्टी (AAP) और दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) के बीच गरमाया हुआ था। आज सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाया, जिससे स्थिति और स्पष्ट हो गई है क्योंकि यह फैसला एमसीडी में एल्डरमैन की नियुक्ति पर एलजी वीके सक्सेना के पक्ष में सुनाया गया है। सर्वोच्च अदालत ने उपराज्यपाल को बिना सरकार की सलाह के नियुक्ति करने का अधिकार दिया है। एमसीडी अधिनियम के तहत 25 वर्ष से अधिक आयु के 10 विशेषज्ञ व्यक्तियों को एल्डरमैन के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला-

इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि एल्डरमैन की नियुक्ति का अधिकार लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास है। सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल वीके सक्सेना के पक्ष में फैसला सुनाते हुए एमसीडी में एल्डरमैन की नियुक्ति को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उपराज्यपाल (एलजी) सरकार की सलाह के बिना भी एमसीडी में एल्डरमैन की नियुक्ति कर सकते हैं। यह अधिकार एक्जीक्यूटिव अधिकार नहीं है, इसलिए सलाह लेने की आवश्यकता नहीं है। 

एल्डरमैन कौन होते हैं?

एमसीडी (म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ऑफ दिल्ली) में एल्डरमैन वे लोग होते हैं जिन्हें सीधे तौर पर जनता द्वारा नहीं चुना जाता है। इन्हें विशेष योग्यताओं, अनुभव और विशेषज्ञता के आधार पर नामांकित किया जाता है ताकि वे नगर निगम के कार्यों में सहायता कर सकें। एल्डरमैन का काम एमसीडी की बैठकों में भाग लेना, विभिन्न समितियों में सलाह देना और नीतिगत निर्णयों में योगदान देना होता है।

एल्डरमैन से जुड़ा इतिहास क्या है?

एल्डरमैन शब्द की शुरुआत पुराने अंग्रेजी शब्द एल्डोरमैन से हुई है, जिसका मतलब होता है बुजुर्ग आदमी। इसका मतलब किसी खास क्षेत्र में विशेषज्ञ व्यक्ति। दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 के अनुसार, दिल्ली के उपराज्यपाल निगम में 25 साल से ऊपर की उम्र के दस लोगों को मनोनीत कर सकते हैं। उम्मीद की जाती है कि इन लोगों को नगरपालिका प्रशासन में विशेषज्ञता या अनुभव होगा।

एल्डरमैन की नियुक्ति और कार्य-

एल्डरमैन मेयर के चुनाव में वोट नहीं डाल सकते। हालांकि, वे वार्ड समिति के सदस्यों के रूप में एमसीडी के 12 जोन में से प्रत्येक के लिए एक प्रतिनिधि चुनने के लिए वोट डाल सकते हैं। मतदान अधिकारों से जुड़े प्रतिबंधों को छोड़कर, एल्डरमैन की भूमिका एक पार्षद के समान होती है। पूर्व उत्तर दिल्ली नगर निगम के कानूनी अधिकारी अनिल गुप्ता के अनुसार, एल्डरमैन को भी क्षेत्र के विकास के उद्देश्यों के लिए एक पार्षद को मिलने वाला धन प्राप्त हो सकता है।

AAP-LG विवाद के क्या थे कारण?

विवाद की जड़ तब शुरू हुई जब दिल्ली के उपराज्यपाल ने कई एल्डरमैन की नियुक्ति की। आम आदमी पार्टी ने इस पर आपत्ति जताई, उनका कहना था कि यह नियुक्तियां राजनीतिक हितों को साधने के लिए की गई हैं और इससे नगर निगम की स्वायत्तता पर आंच आ सकती है। AAP का आरोप था कि LG ने बिना परामर्श के और अनुचित तरीके से एल्डरमैन की नियुक्ति की है।

दिल्ली के एलजी एल्डरमैन की कैसे करते हैं नियुक्ति?

सर्वोच्च अदालत ने एलजी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कई महत्वपूर्ण बातों का जिक्र किया जिसमें जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि दिल्ली नगर निगम अधिनियम की धारा 3(3)(बी) के अनुसार, उपराज्यपाल 25 वर्ष से कम उम्र के नहीं होने चाहिए और नगरपालिका प्रशासन में विशेष ज्ञान या अनुभव वाले 10 व्यक्तियों को नामित कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह सुझाव गलत है कि दिल्ली में उपराज्यपाल की शक्ति एक शब्दार्थिक लॉटरी थी। यह संसद द्वारा बनाया गया कानून है, जो उपराज्यपाल द्वारा प्रयोग किए गए विवेक को पूरा करता है क्योंकि कानून उसे ऐसा करने के लिए कहता है और यह अनुच्छेद 239 के अपवाद के अंतर्गत आता है। 1993 का डीएमसी अधिनियम था जिसने पहली बार उपराज्यपाल को नामित करने की शक्ति दी थी और यह अतीत की कोई विरासत नहीं है।इस फैसले से स्पष्ट है कि एलजी की यह शक्ति कानून द्वारा निर्धारित है और यह पूरी तरह से वैध है। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि उपराज्यपाल की नियुक्ति प्रक्रिया संविधान के तहत दी गई शक्तियों के अनुसार ही है।

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