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जब एक जज के फैसले ने हिला दी थी...भारत की सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री की कुर्सी!

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25 जून 2025 — आज से ठीक 50 साल पहले भारत में आपातकाल (Emergency) लागू हुआ था। लेकिन इसकी पृष्ठभूमि बनी एक ऐसी तारीख, जिसने भारतीय राजनीति की धारा ही बदल दी — 12 जून 1975। यह वही दिन था, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक ईमानदार जज, जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके चुनाव में दोषी करार देते हुए लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी थी।

जज का फैसला, जो देश में भूचाल बन गया

सुबह 9:55 बजे, इलाहाबाद हाईकोर्ट का कमरा नंबर 24। कोर्ट में जैसे ही जस्टिस सिन्हा दाखिल हुए, उनके पेशकार ने ऐलान किया— "कोई ताली नहीं बजेगी"। लेकिन जब उन्होंने कहा "याचिका स्वीकार की जाती है" तो कोर्टरूम सन्नाटे से तालियों की गूंज में बदल गया।

यह मामला 1971 के आम चुनाव से जुड़ा था, जहां समाजवादी नेता राजनारायण ने इंदिरा गांधी की जीत को चुनौती दी थी। जस्टिस सिन्हा ने इंदिरा गांधी को दो बिंदुओं पर दोषी पाया:

  1. सरकारी अफसर यशपाल कपूर को समय से पहले चुनाव एजेंट बनाना।

  2. चुनाव प्रचार में सरकारी संसाधनों का गलत इस्तेमाल।

जब दिल्ली में टेलीप्रिंटर पर उभरा — "Mrs. Gandhi unseated"

दिल्ली में प्रधानमंत्री कार्यालय में जैसे ही यह खबर पहुँची, इंदिरा गांधी के निजी सचिव एन.के. शेषन ने टेलीप्रिंटर पर पढ़ा – “Mrs. Gandhi unseated!” राजीव गांधी को यह खबर दी गई, और वे सबसे पहले अपनी मां को सूचित करने वाले बने।

भारी दबाव, फिर भी झुके नहीं जस्टिस सिन्हा

सरकार की ओर से फैसला टालने के लिए कई प्रयास किए गए। कांग्रेस सांसदों का जस्टिस सिन्हा के घर आना-जाना बढ़ गया। यहाँ तक कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने भी फोन करके फैसला जुलाई तक टालने का अनुरोध किया, लेकिन जस्टिस सिन्हा अडिग रहे। उन्होंने साफ कहा – “फैसला 12 जून को ही सुनाया जाएगा।” सरकार ने CID को तैनात किया ताकि फैसला लीक हो सके। यहां तक कि जस्टिस सिन्हा के सेक्रेटरी मन्ना लाल को धमकाया गया, लेकिन उन्होंने भी कोई जानकारी लीक नहीं की।

इंदिरा गांधी को कोर्ट में बुलाया गया तो…

जब इंदिरा गांधी को गवाही के लिए कोर्ट बुलाया गया, तो जस्टिस सिन्हा ने कहा – “किसी को भी उनके सम्मान में खड़ा होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि कानून सबके लिए समान है।” यह लोकतंत्र और न्याय की भावना का जीवंत उदाहरण था।

50 साल बाद भी उतनी ही प्रासंगिक है यह मिसाल

आज, जब आपातकाल के 50 साल पूरे हुए हैं, BJP इसे संविधान हत्या दिवस के रूप में मना रही है। वहीं, जस्टिस सिन्हा का साहसिक निर्णय आज भी हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र की असली ताकत न्याय, ईमानदारी और निष्पक्षता में निहित है।

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