बड़ी खबरें
(साभार ध्येय टीवी, एपिसोड- 3)
1990 का वह दशक जब भारतीय चुनाव प्रणाली में भ्रष्टाचार और धांधली चरम पर थी। पैसे और बाहुबल के दम पर सत्ता तक पहुंचने का खेल आम हो चुका था। लेकिन तभी इस भ्रष्ट व्यवस्था को चुनौती देने एक ऐसा व्यक्तित्व आया, जिसने पूरे सिस्टम को हिलाकर रख दिया। यह शख्स थे भारत के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त, टी. एन. शेषन। उन्होंने चुनावों को लोकतंत्र की बुनियाद माना और इसे निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने के लिए ऐतिहासिक कदम उठाए।
एक ईमानदार और निडर नौकरशाह
15 दिसंबर 1932 को तमिलनाडु के पलक्कड़ में जन्मे तिरुनेल्लई नारायण अय्यर शेषन (टी. एन. शेषन) का जीवन अनुशासन और दृढ़ता का प्रतीक रहा। उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त की और भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में नए मानक स्थापित किए। 1990 में जब उन्हें भारत का मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया, तब उन्होंने चुनाव आयोग को एक निष्पक्ष और शक्तिशाली संस्था में बदल दिया। उनके कार्यकाल (1990-1996) में कई बड़े सुधार हुए, जिनमें चुनावी खर्च सीमा तय करना, फर्जी मतदान और बूथ कैप्चरिंग पर सख्ती, और ‘आदर्श आचार संहिता’ को प्रभावी रूप से लागू करना शामिल था।
राजनीतिज्ञों के लिए सबसे बड़ा डर
शेषन के कड़े फैसलों का असर ऐसा था कि उस दौर के नेता सिर्फ दो चीजों से डरते थे – एक भगवान और दूसरा शेषन। एक बार उन्होंने खुद कहा था, "आई ईट पॉलिटीशियंस फॉर ब्रेकफास्ट" यानी मैं नाश्ते में राजनीतिज्ञों को खाता हूं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने तो यहां तक कह दिया था, "शेषनवा को भैंसिया पर चढ़ाकर गंगा जी में हिला देंगे।"
शेषन के जीवन से जुड़े कुछ रोचक किस्से
दिसंबर 1990 की एक सर्द रात में, तत्कालीन कानून मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी अचानक शेषन के घर पहुंचे। उन्होंने उनसे पूछा, "क्या आप भारत के अगले मुख्य चुनाव आयुक्त बनना चाहेंगे?" शेषन ने पहले मना कर दिया, लेकिन दो घंटे की बातचीत के बाद वे मान गए। उन्होंने तुरंत राजीव गांधी से संपर्क किया, और राजीव गांधी ने भी उन्हें इस पद के लिए हरी झंडी दे दी।
एक बार, एक बड़े राजनेता ने शेषन पर दबाव डालने की कोशिश की और कहा, "अगर आप हमारे हिसाब से काम करेंगे तो आपको फायदा होगा।" शेषन ने तुरंत जवाब दिया, "मुझे भगवान से डर लगता है, नेताओं से नहीं। मुझे देश की चिंता है, न कि आपके फायदे की।"
एक बार, एक मुख्यमंत्री ने चुनाव प्रचार के दौरान आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया। शेषन ने तुरंत मंच से उन्हें उतारकर उनकी रैली को रुकवा दिया। जब मुख्यमंत्री ने नाराजगी जताई, तो शेषन ने स्पष्ट कहा, "कानून सबके लिए बराबर है, चाहे आप मुख्यमंत्री हों या आम नागरिक।"
शेषन की चुनाव सुधारों में भूमिका
टी. एन. शेषन ने चुनाव आयोग को निष्पक्ष और शक्तिशाली बनाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने सुनिश्चित किया कि चुनाव केवल वोट डालने की प्रक्रिया न होकर लोकतंत्र की रक्षा का आधार बने। उनके प्रयासों का ही नतीजा था कि भारत में मतदाता पहचान पत्र अनिवार्य हुआ और चुनावी प्रक्रिया अधिक पारदर्शी बनी।
राजनीति में असफलता, लेकिन सम्मान कायम
1997 में उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव लड़ा, लेकिन के. आर. नारायणन से हार गए। दो साल बाद, उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन पराजित हुए। हालांकि, उनकी छवि एक ईमानदार और निडर नौकरशाह की बनी रही।
एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व
टी. एन. शेषन का जीवन हमें सिखाता है कि यदि एक अधिकारी अपने कर्तव्य को ईमानदारी से निभाए, तो पूरा सिस्टम बदल सकता है। उन्होंने अपने कार्यों से यह साबित किया कि चुनाव आयोग का काम सिर्फ चुनाव कराना नहीं, बल्कि लोकतंत्र की नींव को मजबूत करना भी है। आज भी भारतीय लोकतंत्र में सुधारों की जब भी बात होती है, तो टी. एन. शेषन का नाम सबसे पहले लिया जाता है। वे उन चंद लोगों में से थे जिन्होंने इतिहास नहीं पढ़ा, बल्कि इतिहास लिखा।
Baten UP Ki Desk
Published : 2 March, 2025, 1:00 pm
Author Info : Baten UP Ki