बड़ी खबरें

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रूसी समकक्ष से की मुलाकात 6 मिनट पहले

समंदर बदल रहे हैं अपना रंग! क्या यह जलवायु आपदा की है शुरुआत?

Blog Image

क्या आपने हाल के वर्षों में समुद्र के रंग में बदलाव महसूस किया है? अगर नहीं किया, तो वैज्ञानिकों ने अब इसे दुनिया के सामने उजागर किया है — और यह बदलाव केवल देखने की बात नहीं, बल्कि पृथ्वी की सेहत को लेकर एक गंभीर चेतावनी है। अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और जॉर्जिया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने यह खुलासा किया है कि महासागर तेजी से अपना रंग बदल रहे हैं — और इसके पीछे छिपे हैं समुद्री पारिस्थितिकी और जलवायु प्रणाली में हो रहे गंभीर बदलाव।

20 साल के आंकड़ों का विश्लेषण

इस अध्ययन में 2003 से 2022 के बीच नासा के उपग्रहों द्वारा जुटाए गए डेटा का विश्लेषण किया गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि ध्रुवीय क्षेत्रों में समुद्र पहले की तुलना में ज्यादा हरा और भूमध्य रेखा के आसपास का समुद्र अधिक नीला हो गया है। यह रंग परिवर्तन दरअसल फाइटोप्लैंकटन की संख्या में हो रही घट-बढ़ का नतीजा है — ये सूक्ष्म वनस्पति जीव समुद्र की प्राथमिक उत्पादकता और कार्बन चक्र का अहम हिस्सा हैं।

बढ़ते तापमान का प्रभाव

शोध के अनुसार, समुद्र की सतह का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। इसके कारण भूमध्य रेखा के आसपास फाइटोप्लैंकटन की संख्या में गिरावट आई है, जबकि ध्रुवीय क्षेत्रों में यह संख्या बढ़ी है। यही वजह है कि भूमध्य सागर अधिक नीला और आर्कटिक व अंटार्कटिक क्षेत्र अधिक हरे दिख रहे हैं। वैज्ञानिकों ने इस बदलाव को तापमान वृद्धि से सीधा जोड़ा है, न कि रोशनी, हवाओं या जलस्तर की गहराई जैसे पारंपरिक कारणों से।

वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर खतरा

फाइटोप्लैंकटन न केवल समुद्री खाद्य शृंखला की नींव हैं, बल्कि ये वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित कर उसे समुद्र की गहराइयों में जमा करते हैं — एक प्राकृतिक 'कार्बन सिंक' की भूमिका निभाते हुए। यदि फाइटोप्लैंकटन का वितरण केवल ध्रुवीय क्षेत्रों तक सीमित हो गया तो भूमध्यरेखीय देशों — जो पहले से ही जलवायु संकट, खाद्य असुरक्षा और मत्स्य व्यवसाय पर निर्भर हैं — पर गहरा असर पड़ेगा।

क्या यह जलवायु संकट का संकेत है?

हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि ये बदलाव केवल 20 वर्षों के आंकड़ों पर आधारित हैं और अल-नीनो जैसी मौसमी घटनाओं का प्रभाव भी हो सकता है। लेकिन एक बात स्पष्ट है — महासागर अब जलवायु परिवर्तन के विजुअल इंडिकेटर बनते जा रहे हैं।
यदि इन संकेतों की अनदेखी की गई, तो हम आने वाले दशकों में समुद्री जैव विविधता, जलवायु स्थिरता और मानव अस्तित्व के लिए खतरनाक स्थितियों में प्रवेश कर सकते हैं।

ज़रूरत है सजगता और संकल्प की

समुद्रों का बदलता रंग केवल वैज्ञानिक जिज्ञासा नहीं है, यह हमारे ग्रह की सेहत का एक गंभीर संकेत है। यह दर्शाता है कि पृथ्वी का संतुलन बिगड़ रहा है और समय रहते कार्रवाई न की गई तो परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं। अब यह केवल पर्यावरणविदों या वैज्ञानिकों की चिंता नहीं रह गई है — यह हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।

विशेष ध्यान देने योग्य बिंदु:

  • महासागरों के रंग में बदलाव पहली बार इतने बड़े पैमाने पर दर्ज किया गया।

  • फाइटोप्लैंकटन की संख्या में गिरावट, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर सीधा प्रभाव।

  • भूमध्य क्षेत्र में मत्स्य व्यवसाय पर पड़ सकता है भारी असर।

  • महासागर बनते जा रहे हैं जलवायु परिवर्तन के दृश्य संकेतक।

क्या आपने कभी सोचा है कि समंदर का रंग भी जलवायु संकट की कहानी सुना सकता है? अब वक्त है, इस कहानी को गंभीरता से सुनने और समझने का।

अन्य ख़बरें

संबंधित खबरें