बड़ी खबरें

अफसरों की बार-बार दिल्ली दौड़ से सीएम योगी खफा... दी हिदायत, मंत्रियों से बोले-जिलों में करें समीक्षा 18 घंटे पहले लखनऊ डिफेंस कॉरिडोर में बनेगा रक्षा उत्पादों का टेस्टिंग सेंटर, कई गुना बढ़ जाएगी निर्यात की संभावना 18 घंटे पहले मॉरीशस में दिखा प्रधानमंत्री मोदी का जलवा, पीएम, डेप्युटी पीएम समेत पूरी कैबिनेट रही स्वागत में मौजूद, नेशनल डे में दिखेगी भारत की ताकत 18 घंटे पहले रमुंडों की माला पहनकर मणिकर्णिका घाट पहुंचे नागा साधु:डमरू वादन से शुरू हुआ रंगोत्सव, चिता-भस्म फेंककर मसाने की होली शुरू 18 घंटे पहले दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 13 भारत के:मेघालय का बर्नीहाट टॉप पर, दिल्ली सबसे पॉल्यूटेड कैपिटल; सबसे साफ ओशिनिया 18 घंटे पहले

स्कूल जाती थीं, तो लोग उन्हें पत्थर मारते थे...कौन थीं देश की पहली महिला टीचर?

Blog Image

शिक्षा हमारे जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाली एक महत्वपूर्ण कड़ी है। हर छात्र के मन में कभी न कभी यह सवाल आता होगा कि भारत की पहली महिला शिक्षक कौन थीं? इस लेख में हम आपको उस महान विभूति से परिचित कराने जा रहे हैं, जिन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। उसी क्रांतिज्योती सावित्रीबाई फुले जी की आज पुण्यतिथि है।

कौन थीं देश की पहली महिला टीचर?

भारत की पहली महिला टीचर सावित्रीबाई फुले थीं। उनका जन्म 3 मार्च 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में एक किसान परिवार में हुआ था। वे न केवल एक शिक्षिका थीं, बल्कि एक समाज सुधारक, कवयित्री और विचारक भी थीं। उन्होंने अपने जीवन में सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने के लिए कई आंदोलन किए और महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा दिया।

बाल विवाह: 9 साल की उम्र में हुई थी शादी

सावित्रीबाई फुले का विवाह मात्र 9 वर्ष की आयु में ज्योतिराव फुले से हुआ था। उस समय समाज में महिलाओं की शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाता था, लेकिन ज्योतिराव फुले ने उनकी शिक्षा का समर्थन किया। सावित्रीबाई ने समाज की रूढ़िवादी सोच को चुनौती देते हुए शिक्षा प्राप्त की और महिलाओं को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया।

सावित्रीबाई ने शिक्षा के लिए किया संघर्ष

जब सावित्रीबाई स्कूल जाती थीं, तो लोग उन्हें पत्थर मारते थे और उन पर कूड़ा-कचरा फेंकते थे। बावजूद इसके, उन्होंने हार नहीं मानी और शिक्षा प्राप्त करने के बाद खुद शिक्षिका बनीं। समाज में व्याप्त छुआछूत, सती प्रथा, बाल विवाह और विधवा विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ उन्होंने पूरी जिंदगी संघर्ष किया।

लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोलने की पहल

1848 में, सावित्रीबाई फुले और उनके पति ज्योतिराव फुले ने पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला। उस समय महिलाओं की शिक्षा को पाप समझा जाता था, लेकिन उन्होंने इस धारणा को तोड़ा। इस पहल के बाद, उन्होंने 17 और स्कूल खोले, जहां लड़कियों को पढ़ने का अवसर मिला। उनकी इस क्रांति ने महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में नई राहें खोलीं।

छुआछूत और जाति प्रथा के खिलाफ संघर्ष

सावित्रीबाई फुले ने समाज में फैली जातिवाद और छुआछूत जैसी कुरीतियों के खिलाफ भी लंबा संघर्ष किया। उन्होंने अछूतों के लिए अपने घर में एक कुआं बनवाया ताकि वे बिना भेदभाव के पानी प्राप्त कर सकें। उनका यह कदम सामाजिक समानता की दिशा में एक बड़ा परिवर्तन साबित हुआ।

मृत्यु और उनकी विरासत

सावित्रीबाई फुले का निधन 10 मार्च 1897 को हुआ। उन्होंने अपने अंतिम समय तक समाज सेवा की और प्लेग महामारी के दौरान लोगों की मदद करते हुए अपनी जान गंवा दी। आज भी वे महिलाओं की शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। सावित्रीबाई फुले का जीवन संघर्ष, समर्पण और सेवा की मिसाल है। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा को एक नई दिशा दी और समाज में व्याप्त कुरीतियों को खत्म करने के लिए हर संभव प्रयास किया। उनका योगदान हमें यह सिखाता है कि अगर हम सच्ची निष्ठा और साहस के साथ किसी उद्देश्य के लिए काम करें, तो हम समाज में बदलाव ला सकते हैं।

अन्य ख़बरें