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भारत में भी अब एक ऐसे ही क़ानून की है ज़रूरत! प्रकृति के बारे में यूरोप से सीख सकते हैं ये नियम...

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आज हम एक ऐसे विषय पर बात करेंगे, जो न केवल हमारे पर्यावरण से जुड़ा है, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को भी संवारने की दिशा में अहम भूमिका निभा सकता है-प्रकृति की बहाली (Nature Restoration)। पर्यावरणीय संकट दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है, और भारत भी इस वैश्विक चुनौती से अछूता नहीं है। हमारी 30% भूमि पर्यावरणीय क्षरण का शिकार हो चुकी है, और इसके गंभीर परिणाम हमारे सामने हैं। इस संदर्भ में यूरोपीय संघ (EU) का Nature Restoration Law एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है, जिससे हमें बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है।

यूरोप का Nature Restoration Law: क्या है और क्यों है ज़रूरी?

यूरोपीय संघ ने 17 जून, 2024 को अपने पर्यावरणीय कानून को सख्ती से लागू करने के लिए Nature Restoration Law अपनाया। इस कानून का मुख्य उद्देश्य यूरोप के पारिस्थितिक तंत्रों को पुनर्स्थापित करना है। इसका लक्ष्य है 2030 तक अपनी 20% भूमि और समुद्री क्षेत्र को पुनर्जीवित करना और 2050 तक सभी पारिस्थितिकी तंत्रों को पूरी तरह से बहाल करना। यह यूरोप की Biodiversity Strategy 2030 और European Green Deal का हिस्सा है।

भारत के लिए क्यों ज़रूरी है एक Nature Restoration Law?

अब सवाल यह उठता है कि क्या भारत में भी ऐसा ही कोई कानून होना चाहिए? बिलकुल होना चाहिए! भारत को भी गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ISRO की 2018-19 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 97.85 मिलियन हेक्टेयर भूमि का क्षरण हो चुका है। गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्य विशेष रूप से इस समस्या से जूझ रहे हैं। भारत ने भले ही Green India Mission और Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana जैसे कई कार्यक्रम शुरू किए हैं, लेकिन समस्या की गहराई को देखते हुए एक मजबूत और व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

भारत में Nature Restoration Law: क्या हो सकते हैं इसके मुख्य बिंदु?

यदि भारत में एक ऐसा कानून लागू होता है, तो इसमें निम्नलिखित बिंदु शामिल होने चाहिए:

1. बहाली के लक्ष्यों का निर्धारण

2030 तक भारत अपनी 20% क्षतिग्रस्त भूमि को बहाल करने का लक्ष्य रख सकता है, और 2050 तक सभी पारिस्थितिकी तंत्रों को पुनर्जीवित कर सकता है। इसमें जंगल, नदियाँ, शहरी हरित क्षेत्र और कृषि भूमि शामिल होंगी।

2. नदियों की बहाली

भारत की प्रमुख नदियाँ, जैसे गंगा और यमुना, प्रदूषण और अन्य बाधाओं से प्रभावित हैं। इन नदियों की पुनर्बहाली से जलवायु परिवर्तन और जल संकट का सामना करना संभव हो सकेगा।

3. शहरी हरित क्षेत्र का विस्तार

शहरों में हरित क्षेत्रों की कमी हो रही है, जिससे प्रदूषण और गर्मी का संकट गहरा रहा है। शहरी क्षेत्रों में जंगलों और हरित क्षेत्रों का विकास इस समस्या को हल कर सकता है।

4. कृषि भूमि का पुनर्विकास

भारत की बड़ी कृषि भूमि पर भी क्षरण का असर हो रहा है। Agroforestry और टिकाऊ खेती जैसी तकनीकों को अपनाकर इन भूमि को बहाल किया जा सकता है, जिससे न केवल पर्यावरण बल्कि किसान समुदाय को भी लाभ होगा।

पर्यावरणीय बहाली के आर्थिक लाभ-

यदि भारत इस तरह के कानून को अपनाता है तो इसका फायदा सिर्फ पर्यावरण तक सीमित नहीं रहेगा। World Economic Forum की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक बहाली से $10 ट्रिलियन की आर्थिक वापसी हो सकती है। भारत में इससे कृषि उत्पादकता बढ़ेगी, जल सुरक्षा मजबूत होगी, और ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के नए अवसर खुलेंगे।

जलवायु परिवर्तन पर असर-

पर्यावरणीय बहाली का सबसे बड़ा लाभ जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण होगा। क्षतिग्रस्त भूमि कार्बन अवशोषित करने की क्षमता खो देती है, जिससे ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ती है। अगर हम अपने पारिस्थितिक तंत्र को पुनर्जीवित करते हैं, तो कार्बन सिंक को बढ़ाकर हम Paris Agreement के तहत किए गए वादों को पूरा कर सकते हैं।

दीर्घकालिक विकास की राह-

प्रकृति की बहाली केवल पर्यावरण की समस्या नहीं है, बल्कि यह दीर्घकालिक विकास का आधार भी है। यूरोप का Nature Restoration Law यह साबित करता है कि प्रकृति की बहाली से न केवल पर्यावरण सुधरता है, बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था को भी इससे लाभ मिलता है। अगर भारत इस दिशा में कदम उठाए, तो यह हमारे भविष्य की बेहतरी के लिए मील का पत्थर साबित होगा।

आ गया है बदलाव का समय-

यूरोप के इस कानून से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए और भारत में भी एक व्यापक Nature Restoration Law की ज़रूरत को समझना चाहिए। यह कानून न केवल हमारे पर्यावरण को सुरक्षित रखेगा, बल्कि हमारे आर्थिक और सामाजिक ढांचे को भी मजबूत बनाएगा। वक्त आ गया है कि हम इस दिशा में ठोस कदम उठाएँ और अपने भविष्य को पर्यावरणीय संकटों से बचाने के लिए गंभीरता से प्रयास करें।

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