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दिल्ली की सत्ता पर काब़िज होने के लिए बीते कल यानी 5 फरवरी को यहां की जनता ने भाजपा, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस जैसी प्रमुख पार्टियों का फैसला कर दिया है। अब 8 फरवरी को आने वाले नतीजों में पता चलेगा कि दिल्ली की कमान किसको मिलेगी। लेकिन क्या दिल्ली यूं ही बन गया? इसके पीछे कई कहानियां छिपी हुई हैं। दिल्ली, जो आज एक आधुनिक महानगर के रूप में समूचे देश का केंद्र है, वह केवल एक शहर नहीं, बल्कि एक अद्भुत इतिहास की गवाह है। यह शहर ना केवल भारत की राजधानी है, बल्कि इसमें समाहित है हजारों वर्षों का संघर्ष, संस्कृतियां और बदलाव। आज जब दिल्ली में चुनाव चल रहे हैं, तो यह सही समय है दिल्ली के गौरवशाली इतिहास पर एक नजर डालने का।
महाभारत से लेकर आज तक: दिल्ली की शुरुआत
अगर दिल्ली के इतिहास को ध्यान से देखें तो इसकी शुरुआत महाभारत के पन्नों में मिलती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, हस्तिनापुर के बंटवारे के बाद पांडवों को जो क्षेत्र मिला, उसे खांडवप्रस्थ कहा जाता था। फिर भगवान कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने इसे जलाकर एक नई राजधानी बसाई, जिसे 'इंद्रप्रस्थ' कहा गया। मान्यता है कि यह क्षेत्र यमुना के किनारे था और आज के पुराने किले के आसपास स्थित था। एक समय था जब जहां मेट्रो की ट्रेनें दौड़ रही हैं, वहां अर्जुन के तीर चलते थे!
ढिल्लू के नाम से दिल्ली की शुरुआत
दिल्ली के इतिहास में 800 ईसा पूर्व का समय महत्वपूर्ण है, जब राजा ढिल्लू का शासन था। कहा जाता है कि राजा ढिल्लू ने इस क्षेत्र में एक बस्ती बसाई, जिसे "दिल्हीका" कहा गया और यह नाम धीरे-धीरे "दिल्ली" में बदल गया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह नाम ढिल्लों गोत्र के जाट राजा से जुड़ा था। समय के साथ अंग्रेजों की जुबान में यह "Dilli" से "Delhi" बन गया, जो आज हम जानते हैं।
12वीं सदी: अनंगपाल तोमर और लौह स्तंभ
12वीं सदी में दिल्ली के इतिहास में एक और महत्वपूर्ण मोड़ आता है, जब अनंगपाल तोमर के शासनकाल में 'लालकोट' का निर्माण हुआ। इस समय ही लौह स्तंभ स्थापित किया गया, जिसे आज भी कुतुब मीनार के पास देखा जा सकता है। यह लौह स्तंभ इस बात का गवाह है कि वह जमाना कितना विकसित था, क्योंकि आज तक यह बिना किसी जंग के खड़ा है।
दिल्ली की पहचान: शासकों के नाम से परिवर्तन
दिल्ली का इतिहास केवल एक शासक से नहीं जुड़ा, बल्कि हर शासक ने इसे अपना नाम और पहचान दी। खिलजी वंश ने इसे 'सीरी' नाम दिया, तुगलक वंश ने 'तुगलकाबाद', फिरोज शाह तुगलक ने 'फिरोजाबाद', और मुगलों ने इसे 'शाहजहानाबाद' नाम से जाना, जो आज पुरानी दिल्ली के रूप में पहचानी जाती है। ब्रिटिश काल में इसे 'नई दिल्ली' का रूप दिया गया।
'दहलीज' से दिल्ली तक:
दिल्ली के नाम के बारे में एक और दिलचस्प तर्क भी है। कुछ लोग मानते हैं कि दिल्ली का नाम 'दहलीज' शब्द से आया है, जिसका अर्थ है प्रवेश द्वार। यह क्षेत्र गंगा-जमुना के मैदान का मुख्य प्रवेश द्वार था, और इस कारण इसे "देहली" कहा गया, जो बाद में 'दिल्ली' बन गया।
बदलावों का संगम दिल्ली-
आज की दिल्ली, इन सभी शासकों, संस्कृतियों और बदलावों का संगम है। दिल्ली ने सैकड़ों सालों में अपनी पहचान बनाई और कई बार उजड़ी और बसी। यह शहर एक जीवित इतिहास है, जो आज भी अपने समृद्ध अतीत के साथ आधुनिकता की ओर कदम बढ़ा रहा है। आज जब दिल्ली में चुनाव हो रहे हैं, तो यह इस ऐतिहासिक शहर के विकास और भविष्य का एक और अहम पड़ाव साबित हो सकता है।
Baten UP Ki Desk
Published : 6 February, 2025, 6:09 pm
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