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हॉलीवुड मूवी "ओपेनहाइमर" और भगवद्गीता का कनेक्शन

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आपने ये तो सुना होगा कि हमारे मथुरावासी भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश भगवद्गीता में दुनिया के सोचने का ढंग बदलने की कूवत है लेकिन जल्दी ही हो सकता है कि इसकी क्षमता आपको हॉलीवुड मूवी में देखने को मिल जाये।दरअसल इसी महीने की 21 जुलाई को ओपेनहाइमर (Oppenheimer) पर बेस्ड एक हॉलीवुड मूवी भी रिलीज होने वाली है। यह मूवी उन लोगो के लिए बेहतर कंटेंट होगा जिन्हे विज्ञान, इतिहास और मानवता में दिलचस्पी है। यह कहानी असल में हीरो की नैतिक सोच और उसके ज्ञान के जरिये हुए प्रयोग से मानवता के विनाश की सम्भावना वाली दुविधा के चारो तरफ घूमती हुई एक भयावह कहानी है। मूवी यह बताने वाली है कि जब आप अपने ज्ञान को उसकी पूरी क्षमता तक प्रयोग करते हैं तब भी उससे निकले रिजल्ट से मानवता का उत्थान होना जरुरी नहीं है। 

दरअसल ओपेनहाइमर मैनहटट्न प्रोजेक्ट के जरिये हुए ट्रिनिटी टेस्ट से जुड़े एक वैज्ञानिक थे। यह टेस्ट असल में पहला परमाणु टेस्ट कहा जाता है। इस टेस्ट के बाद ही ओपेनहाइमर को परमाणु की शक्ति अहसास हो चुका था और तभी से उनका मन इस बात से परेशान था कि यह टेस्ट विनाशकारी हो सकता है। इस टेस्ट के बाद ही उन्होंने कहा था कि "I am become Death, the destroyer of worlds" इसके बाद उनकी इस शंका को मजबूती दी जापान पर हुए एटम बम अटैक ने। जापान पर परमाणु बमों के इस्तेमाल के बाद, ओपेनहाइमर ने पश्चाताप व्यक्त किया और इस बमबारी को आक्रामकता का हथियार कहते हुए आलोचना की। 


16 जुलाई 1945 को आयोजित ट्रिनिटी टेस्ट के चलते भले ही विश्व के पूर्वी क्षेत्र में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया लेकिन इसके बाद राष्ट्रों के बीच परमाणु हथियारों की होड़ शुरू चुकी थी। इसके बाद रूस परमाणु हथियार के दौड़ में शामिल हुआ था और अमेरिका ने उसे पछाड़ने के लिए nuclear arms का विस्तार करना शुरू कर दिया था। इस समय तक ओपेनहाइमर इस प्रसार के खिलाफ बोलना शुरू कर चुके थे। उनका मानना था कि उनके जरिये एक गलत टेस्ट हो गया है जिससे पूरी मानवता का विनाश संभव है। ऐसा भी कहा जाता है कि जब ओपेनहाइमर का मन पश्चाताप से भर गया था और वो स्वयं को समझाने में असफल हो चुके थे तब उन्हें भगवद गीता के दर्शन से सांत्वना और शांति मिली। उन्होंने अपने कार्यों की नैतिकता को गीता के कर्मयोग के संवाद से सिद्ध करने की कोशिश की और खुद को अर्जुन की जगह रखा। इसी गीता के विश्वास से प्रेरित होकर उन्होंने यह माना कि नाजीवाद  और इंपीरियल जापान से उपजे खतरे का मुकाबला करने के लिए परमाणु बम का बनाया जाना जरूरी था।

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