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(Special Story) आज के दौर में फिल्में बनाना शायद आसान काम हो लेकिन आज से 110 साल पहले ये बहुत कठिन हुआ करता था। लेकिन त्र्यंबकेश्वर के एक व्यक्ति ने उस समय भारत की पहली फिल्म बनाई। एक भारतीय निर्माता, निर्देशक और पटकथा लेखक जिसने अपना सब कुछ दांव पर रखकर लाइट्स, कैमरा और एक्शन जैसे शब्दों को भारतीय सिनेमा में हमेशा- हमेशा के लिए मुकम्मल कर दिया। भारतीय सिनेमा के जनक माने जाने वाले धुंडीराज गोविंद फाल्के उर्फ दादा साहब फाल्के की आज यानी 30 अप्रैल को बर्थ एनिवर्सरी है। इस मौके पर आइए जानते हैं उनकी जिंदगी के बारे में..
दादा साहब फाल्के का करियर-
दादा साहब फाल्के को भारतीय सिनेमा को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का श्रेय दिया जाता है। उनका जन्म 30 अप्रैल 1870 को भारत के महाराष्ट्र में नासिक के पास त्र्यंबकेश्वर में हुआ था। उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में अपने करियर की शुरुआत साल 1913 में राजा हरिश्चंद्र से की थी और भारतीय सिनेमा को पहली फिल्म दी। अनूठे प्रभावों और तकनीक के साथ फाल्के के जादुई स्पर्श ने फिल्म को जबरदस्त हिट बना दिया। हालांकि इस फिल्म को बनाना उनके लिए आसान नहीं था। उन्होंने इसे बनाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर रख दिया था।इस फिल्म के निर्देशक से लेकर कॉस्ट्यूम डिजाइन, लाइट और कैमरा डिपार्टमेंट भी उन्होंने खुद ही संभाला था।
फिल्में बनाने की प्रेरणा-
साल 1910 में बंबई के अमेरिका-इंडिया पिक्चर पैलेस में 'द लाइफ ऑफ क्राइस्ट' अंग्रेजी फिल्म दिखाई गई थी। इस फिल्म को देखने के बाद दादा साहब फाल्के को फिल्म बनाने का आइडिया आया। उन्होंने फैसला किया कि वह भारतीय धार्मिक चरित्रों को पर्दे पर दिखाएंगे, लेकिन यह सब इतना आसान नहीं होने वाला था। क्योंकि उस दौर में न तो फिल्मों को बनाने के लिए किसी तरह की टेक्नोलॉजी थी और ना ही कोई अन्य सुविधा थी। ऐसे में उन्होंने अगले एक साल तक फिल्म मेकिंग सिखने के लिए ढेर सारी फिल्में देखी और किताबें पढ़ीं। अब फिल्म बनाने के लिए स्क्रिप्ट तैयार थी, लेकिन इक्विपमेंट नहीं थे। ऐसे में उन्होंने इक्विपमेंट जुटाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। वह इंग्लैंड गए और वहां फिल्म में काम आने वाले सामान खरीदा फिर 3 महीने की इंग्लैंड यात्रा के बाद भारत वापस लौटे आये थे। इसके बाद दादा साहब फाल्के ने अपने 19 साल के करियर में कुल 95 फिल्में और 26 लघु फिल्में बनाईं।
दादा साहब फाल्के की यादगार फिल्में-
दादा साहब फाल्के द्वारा निर्मित कुछ फिल्मों में लंका दहन (1917), श्री कृष्ण जन्म (1918), सैरंदरी (1920), और शकुंतला (1920) शामिल हैं। फाल्के एक बहुत ही प्रतिभाशाली फिल्म तकनीशियन थे और उन्होंने विभिन्न प्रकार के प्रभावों के साथ प्रयोग किये। साल 1917 में उन्होंने हिंदुस्तान फिल्म कंपनी की स्थापना की। उनके पौराणिक विषय और ट्रिक फोटोग्राफी ने उनके दर्शकों को हमेशा प्रसन्न किया। लेकिन सिनेमा में ध्वनि के आगमन और फिल्म उद्योग के विस्तार के साथ, फाल्के के काम की लोकप्रियता कम हो गई। यह वह समय था जब दर्शक बोलती हुई फिल्म का आनंद लेना चाहते थे और ऑन-स्क्रीन पात्रों द्वारा बोले गए संवाद सुनना चाहते थे।
दादा साहेब फाल्के की आखिरी मूक फिल्म-
साल 1932 में दादा साहेब फाल्के ने अपनी आखिरी मूक फिल्म, सेतुबंधन रिलीज की। इस फिल्म को बाद में साउंड की डबिंग के साथ दोबारा रिलीज किया गया।
दादा साहेब फाल्के की बोलती फिल्म -
बोलती फिल्मों की लोकप्रियता के कई वर्षों बाद उन्होंने 1937 में अपनी आखिरी और एकमात्र बोलती फिल्म गंगावतरण बनाई। इस फिल्म के बाद दादा साहब फाल्के सेवानिवृत्त हो गए और नासिक में बस गए।
दादा साहब फाल्के पुरस्कार की स्थापना
16 फरवरी 1944 को उनकी मृत्यु हो गई और भारत ने भारतीय फिल्म उद्योग का जादूगर खो दिया। 1969 में, भारत सरकार ने भारतीय सिनेमा में उनके जीवनकाल के योगदान को मान्यता देने के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार की स्थापना की। यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक माना जाता है।
दादा साहब फाल्के पुरस्कार पाने वाली हस्तियां-
उनका जीवन एक प्रेरणा है और ऐसा सम्मान पाना गर्व की बात है। अभिनेत्री देविका रानी चौधरी इस पुरस्कार की पहली प्राप्तकर्ता थीं। लता मंगेशकर, दिलीप कुमार, राज कपूर, भूपेन हजारिका, आशा भोंसले, यश चोपड़ा, देव आनंद, श्याम बेनेगल, प्राण, गुलज़ार, शशि कपूर, विनोद खन्ना इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के कुछ प्रसिद्ध प्राप्तकर्ता हैं।
उनके बारे में कुछ रोचक तथ्य:-
By Ankit Verma
Baten UP Ki Desk
Published : 30 April, 2024, 5:00 pm
Author Info : Baten UP Ki