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दो हजार रुपये के गुलाबी नोटों की चुप्पी! क्या तिजोरियों में कैद नोट कालेधन की ओर कर रहे हैं इशारा?

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भारत में नोटबंदी के बाद से 2,000 रुपये के गुलाबी नोटों की वापसी का मामला एक अनसुलझे रहस्य बन चुका है। 18 महीने बीत जाने के बाद भी लगभग 346 लाख नोट, जिनकी कुल कीमत 6,909 करोड़ रुपये है, रिजर्व बैंक तक नहीं पहुंचे हैं। इस चौंकाने वाले आंकड़े ने न केवल सरकार की योजनाओं पर सवाल उठाए हैं, बल्कि नोटबंदी के असली उद्देश्य पर भी संदेह पैदा कर दिया है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इतने बड़े पैमाने पर नोटों का न लौटना कालेधन को सफेद करने की साजिश का हिस्सा हो सकता है, जो देश की अर्थव्यवस्था को गंभीर खतरे में डाल सकता है।

मार्च तक सर्वाधिक 20 लाख नोट लौटे-

रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, फरवरी से मार्च 2024 के बीच 20 लाख गुलाबी नोटों की वापसी रिकॉर्ड की गई। इस दौरान सबसे अधिक नोट वापस हुए, लेकिन इसके बाद आंकड़ा धीरे-धीरे गिरता गया। 6 सितंबर तक 361 लाख नोट बाजार में थे, जबकि 15 नवंबर तक यह संख्या घटकर 346 लाख रह गई। यानि पिछले दो महीने में केवल 15 लाख नोट ही बैंकिंग सिस्टम में वापस आए। यह साबित करता है कि लाखों नोट अभी भी तिजोरियों और बक्सों में दबे हुए हैं, जहां से वे बाहर नहीं आ रहे।

कालेधन की ओर बढ़ता कदम: क्या यह महज एक संयोग है?

वित्तीय विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इन नोटों का वापस न आना कालेधन को पुनः परिसंचरण में लाने का प्रयास हो सकता है। आर्थिक विश्लेषक छवि जैन ने कहा, "इतने समय बाद भी इन नोटों का न लौटना एक संकेत है कि कुछ तत्व उन्हें दबा कर रखने का प्रयास कर रहे हैं। यह कालेधन को सफेद करने की जुगत हो सकती है। सरकार को इसे लेकर जल्द एक मास्टर प्लान तैयार करना चाहिए।"

वित्तीय धोखाधड़ी का खेल: क्या सरकार सो रही है?

पीएनबी प्रोग्रेसिव एम्पलाइज एसोसिएशन के चेयरमैन संजय त्रिवेदी ने भी इस रिपोर्ट पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा, "यह कोई सामान्य मामला नहीं है। जब इतनी बड़ी राशि वापस नहीं आ रही, तो यह कालेधन की ओर इशारा करता है। जिन लोगों के पास ये नोट दबाए गए हैं, वे सरकार और अर्थव्यवस्था से खिलवाड़ कर रहे हैं।" उनका यह भी कहना है कि अब इस पर कड़ी कार्रवाई की जरूरत है।

क्या इस संकट से निपटने के लिए है कोई प्लान?

अब सवाल यह उठता है कि रिजर्व बैंक और सरकार इस स्थिति का समाधान कैसे करेंगे? क्या कालेधन के इन नोटों को सफेद करने की प्रक्रिया पर लगाम लगेगी, या फिर यह खेल और बड़ा हो जाएगा? विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई को जल्द ही इन नोटों की वापसी को सुनिश्चित करने के लिए एक ठोस और व्यापक योजना बनानी चाहिए।

नोटबंदी के बाद की असली परीक्षा-

19 मई 2023 को 2,000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया था, और बैंकों में इनकी वापसी के लिए 9 अक्टूबर 2023 तक समय दिया गया। इसके बावजूद, अब तक 7,000 करोड़ रुपये के ये नोट बैंकिंग सिस्टम में वापस नहीं लौटे हैं। क्या यह स्थिति सरकार के वित्तीय नियमन की कमजोरी को उजागर करती है? रिजर्व बैंक को इन नोटों के वापस न लौटने पर त्वरित कदम उठाने होंगे, ताकि अवैध गतिविधियों से बचा जा सके और कालेधन के प्रवाह को रोका जा सके।

नतीजा: क्या कालेधन की वापसी का समय आ गया है?

इतने बड़े पैमाने पर नोटों का वापस न आना केवल एक वित्तीय संकट नहीं, बल्कि यह सरकार की वित्तीय पारदर्शिता और कड़ी निगरानी की आवश्यकता को भी दिखाता है। अगर इस समस्या का समाधान जल्द नहीं किया गया, तो यह देश की आर्थिक सेहत के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है।

नोटों की वापसी पर बढ़ता दबाव-

अब यह साफ हो चुका है कि इन 2,000 रुपये के नोटों को वापस लाने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक को एक प्रभावी कदम उठाना होगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये नोट अवैध रूप से किसी के पास न पड़े रहें। इस चुनौती से निपटने के लिए, एक ठोस और निर्णायक योजना की आवश्यकता है।

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