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ज़रूरी था भारत का यहाँ से निकलना! आखिर भारत ने क्यों बनाई दूरी?

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भारत ने हाल ही में RCEP (Regional Comprehensive Economic Partnership) से बाहर रहने का महत्वपूर्ण फैसला लिया है, जो दुनियाभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस निर्णय के पीछे कई अर्थशास्त्री और विशेषज्ञ विचार कर रहे हैं कि क्या यह सही कदम था या नहीं। लेकिन इस निर्णय की जड़ें गहरी हैं, और इसे समझना जरूरी है।

RCEP: एक संक्षिप्त परिचय-

RCEP एक विशाल व्यापारिक समझौता है, जिसमें 15 एशिया-प्रशांत देश शामिल हैं। इसका मुख्य उद्देश्य इन देशों के बीच व्यापार को सुगम बनाना और आयात-निर्यात पर लगने वाले टैक्स को कम करना है। इससे देशों के बीच आर्थिक संबंधों को मजबूत बनाने की उम्मीद है।

भारत का संकोच: एक प्रभावी कारण-

जब इतने सारे देश RCEP का हिस्सा बने, तो भारत ने इससे दूरी क्यों बनाई? इसके कई कारण हैं। सबसे पहले, भारत के पास पहले से ही 13 देशों के साथ अलग-अलग व्यापार समझौते हैं, जिन्हें FTAs (Free Trade Agreements) कहा जाता है। इन समझौतों में भारत ने अपनी शर्तों के अनुसार मोलभाव किया है, ताकि उसकी अर्थव्यवस्था को फायदा हो।

मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को बढ़ावा-

भारत का मकसद अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देना है, और इसके लिए उसे समझौतों में लचीलापन चाहिए। RCEP जैसे बड़े समझौते में यह लचीलापन नहीं मिलता। जब हम पहले से ही कई देशों के साथ व्यापार कर रहे हैं, तो एक बड़े समूह में जाकर अपनी शर्तें मनवाना मुश्किल हो जाता है।

टैरिफ और आर्थिक सुरक्षा का दुष्चक्र-

RCEP में शामिल होने से भारत को जो सबसे बड़ी चुनौती होती, वह है टैरिफ यानी आयात-निर्यात पर लगने वाले टैक्स। भारत कई जरूरी वस्तुएं, जैसे कच्चा माल, चीन और बाकी RCEP देशों से आयात करता है। यदि भारत RCEP में शामिल होकर टैरिफ कम कर देता, तो भारतीय उपभोक्ताओं को लाभ मिलता, लेकिन घरेलू इंडस्ट्रीज पर असर पड़ता।

रोजगार और युवा पीढ़ी का भविष्य

भारत का ध्यान अपनी आर्थिक सुरक्षा और नौकरियों पर भी है। अगर टैरिफ कम होते, तो हमारी घरेलू इंडस्ट्रीज विदेशी कंपनियों के मुकाबले टिक नहीं पातीं। इससे हमारी नौकरियां प्रभावित होतीं, और युवाओं के लिए रोजगार के मौके कम हो जाते। भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा युवा वर्ग है, और इसके लिए नौकरियों और अवसरों का निर्माण करना हमारी प्राथमिकता है।

मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को बढ़ावा देने की आवश्यकता-

भारत ने अपने घरेलू मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए PLI Scheme (Production Linked Incentive) जैसी योजनाएं शुरू की हैं। इन योजनाओं के जरिए भारत में निवेश आकर्षित करने की कोशिश की जा रही है। अगर भारत RCEP में शामिल हो जाता, तो इन योजनाओं का असर कमजोर पड़ सकता था।

आत्मनिर्भरता की दिशा में एक कदम-

भारत का RCEP में शामिल न होना एक सोचा-समझकर लिया गया फैसला था। यह कदम हमारी आर्थिक सुरक्षा, रोजगार, और युवाओं के भविष्य को ध्यान में रखते हुए उठाया गया। बड़े व्यापारिक समझौतों में शामिल होना हमेशा फायदेमंद नहीं होता, खासकर जब आपके पास पहले से कई विकल्प मौजूद हों। भारत ने इस निर्णय के माध्यम से स्पष्ट किया है कि वह अपने विकास और आत्मनिर्भरता के पथ पर अग्रसर है।

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