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उत्तर प्रदेश के कौशांबी जेल से 20 मई 2025 को रिहा हुए लखन सिंह की कहानी भारतीय न्याय प्रणाली पर एक गंभीर सवाल खड़ा करती है। लखन को 1977 में हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। 1982 में उन्हें उम्रकैद की सजा हुई और उन्होंने उसी साल हाईकोर्ट में अपील दायर की। लेकिन फैसला आने में लग गए पूरे 43 साल। अदालत ने आखिरकार 103 साल की उम्र में उन्हें निर्दोष घोषित कर दिया।
"आप निर्दोष हैं" — अदालत के ये शब्द उनके लिए देर से आए हुए न्याय की पहचान हैं, जिसे ‘जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड’ कहना कहीं ज़्यादा उपयुक्त होगा।
न्याय प्रणाली में देरी: आंकड़े चौंकाने वाले
लखन का मामला कोई अकेला नहीं है। देश की अदालतों में 5 करोड़ से ज्यादा केस लंबित हैं। कानून मंत्रालय द्वारा दिसंबर 2023 में लोकसभा में दिए गए आंकड़ों के अनुसार, जिला अदालतों में ही 4.4 करोड़ से अधिक केस पेंडिंग हैं। इनमें से 37 लाख से ज्यादा केस 10 साल से अधिक समय से लंबित हैं। प्रॉपर्टी और तलाक जैसे मामलों में भी 8.28 लाख से अधिक मुकदमे 10 साल से पुराने हैं।
कब मिलेगा न्याय? कोई तय समय नहीं
भारत में अदालतों में फैसला आने में कितना समय लगेगा, इसका कोई आधिकारिक औसत डेटा मौजूद नहीं है। विशेषज्ञों के मुताबिक:
सिविल केस: 6 महीने से लेकर 20 साल तक
छोटे क्रिमिनल केस: 6 महीने से 2 साल तक
गंभीर अपराध (जैसे हत्या, रेप, भ्रष्टाचार): 5 से 20 साल तक
क्या कानून वाकई अंधा है?
कहा जाता है कि कानून अंधा होता है, लेकिन क्या वो इतना अंधा हो सकता है कि उसे किसी की बेगुनाही देखने में चार दशक लग जाएं? लखन सिंह ज़रूर आज़ाद हुए हैं, लेकिन उन्होंने अपनी ज़िंदगी के सबसे कीमती 43 साल सलाखों के पीछे गुजार दिए। ये कहानी सिर्फ लखन की नहीं, उन लाखों लोगों की है जो आज भी न्याय की धीमी रफ्तार से पिस रहे हैं।
Baten UP Ki Desk
Published : 24 May, 2025, 5:15 pm
Author Info : Baten UP Ki