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जब एक शेरनी ने अपनी तलवार से लिखा इतिहास, जानिए वीरता और बलिदान की अमर गाथा...

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बड़ी-बड़ी और तेजस्वी आंखें...जैसे किसी योद्धा की अडिगता झलकती हो। चेहरे पर एक शौर्यपूर्ण चमक...जो भीड़ से उसे अलग बनाती है। दमदार कद-काठी, सीधा खड़ा शरीर और हाथ में लहराती तलवार....युद्धकला और आत्मविश्वास जैसे साफ़ झलक रहा है। ये शेरनी जब अपने घोड़े पर सवार होकर युद्धभूमि में उतरती थी, तो दुश्मन भी इसके साहस और आभा से सहम जाते थे। उसकी आवाज में एक ऐसा जोश था कि उसके सैनिकों का हौसला उबाल मारने लगता था। कुछ ऐसा रौला था...रानी दुर्गावती का जो न केवल अपनी खूबसूरती के लिए जानी जाती थीं, बल्कि उनकी वीरता ने उन्हें हर दिल में अमर बना दिया।

सीएम योगी ने किया प्रतिमा का अनावरण-

आज इनकी कहानी बताने के पीछे वजह ये है कि अभी सीएम योगी आदित्यनाथ आज यानि 28 नवंबर को बांदा के दौरे पर थे। वहां मुख्यमंत्री योगी ने मेडिकल कॉलेज में रानी दुर्गावती की प्रतिमा का अनावरण किया। 

दुर्गावती का प्रारंभिक जीवन और शौर्य के प्रति झुकाव-

5 अक्टूबर 1524 को उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में चंदेल वंश के राजा कीरत राय के घर जन्मी दुर्गावती का बचपन से ही झुकाव शौर्य और पराक्रम की ओर था। तीरंदाजी, तलवारबाजी और घुड़सवारी में माहिर दुर्गावती अपने पिता के साथ जंगलों में शिकार करने जाती थीं। उनका व्यक्तित्व बता देता था कि वे केवल एक राजकुमारी नहीं, बल्कि भविष्य की एक महान योद्धा हैं।

चंदेल और गोंड राजवंश के बीच सांस्कृतिक और राजनीतिक गठजोड़-

1542 में 18 वर्ष की उम्र में उनका विवाह गोंड राजा दलपत शाह से हुआ। ये शादी चंदेल और गोंड राजवंश के बीच सांस्कृतिक और राजनीतिक गठजोड़ का प्रतीक था। लेकिन वक़्त को ये ख़ुशी रास नहीं आई और कुछ ही सालों में रानी के पति ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। इस कठिन वक़्त में रानी ने कमजोर पड़ने के बजाय अपने बेटे वीर नारायण को गद्दी पर बैठाया और खुद गोंडवाना राज्य की बागडोर संभाल ली।  उस समय गोंडवाना राज्य नर्मदा घाटी और उत्तर-मध्य भारत के बड़े हिस्से तक फैला था । उनकी अगुवाई में उनके राज्य ने तमाम नई ऊंचाइयों को छूआ। उन्होंने राजधानी को चौरागढ़ से सिंगौरगढ़ स्थानांतरित किया, सेना को सुसज्जित किया, कई मंदिर, धर्मशालाएं और जलाशयों का निर्माण कराया। यह सब उनके प्रजापालक और दूरदर्शी नेतृत्व को साफ़ दिखाता है।

1556 में मालवा के सुल्तान बाज बहादुर के खिलाफ ऐतिहासिक जीत-

लेकिन उनकी शक्ति और नेतृत्व मुगल साम्राज्य को चुभ रही थी। 1556 में मालवा के सुल्तान बाज बहादुर ने गोंडवाना पर हमला कर दिया। रानी ने अपने साहस और कुशल रणनीति से उसे घुटनों पर ला दिया। इस जीत ने रानी की प्रतिष्ठा को और बढ़ा दिया। लेकिन 1562 में बाज बहादुर की हार के बाद मुगलों ने मालवा और रीवा पर कब्जा कर लिया। इन इलाक़ों की सीमाएं गोंडवाना से सटी हुई थीं, इसलिए मुगल गोंडवाना को भी हथियाने की फिराक में लग गए।

मुगल साम्राज्य के हमलों से गोंडवाना की रक्षा-

1564 में अकबर के सेनापति आसफ खान ने गोंडवाना पर हमला कर दिया। रानी ने अपने बेटे वीर नारायण के साथ मोर्चा संभाला। हाथी पर सवार होकर रानी ने युद्ध की अगुवाई करना शुरू किया। वीर नारायण ने भी अद्भुत वीरता दिखाई, लेकिन मुगलों की विशाल सेना के सामने गोंडवाना की सेना कम पड़ने लगी। इस युद्ध में रानी के शरीर पर कई तीर लगे और वे बुरी तरह से घायल हो गईं। जब उन्हें लगा कि अब ज़िन्दगी अपनी अंतिम सांसें ले रही है .... वक़्त बहुत थोड़ा बचा था और दुश्मनों के हाथों पकड़ा जाना तय है, तो उन्होंने अपने सैनिक से अपनी हत्या करने को कहा। उस सैनिक का हाथ कांपने लगा और उसने अपने रानी को मारने से मना कर दिया, तो रानी ने अपनी तलवार से खुद को ख़त्म कर लिया। 24 जून 1564 का वह दिन था, जब भारत ने अपनी एक सच्ची नायिका को खो दिया।

रानी दुर्गावती की शहादत और भारतीय संस्कृति में उनका योगदान-

रानी दुर्गावती सिर्फ एक योद्धा नहीं थीं, बल्कि वे भारतीय संस्कृति और स्वाभिमान की प्रतीक थीं। अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फज़ल ने भी उनकी सुंदरता, साहस और नेतृत्व की सराहना की। उनकी शहादत को आज भी हर साल 24 जून को " बलिदान दिवस " के रूप में याद किया जाता है। उनका जीवन यह संदेश देता है कि स्त्री केवल कोमलता की मूरत नहीं, बल्कि ज़रुरत पड़ने पर शक्ति का साक्षात रूप भी हो सकती है। इस वीरांगना को नमन है, जो इतिहास के पन्नों पर अपने साहस और बलिदान के कारण अमर हो गईं।

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