बड़ी खबरें
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार (22 फरवरी) को लखीमपुर खीरी जिले के कुंभी में देश के पहले बायो-पॉलिमर संयंत्र का शिलान्यास किया। यह संयंत्र भारत की पर्यावरणीय स्थिरता और नवाचार के प्रति प्रतिबद्धता का एक महत्वपूर्ण कदम है। ₹2,850 करोड़ के निवेश से स्थापित यह बायो-पॉलिमर संयंत्र एक स्वच्छ और हरित भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान करेगा, साथ ही स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देने और रोजगार सृजन में मदद करेगा।
बायो-पॉलिमर क्या होते हैं?
बायो-पॉलिमर प्राकृतिक पॉलिमर होते हैं जो जीवित जीवों द्वारा उत्पन्न होते हैं। ये जैविक प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और सभी जीवों में पाए जा सकते हैं। बायो-पॉलिमर का उपयोग पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद बनाने के लिए किया जाता है, जो बायोडिग्रेडेबल होते हैं और आसानी से टूट जाते हैं।
पर्यावरण संकट और बायो-पॉलिमर की आवश्यकता क्या है?
आज दुनिया गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रही है। ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण, और बढ़ते प्लास्टिक कचरे जैसे मुद्दे तत्काल ध्यान की आवश्यकता रखते हैं। पेट्रोलियम-आधारित प्लास्टिक से बायोडिग्रेडेबल, पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों की ओर संक्रमण की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है। बायो-पॉलिमर संयंत्र इस संकट का एक प्रत्यक्ष समाधान है। यह डिस्पोजेबल उत्पादों जैसे बोतलें, कंटेनर और पैकेजिंग सामग्री का उत्पादन करेगा, जो हमारे प्लास्टिक पर निर्भरता को कम करने में मदद करेगा।
कहां-कहां इस्तेमाल किए जाते हैं बायो-पॉलिमर?
1. सेल्यूलोज़
यह सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला प्राकृतिक बायो-पॉलिमर है, जो पौधों की कोशिका भित्ति में पाया जाता है। इसका उपयोग कागज, कपड़ा और बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक बनाने में किया जाता है। संयंत्र सेल्यूलोज़ का उपयोग करके स्थायी पैकेजिंग समाधान बनाएगा।
2. स्टार्च
मक्का और आलू जैसे पौधों से निकाला गया स्टार्च बायो-प्लास्टिक में प्रसंस्कृत किया जा सकता है। इसका उपयोग डिस्पोजेबल कटलरी, प्लेट्स और पैकेजिंग में किया जाता है, जो दैनिक जीवन में आम हैं।
3. प्रोटीन
रेशम (रेशम के कीड़ों से) और ऊन (भेड़ों से) जैसे प्रोटीन बायो-पॉलिमर्स का उपयोग वस्त्रों, चिकित्सा अनुप्रयोगों और दवा वितरण प्रणालियों में किया जाता है।
4. पोलिलैक्टिक एसिड (PLA)
यह मक्का या गन्ने से प्राप्त एक बायो-प्लास्टिक है, जिसका उपयोग डिस्पोजेबल कटलरी, कप और 3D प्रिंटिंग में किया जाता है।
5. काइटिन और चिटोसन
ये बायो-पॉलिमर्स क्रस्टेशियन और कीटों के बाह्यकंकालों में पाए जाते हैं, जिनका उपयोग जल उपचार, सौंदर्य प्रसाधनों और खाद्य पैकेजिंग के लिए बायोडिग्रेडेबल फिल्म बनाने में किया जाता है।
पर्यावरण हितैषी बायो-पॉलिमर संयंत्र-
यह बायो-पॉलिमर संयंत्र न केवल पर्यावरण के लिए वरदान है, बल्कि यह आर्थिक विकास और रोजगार सृजन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यह संयंत्र 80,000 टन वार्षिक उत्पादन क्षमता के साथ स्थापित किया जाएगा और स्थानीय निवासियों और किसानों के लिए हजारों रोजगार अवसर उत्पन्न करेगा। इसके साथ ही यह युवा लोगों को उत्पादन, अनुसंधान और स्थिरता के क्षेत्रों में नए अवसर प्रदान करेगा। संयंत्र के संचालन से स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी महत्वपूर्ण बढ़ावा मिलेगा, खासकर जब इसे बलरामपुर चीनी मिल्स द्वारा स्थापित किया जा रहा है, जो भारत की सबसे बड़ी चीनी मिलों में से एक है।
बायो-पॉलिमर का कृषि और अन्य उद्योगों में उपयोग
बायो-पॉलिमर न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि कई उद्योगों के लिए भी क्रांतिकारी साबित हो रहे हैं। कृषि में, इन्हें फसल की पैदावार बढ़ाने और रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता को कम करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, बायो-पॉलिमरिक हाइड्रोजेल्स मिट्टी में नमी बनाए रखने में मदद करते हैं और नियंत्रित तरीके से उर्वरक छोड़ने की अनुमति देते हैं।
तेल और गैस उद्योगों में भी बायो-पॉलिमर का उपयोग स्केल अवरोधकों के रूप में किया जाता है, जिससे उपकरणों की कार्यक्षमता बनी रहती है। कूलिंग टावरों में भी ये स्केल अवरोधक के रूप में उपयोग किए जाते हैं, जिससे जल उपचार के लिए एक टिकाऊ विकल्प बनता है। चिकित्सा क्षेत्र में, बायो-पॉलिमर्स का उपयोग दवा वितरण प्रणालियों और ऊतक इंजीनियरिंग में किया जा सकता है, जिससे इलाज के परिणाम बेहतर होते हैं।
पैकेजिंग: खाद्य उद्योग के लिए प्लास्टिक मुक्त भविष्य-
पैकेजिंग उद्योग, जो प्लास्टिक कचरे के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है, अब बायो-पॉलिमर्स के बढ़ते उपयोग से लाभान्वित हो रहा है। PLA और स्टार्च-आधारित बायो-पॉलिमर्स खाद्य उद्योग में पैकेजिंग बनाने के लिए उपयोग किए जा रहे हैं। यह प्राकृतिक रूप से विघटित हो जाते हैं, जिससे प्लास्टिक कचरे को कम करने में मदद मिलती है। 2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक प्लास्टिक कचरा उत्पादन 2000 से 2019 तक दोगुना हो गया है, और अब बायो-पॉलिमर इस संकट को कम करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय साबित हो रहे हैं।
स्थिरता और हरित प्रौद्योगिकी की ओर अग्रसर-
भारत का पहला बायो-पॉलिमर संयंत्र एक महत्वपूर्ण कदम है जो भारत को स्थिरता और हरित प्रौद्योगिकियों में एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करेगा। बायो-पॉलिमर उत्पादन के लिए यह संयंत्र प्लास्टिक कचरे के प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान देगा। इस पहल से भारत न केवल पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करेगा, बल्कि यह टिकाऊ विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाएगा।
Baten UP Ki Desk
Published : 22 February, 2025, 6:44 pm
Author Info : Baten UP Ki