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बाराबंकी का वो नाटक, जिसने अंग्रेजों की औकात याद दिला दी!

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बाराबंकी, यह नाम सुनते ही क्या आपके मन में कोई विशेष भाव जागता है? शायद नहीं क्योंकि जैसे यूपी के बाकी ज़िले हैं वैसे ये भी एक जिला है। लेकिन जो, वाकया  बताया जा रहा है। उसे जानकार बाराबंकी नाम आपके लिए वीरता, साहस और चतुराई का पर्याय बन जाएगा। यह वही धरती है जहाँ कभी भगवान राम ने शिक्षा ग्रहण की थी, जहाँ पांडवों ने अपने वनवास का कुछ समय बिताया था। और आज, यही धरती वीरों की जन्मभूमि भी है। ऐसे वीर, जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर हमें आजादी दिलाई।

क्या है बाराबंकी जिले की वीरती की कहानी?

कहानी है साल 1942 की ये वह ज्वलंत समय था जब भारत छोड़ो आंदोलन अपने चरम पर था। महात्मा गांधी ने पूरे देश को एक मंत्र दिया था - "करो या मरो"। हर भारतीय के दिल में आजादी की आग धधक रही थी। ऐसे में बाराबंकी के युवा कैसे पीछे रह सकते थे। बाराबंकी के अठारह वीर क्रांतिकारी युवा जोश से भरे हुए उनके नाम थे - शिव नारायण, रामचंदर, श्रीकृष्ण, श्रीराम, मक्का लाल, सर्वजीत सिंह, राम चंद्र, रामेश्वर, कामता प्रसाद, सर्वजीत, कल्लूदास, कालीचरण, बैजनाथ प्रसाद, रामगोपाल, रामकिशुन, द्वारिका प्रसाद और मास्टर। ये नाम आज इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में लिखे हैं। इन युवाओं ने एक ऐसी योजना बनाई जो अपने साहस और चतुराई में उत्तम थी। एक ऐसी योजना  एक ऐसा नाटक, जिसने अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिला दी। इन क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध दर्ज कराने के लिए एक नाटक के कार्यक्रम का प्लान बनाया।  उस समय बाराबंकी का डिप्टी कमिश्नर था एक अंग्रेज अफसर - ए.वी. हार्डी। एक दिन, उसे एक सामान्य से नाटक देखने के लिए आमंत्रित किया गया। हार्डी को क्या पता था कि यह नाटक उसके जीवन का सबसे शर्मनाक अनुभव बनने वाला है।

क्या थी उस नाटक की कहानी?

नाटक शुरू हुआ अवधी भाषा में। हार्डी बैठा देख रहा था, अनजान कि क्या होने वाला है। नाटक में दिखाया गया कि कैसे अंग्रेज भारतीयों पर अत्याचार करते हैं और कैसे उनका शोषण करते हैं। हार्डी को लगा यह एक साधारण नाटक है। लेकिन तभी वह पल आया जिसने इतिहास रच दिया। हुआ यूँ कि नाटक के अंत में, हार्डी के किरदार को जूतों की माला पहनाई गई  कल्पना कीजिए उस दृश्य की - एक अंग्रेज अफसर, जिसे भारतीयों ने इतना अपमानित किया  वह भी उसकी आँखों के सामने। यह केवल एक नाटक नहीं था, यह था गुलामी के खिलाफ एक शक्तिशाली प्रतीक। यह था भारतीय आत्मा का वह गर्जन, जो कह रहा था "हम अब और गुलामी नहीं सहेंगे"। हार्डी, जो अवधी नहीं समझता था, उसे नाटक की असलियत समझ में नहीं आई। वह समझा यह एक साधारण मनोरंजन का कार्यक्रम था। लेकिन अगले दिन जब उसे सच्चाई का पता चला, तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसने पूरे गाँव पर कहर बरपा दिया। घरों में रखा अनाज कुओं में फेंक दिया गया, कुओं में मिट्टी का तेल डाल दिया गया। यह था अंग्रेजों का क्रूर बदला। उन्होंने सोचा था कि इस तरह वे भारतीयों का हौसला तोड़ देंगे।

अंग्रेंजों की यातनाएँ-

क्या इससे बाराबंकी के वीरों का हौसला टूटा? कदापि नहीं! उन्होंने और भी जोश से विद्रोह किया। उन्होंने डाक और रेलवे स्टेशन लूट लिए। यह था उनका जवाब, यह था उनका संदेश कि भारतीय अब डरने वाले नहीं हैं। इस घटना ने पूरे क्षेत्र में आजादी की लड़ाई को एक नया जोश दे दिया। लोगों ने देखा कि अगर हम एकजुट होकर खड़े हों, तो अंग्रेजों की ताकत कुछ भी नहीं है। यह घटना बाराबंकी के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुई। लेकिन इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी। अंग्रेजों ने इन अठारह वीरों को गिरफ्तार कर लिया। उन्हें जेल में डाल दिया गया, यातनाएँ दी गईं। लेकिन उनका हौसला नहीं टूटा। जेल में भी वे आजादी के गीत गाते रहे, दूसरे कैदियों को प्रेरित करते रहे।

वीरों को किया गया सम्मानित-

आजादी मिलने के बाद, 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने इन सभी वीरों को ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया। यह था देश का उन वीरों के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक, जिन्होंने अपना सब कुछ देश के लिए न्योछावर कर दिया। आज, बाराबंकी में एक भव्य प्रवेश द्वार खड़ा है। उस पर अंकित हैं उन अठारह वीरों के नाम। हर बार जब कोई उस द्वार से गुजरता है, वह इतिहास के उस स्वर्णिम पृष्ठ को पढ़ता है। यह द्वार हमें याद दिलाता है कि हमारी आजादी कितनी कीमती है, कितने बलिदानों से हासिल हुई है।

वीरों की कहानियां सिखाती हैं सबक-

यह कहानी हमें कई सबक सिखाती है। पहला, यह कि स्वतंत्रता का संघर्ष केवल बड़े शहरों तक सीमित नहीं था। हर गाँव, हर कस्बे ने अपना योगदान दिया। दूसरा, यह कि साहस और बुद्धिमत्ता से कुछ भी असंभव नहीं है। और तीसरा, यह कि हमारी सांस्कृतिक विरासत, हमारी भाषा, हमारा नाटक - ये सब हमारे हथियार हैं, जिनका उपयोग हम अपने अधिकारों के लिए लड़ने में कर सकते हैं।  बाराबंकी की यह गाथा हमें याद दिलाती है कि हमारी आजादी कितनी कीमती है। यह हमें प्रेरित करती है कि हम अपने देश के लिए कुछ करें, उसे और आगे ले जाएँ। क्योंकि आजादी सिर्फ एक बार नहीं जीती जाती, हर पीढ़ी को उसे बचाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

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