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उत्तर प्रदेश की बिजली कंपनियां संपत्ति के मामले में देशभर में दूसरे स्थान पर हैं, फिर भी इन्हें औने-पौने दाम पर निजी कंपनियों को सौंपने की तैयारी की जा रही है। यह खुलासा हाल ही में ऊर्जा मंत्रालय द्वारा 31 मार्च 2024 तक के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट में हुआ है, जिसमें यूपी की बिजली कंपनियों की कुल संपत्तियों का मूल्य लगभग 1.77 लाख करोड़ रुपये बताया गया है। इसके बावजूद निजीकरण की प्रक्रिया को लेकर राज्य में विरोध के स्वर तेज हो गए हैं।
बिजली संपत्तियों में सरकारी क्षेत्र का वर्चस्व बरकरार
ऊर्जा मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में राज्य सेक्टर की कुल संपत्तियां लगभग 13.6 लाख करोड़ रुपये हैं, जबकि प्राइवेट सेक्टर की कुल परिसंपत्तियां महज 87 हजार करोड़ रुपये हैं। संपत्तियों के आधार पर टॉप 5 राज्यों में महाराष्ट्र (1.87 लाख करोड़) पहले स्थान पर है, उसके बाद उत्तर प्रदेश (1.77 लाख करोड़), तमिलनाडु (1.59 लाख करोड़), राजस्थान (1.02 लाख करोड़) और आंध्र प्रदेश (96,598 करोड़) शामिल हैं।
जोनवार आंकड़े भी चौंकाने वाले
यूपी की बिजली कंपनियों में सबसे ज्यादा संपत्ति पूर्वांचल क्षेत्र की है — करीब 54,164 करोड़ रुपये, इसके बाद मध्यांचल (42,241 करोड़), पश्चिमांचल (39,842 करोड़), दक्षिणांचल (36,772 करोड़) और कानपुर इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कंपनी (KESCO) की 4,527 करोड़ रुपये की संपत्तियां हैं।
निजीकरण पर उपभोक्ता परिषद ने जताई आपत्ति
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने इस मुद्दे पर कड़ा विरोध दर्ज कराया है। उनका आरोप है कि पॉवर कॉर्पोरेशन और ट्रांजेक्शन एडवाइजर कंपनियां मिलकर संपत्तियों का मूल्यांकन जानबूझकर कम करके दिखा रही हैं ताकि इन्हें औने-पौने दाम पर निजी घरानों को बेचा जा सके।
वर्मा ने कहा, "यदि वास्तविक मूल्यांकन किया गया तो कोई भी निजी घराना इतनी बड़ी परिसंपत्तियों को खरीदने की स्थिति में नहीं होगा। यह जनता की संपत्ति है, इसे किसी भी कीमत पर कौड़ी के भाव नहीं बेचा जा सकता।"
क्या है चिंता की बात?
बिजली कंपनियों का निजीकरण उपभोक्ताओं की जेब पर भी असर डाल सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि निजीकरण के बाद दरों में बढ़ोतरी हो सकती है और सेवा की गुणवत्ता में गिरावट का खतरा भी बना रहेगा।
बिजली का निजीकरण: सेवा से लाभ तक की संवेदनशील दहलीज़
देश की शीर्ष संपन्न बिजली कंपनियों में शामिल यूपी की कंपनियों का अगर निजीकरण होता है, तो यह केवल आर्थिक नहीं बल्कि सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी बड़ा मुद्दा बन सकता है। ऐसे में जरूरत है पारदर्शी मूल्यांकन और जनहित को प्राथमिकता देने की — क्योंकि बिजली केवल एक सेवा नहीं, लोगों की बुनियादी जरूरत है।
Baten UP Ki Desk
Published : 28 June, 2025, 8:53 pm
Author Info : Baten UP Ki