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50 से 75 साल उम्र वाले लोंगो को है इस कैंसर से ज्यादा खतरा, BHU के अध्यन में आया परिणाम

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बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के एक नवीनतम अध्ययन में कोलोरेक्टल कैंसर को 50 से 75 साल की उम्र वालों के लिए विशेष रूप से खतरनाक बताया गया है। यह अध्ययन BHU के मेडिकल साइंसेज विभाग द्वारा किया गया है, जिसमें कई महत्वपूर्ण निष्कर्ष सामने आए हैं।

क्या होता है कोलोरेक्टल कैंसर?

कोलोरेक्टल कैंसर यानी बड़ी आंत का कैंसर। इसका बढ़ना खतरनाक है। समय से इस पर ध्यान न देने से यह जानलेवा होती है। कोलोरेक्टल कैंसर आमतौर पर, आंतों या रेक्टल परत जिसे पोलिप कहा जाता है, उसकी सतह पर बटन जैसी गाँठ के रूप में शुरू होता है। जैसे-जैसे कैंसर बढ़ता है, यह आंत या मलाशय की दीवार पर हमला करना शुरू कर देता है। आस-पास की लसीका ग्रंथि पर भी हमला हो सकता है। चूँकि आंत की दीवार और अधिकांश मलाशय से रक्त को लिवर में ले जाया जाता है, कोलोरेक्टल कैंसर पास की लसीका ग्रंथि में फैलने के बाद लिवर में फैल सकता है। 

इस उम्र के लोगों को है ज्यादा खतरा-

आईएमएस बीएचयू के गैस्ट्रोलॉजी विभाग में एम्स दिल्ली, एसजीपीआई लखनऊ के साथ मिलकर एक अध्ययन शुरू किया है। प्रथम दृष्टया इसमें यह पाया गया कि 50 साल से 75 साल के बीच वाले लोगों में यह बीमारी अधिक देखने को मिल रही है। इस बीमारी के बारे में और जानकारी जुटाने के उद्देश्य से इस पर आगे भी अध्ययन जारी रहेगा।

क्या हैं अध्ययन के मेन प्वाइंटस ?

1-उम्र का प्रभाव: 

अध्ययन में पाया गया कि 50 से 75 साल के लोगों में कोलोरेक्टल कैंसर का जोखिम अधिक होता है। इस उम्र वर्ग के लोगों में यह बीमारी तेजी से फैल रही है और इसके कारण मृत्यु दर भी अधिक है।

2-लक्षण और निदान:

कोलोरेक्टल कैंसर के लक्षणों में पेट दर्द, मल में खून आना, वजन घटाना और कमजोरी शामिल हैं। प्रारंभिक चरण में इस बीमारी का निदान करना मुश्किल हो सकता है, जिससे इसके इलाज में देरी हो सकती है।

3-जीवनशैली का प्रभाव:

अध्ययन में यह भी पाया गया कि गलत खानपान, शराब और धूम्रपान जैसी आदतें कोलोरेक्टल कैंसर के जोखिम को बढ़ाती हैं। इसके अलावा, नियमित व्यायाम और स्वस्थ आहार इस बीमारी से बचाव में सहायक हो सकते हैं।

4-इलाज और प्रबंधन:

BHU के अध्ययन में यह बताया गया है कि यदि प्रारंभिक अवस्था में इस बीमारी का पता चल जाए तो इसका इलाज संभव है। सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी जैसे उपचार विकल्प उपलब्ध हैं।

5-रोकथाम के उपाय:

विशेषज्ञों का सुझाव है कि 50 साल की उम्र के बाद नियमित स्वास्थ्य परीक्षण कराना चाहिए। कोलोस्कोपी जैसे परीक्षण से प्रारंभिक अवस्था में कैंसर का पता लगाया जा सकता है, जिससे इलाज में सफलता की संभावना बढ़ जाती है।

क्या है विशेषज्ञों की राय?

BHU के मेडिकल साइंसेज विभाग के प्रमुख डॉ. राकेश कुमार ने बताया, "कोलोरेक्टल कैंसर का समय पर निदान और इलाज बहुत महत्वपूर्ण है। हमने पाया कि 50 से 75 साल के लोगों में इस बीमारी का जोखिम अधिक होता है, इसलिए इस उम्र वर्ग के लोगों को नियमित स्वास्थ्य परीक्षण कराने चाहिए।"

इस परीक्षण से मिलती है सही जानकारी-

कोलोरेक्टल कैसर की जांच आमतौर पर मल परीक्षण से शुरू होती है। यदि परीक्षण का परिणाम सकारात्मक है, तो कोलोनोस्कोपी की सिफारिश की जाती है। यह इस कैंसर के शुरुआती लक्षण (पूर्व कैंसरग्रस्त गांठ) का पता लगाने के लिए सबसे कारगर तरीका है। इसके बाद शुरुआती इलाज शुरू हो जाता है तो जान बच जाती है। अध्ययनों से पता चला है कि जांच के माध्यम से शुरुआती पहचान से कोलोरेक्टल कैंसर से होने वाली मौतों की संख्या को काफी कम किया जा सकता है।

सरकार और समाज की भूमिका-

सरकार और समाज को मिलकर इस बीमारी के प्रति जागरूकता फैलानी चाहिए। स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन, मुफ्त स्वास्थ्य परीक्षण और लोगों को स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करना आवश्यक है। BHU के इस अध्ययन ने कोलोरेक्टल कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक किया है और यह बताया है कि इस बीमारी से बचाव और इलाज संभव है। 50 से 75 साल की उम्र के लोगों को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि वे इस जानलेवा बीमारी से सुरक्षित रह सकें।

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