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उत्तर प्रदेश में वन्य जीव एवं वन्य जीव संरक्षण

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विविध स्थलाकृति तथा जलवायु के कारण उत्तर प्रदेश का प्राणि जीवन समृद्ध है। यहाँ के वनों में शेर, तेंदुआ, जंगली भालू, जंगली सूअर, चीतल, हिरन, सांभर, सियार, घड़ियाल, साही, जंगली बिल्ली, खरगोश, लोमड़ी, आदि वन्यजीव पाये जाते हैं। कुछ जीव प्रजातियाँ विशेष क्षेत्रों में ही पाई जाती हैं। जैसे- हाथी तराई और पहाड़ी इलाकों में पाए जाते हैं। चिंकारा और हिरन सूखे क्षेत्रों में तथा भालू और कस्तूरी मृग हिमालयी क्षेत्र में मिलते हैं। प्रदेश में कई उद्यान एवं अभ्यारण्य है जहाँ उत्तरी भारत के अन्य भागों में विलुप्त हो रहे वन्य जीवों को पुनः बसाया गया है। ऐसे जीवों में बंगाल फ्लोरिकन एवं एक सींग वाला गैंडा प्रमुख है। प्रदेश में पक्षी प्राणियों की आबादी इतनी अधिक समृद्ध हैं कि यहाँ कृषि क्षेत्रों, झीलों तथा जलनिकायों के आस-पास पक्षियों के झुण्ड देखे जा सकते हैं। प्रदेश में कबूतर, गौरैया, जंगली बत्तख, चील, तीतर, कोयल, मोर, कठफोड़वा आदि पक्षी भी पाए जाते हैं। नदी और झील के किनारे कई तरह के पक्षी जैसे काली गर्दन वाला सारस, स्टोर्क तथा गिद्ध पाए जाते हैं।

उत्तर प्रदेश के प्रमुख वन्य जीव विहार एवं राष्ट्रीय उद्यानः 
प्रदेश का सबसे पुराना वन्य जीव विहार चंद्रप्रभा है जो 1957 ई. में चंदौली जिले में स्थापित किया गया। उत्तर प्रदेश में कुकरैल वन लखनऊ के समीप स्थित है। कुकरैल वन में 1984-85 से लुप्त प्रजातियों हेतु एक प्रजनन केंद्र स्थापित किया गया है। उत्तर प्रदेश में एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान दुधवा है जो एक टाइगर रिजर्व भी है। इसका विस्तार लखीमपुर खीरी व बहराइच जिले में है। दुधवा राष्ट्रीय उद्यान का कुल क्षेत्रफल लगभग 490 वर्ग किमी. है। 1968 में स्थापित इस विहार को 1977 में राष्ट्रीय पार्क का दर्जा प्रदान किया गया। दुधवा राष्ट्रीय पार्क को वर्ष 1987-88 में टाइगर रिजर्व परियोजना में शामिल किया गया। जिसके तहत यह प्रदेश का प्रथम टाइगर रिजर्व बना । दुधवा राष्ट्रीय पार्क की उत्तरी सीमा मोहन नदी बनाती है, जबकि उसकी दक्षिणी सीमा सुहेली नदी द्वारा निर्धारित होती है।

वन्यजीवों की गणना और संरक्षण के प्रयास

बाघ जनगणना, 2018 के अनुसार उ.प्र. में 173 बाघ है। प्रदेश का दूसरा टाइगर रिजर्व 2012 में जिम कार्बेट के बफर जोन के रूप में अमनगढ़ टाइगर रिजर्व, बिजनौर को घोषित किया गया। प्रदेश का तीसरा टाइगर रिजर्व 9 जून, 2014 में पीलीभीत वन्य जीव अभयारण्य के रूप में घोषित किया गया। पीलीभीत बाघ अभयारण्य, पीलीभीत एवं शाहजहांपुर जिले में विस्तृत है।

प्रोजेक्ट एलीफैंट की शुरूआत 1992 में की गयी जिसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश एलीफैंट रिजर्व की स्थापना 9 सितंबर, 2009 को की गई थी। उत्तर प्रदेश में हाथी तराई एवं शिवालिक के गिरिपदों में पाया जाता है। हाथी गणना आकलन, 2017 के अनुसार उत्तर प्रदेश में 232 हाथी हैं।

राष्ट्रीय जलजीव घोषित ‘गंगा डॉल्फिन' उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर एवं सोनभद्र जिलों में पायी जाती है। इसे स्थानीय भाषा में 'सुइस ' या 'सुसू' कहा जाता है। उत्तर प्रदेश में गंगा डॉल्फिनों की कुल संख्या 1275 है। भारत सरकार तथा राज्य सरकार द्वारा 70:30 के अनुपात में नेशनल प्लान फार कन्जर्वेशन ऑफ एक्वेटिक ईको सिस्टम वर्ष 2013-14 से क्रियान्वित की जा रही है।

उत्तर प्रदेश में चिड़ियाघर: 

चिड़ियाघर का मुख्य उद्देश्य दर्शकों का मनोरंजन करने के साथ-साथ आगंतुकों, वन्यजीव संरक्षण, शिक्षा, अनुसंधान और लुप्तप्राय वन्यजीवों के बीच वन्य जीवन और पर्यावरण के प्रति जागरूकता और रुचि पैदा करना है। जीवों की हानि । साथ ही आम जनता को वन्य जीव संरक्षण एवं पर्यावरण के प्रति जागरूक होकर उनकी भागीदारी एवं कर्तव्यों के प्रति जागरूक करना होगा। उत्तर प्रदेश में चिड़ियाघर प्रबंधन शीर्ष एजेंसी 'केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण' है। उत्तर प्रदेश में तीन चिड़ियाघर हैं-

  • नवाब वाजिद अलीशाह प्राणी उद्यान लखनऊ: इस प्राणि उद्यान की स्थापना 29 नवंबर 1921 को तत्कालीन राज्यपाल, उत्तर प्रदेश, सर स्पेंसर हार्कोर्ट बटलर द्वारा तत्कालीन प्रिंस ऑफ वेल्स के लखनऊ आगमन के उपलक्ष्य में की गई थी और इसका नाम "प्रिंस ऑफ वेल्स जूलॉजिकल गार्डन " रखा गया था। इसमें 29 हेक्टेयर का क्षेत्र शामिल है। वर्ष 2001 में स्थित, इसे सरकार द्वारा लखनऊ जूलॉजिकल गार्डन का नाम दिया गया था, जिसका नाम बदलकर वर्ष 2015 में नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उदय, लखनऊ कर दिया गया था। 
  • कानपुर चिड़ियाघरः यह चिड़ियाघर भारत सरकार द्वारा 1971 में खोला गया इसके निर्माण कार्य में 2 वर्ष लगे और यह आम लोगो के लिए 4 फरवरी 1974 को खोला गया। यहाँ का पहला जानवर उद्बीलाव था जो की चम्बल घाटी से आया था। कानपुर में स्थित मंधना (ब्लू वर्ल्ड) से पास में है। यह बड़े चिड़ियाघर उद्यान की श्रेणी में आता है। यह भारत के सर्वोत्तम चिड़ियाघरों में एक है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा चिड़ियाघर है। यहाँ पर लगभग 1250 जीव-जंतु है। कुछ समय पिकनिट के तौर पर बिताने और जीव-जंतुओं को देखने के लिए यह चिड़ियाघर एक बेहतरीन जगह है।
  • शहीद अशफाक उल्लाह प्राणी उद्यान: शहीद अशफाक उल्ला खान प्राणी उद्यान या गोरखपुर प्राणी उद्यान जिसे आमतौर पर गोरखपुर चिड़ियाघर के रूप में जाना जाता है, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में स्थित है। इसका नाम स्वतंत्रता कार्यकर्ता अशफाकुल्ला खान के नाम पर रखा गया है। 121 एकड़ के क्षेत्र के साथ, यह कानपुर प्राणी उद्यान के बाद राज्य का दूसरा सबसे बड़ा चिड़ियाघर है। इसे 27 मार्च 2021 को जनता के लिए खोल दिया गया था। शहीद अशफाक उल्ला खान प्राणी उद्यान गोरखपुर - देवरिया बाईपास रोड पर स्थित है। यह गोरखपुर रेलवे/बस स्टेशन से लगभग 8 किमी और हवाई अड्डे से लगभग 11 किमी दूर है। यह प्राणी उद्यान पूर्वांचल में पहला और उत्तर प्रदेश में तीसरा है। इसके एक किनारे पर ऐतिहासिक रामगढ़ ताल झील स्थित है। जो एक आर्द्र भूमि है। गोरखपुर शहर राप्ती और रोहिन नदियों से घिरा हुआ है। यहाँ पर एशियाई शेर, बाघ, तेंदुआ, गैंडा, जेबरा, दरियाई घोड़ा, भालू की 2 प्रजातियाँ, बंदर की 3 प्रजाति हिरण की 6 प्रजातियों 3 सहित 58 से अधिक प्रजातियों के 387 जंगली जानवरों को रखने की व्यवस्था की गई है तथा लकड़बग्घा, भेड़िया, मछलीघर, तितली पार्क और मगरमच्छ सहित सरीसृप और पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां आकर्षण का केंद्र हैं। इसमें संगरोध केंद्र, बचाव केंद्र, एक पोस्टमार्टम हाउस, एक रसोई और फीड स्टोर है। चूंकि पूर्वी उत्तर प्रदेश में गोरखपुर जूलॉजिकल पार्क एकमात्र चिड़ियाघर है, अतः बचाव केंद्रों की स्थापना से पूर्वांचल और उसके आसपास एवं बिहार तथा पड़ोसी देश नेपाल के जंगलों से आबादी वाले क्षेत्र में भटकने वाले जंगली जानवरों को बचाने और उनके तत्काल उपचार के लिए सुविधा उपलब्ध होगी। इस प्रकार मानव-पशु टकराव से होने वाली हानि को रोका जा सकता है। वन्य प्राणी सुरक्षा सप्ताह प्रत्येक वर्ष 1-7 अक्टूबर के दौरान मनाया जाता है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने पटना पक्षी विहार ( एटा) को अभ्यारण्य घोषित किया है। प्रदेश में पक्षियों के प्रति आम जनता में जागरूकता उत्पन्न करने के लिए प्रतिवर्ष दिसंबर माह के प्रथम सप्ताह में बर्ड फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है। सबसे छोटा पक्षी विहार- शेखा पक्षी विहार (अलीगढ़) एवं सबसे बड़ा पक्षी विहार-लाख बहोशी पक्षी विहार (कन्नौज)। राष्ट्रीय पक्षी मोर के संरक्षण के लिए मथुरा के वृंदावन में मयूर संरक्षण केंद्र स्थापित किया जा रहा है। मगरमच्छ एवं घड़ियालों के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 'घड़ियाल प्रजनन एवं पुनर्वास योजना' चलाई जा रही है। लखनऊ एवं कानपुर प्राणी उद्यानों में तितली पार्क का निर्माण किया गया है, क्योंकि वर्तमान में तितलियों की संख्या कम होती जा रही है।

नाइट सफारी पार्क- यह रात्रि वन्य जीव पार्क ग्रेटर नोएडा में 120 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है, इसका निर्माण चीन एवं सिंगापुर में स्थापित नाइट सफारी के तर्ज पर किया गया है। यह इस प्रकार का विश्व का चौथा एवं भारत का प्रथम सफारी पार्क है। राष्ट्रीय चम्बल वन जीव विहार के अन्तर्गत इटावा के फिशर वन क्षेत्र में एक लायन सफारी पार्क, एक एलीफैंट सफारी पार्क तथा तेंदुआ, लकड़बग्घा, भालू एवं हिरण सफारी पार्क की स्थापना की गई है। इंग्लैंड के लांगलीट सफारी पार्क (Longleat Safari Park) से अभिप्रेरित होकर उत्तर प्रदेश के जनपद इटावा में बब्बर शेर प्रजनन केंद्र एवं लॉयन सफारी पार्क विकसित किया गया है। उत्तर प्रदेश में चिंकारा विंध्य के जंगलों में पाया जाता है। उत्तर प्रदेश में गैंडा तराई क्षेत्र में पाया जाता है। भूरा रीछ तथा कस्तूरी हिरन उत्तर प्रदेश के हिमालयी क्षेत्रों के समीप पाया जाता है।

प्रदेश में वन्य प्राणी संरक्षण:
वन प्राणियों के संरक्षण हेतु भारत में प्रथम प्रयास 1935 ई. में उत्तर प्रदेश के देहरादून ( अब उत्तराखण्ड में) में मोतीचूर वन्य जीव विहार (राजाजी राष्ट्रीय उद्यान) की स्थापना की गई। इसके कुछ समय पश्चात् 1936 ई. में एशिया का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान हैली राष्ट्रीय उद्यान (जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान) की स्थापना नैनीताल एवं गढ़वाल में की गई। यह वर्तमान में उत्तराखण्ड राज्य का भाग है। उत्तर प्रदेश में जैव-विविधता संरक्षण तथा राज्य के वन्य प्राणियों एवं उसके प्राकृतिक वास स्थलों के संरक्षण एवं विस्तार हेतु वन्य जीव परिरक्षण संगठन (भारत का प्रथम) की स्थापना 1956 ई. में की गई। देश में वन्य जीवों के संरक्षण की सर्वोच्च संस्था भारतीय वन्य जीव बोर्ड है। भारतीय वन्य जीव बोर्ड का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। भारत में वन्य प्राणी (सुरक्षा) अधिनियम वर्ष 1972 में पारित किया गया। 'वन तथा वन्य प्राणी' विषय समवर्ती सूची में वर्ष 1976 में 42वें संविधान संशोधन के द्वारा सम्मिलित किए गए। 1982 ई. में देहरादून में भारतीय वन्य जीव संस्थान की स्थापना की गई जिसका उद्देश्य वैज्ञानिक ढंग से व्यवसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना है। राज्य जैव विविधता बोर्ड निधि 2007-08 से, जिनका उद्देश्य जैव विविधता के संरक्षण, संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग तथा केंद्र सरकार के साथ इस क्षेत्र में सहयोग करना है। प्रदेश के सम्पूर्ण वन्य क्षेत्र का लगभग एक तिहाई भाग वन्य जीव परिरक्षण संगठन के नियन्त्रण में है। वर्तमान में प्रदेश में 11 पक्षी विहार, 15 वन्य जीव विहार, 1 राष्ट्रीय उद्यान 3 प्राणी उद्यान तथा 3 टाईगर रिजर्व है।
 
वन्य जीव संरक्षण हेतु कार्यक्रम एवं योजनाः

लुप्तप्राय प्रजातियों का प्रजनन केन्द्र- इस केन्द्र की स्थापना 1984-85 में प्रदेश के कुकरैल वन (लखनऊ) में की गई है, जिसके अन्तर्गत हिरन, ऊदबिलाव, काकेर आदि लुप्तप्राय वन्य प्राणियों की प्रजनन योजना चलाई जा रही है। 
कछुआ पुनर्वास योजना- गंगा को निर्मल एवं प्रदूषण मुक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कछुओं के प्रजनन और विकास के लिए गंगा एक्शन प्लान के अन्तर्गत भारत सरकार द्वारा पोषित यह योजना उत्तर प्रदेश में वर्ष 1986-87 से चलायी जा रही है। इस योजना के अन्तर्गत माँसाहारी कछुओं को संरक्षण प्रदान किया जाता है तथा प्रत्येक वर्ष चंबल, मैनपुरी इत्यादि जनपदों से सारनाथ स्थित कछुआ पुनर्वास केन्द्र में कछुए के अंडे लाए जाते हैं और इनके बच्चों को सुरक्षित गंगा नदी में छोड़ दिया जाता है। 

राष्ट्रीय चंबल वन्य विहार योजना- यह योजना भारत सरकार के सहयोग से चलायी जा रही है। मगरमच्छ एवं घड़ियाल के संरक्षण हेतु चंबल घाटी क्षेत्र को राष्ट्रीय चंबल वन्य जीव विहार घोषित किया गया है। इसका वानिक मुख्यालय रणथम्भौर से संचालित होता है। इसके अन्तर्गत 3 राज्यों (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान) में चम्बल के विस्तार वाले क्षेत्र आते हैं। इसकी स्थापना वर्ष 1979 में की गई। 

प्रोजेक्ट एलीफैण्ट (1992)- यह योजना पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा भारत सरकार एवं राज्य सरकार की संयुक्त सहायता से उत्तर प्रदेश एलीफैन्ट रिजर्व हेतु चलायी जा रही है। यह 744 वर्ग किमी. वन क्षेत्र में बिजनौर और सहारनपुर जनपद में विस्तृत है।

इको डेवलपमेंट प्रोग्राम- इसके अन्तर्गत प्रदेश के दुधवा टाइगर रिजर्व, चन्द्रप्रभा वन्य जीव विहार कैमूर वन्य जीव विहार, राष्ट्रीय चम्बल वन्य जीव विहार, रानीपुर वन्य जीव विहार, विजय सागर पक्षी विहार, समान पक्षी विहार सुरहाताल पक्षी विहार को शामिल किया गया है। 

टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स- इसके अन्तर्गत केन्द्र सरकार के सहयोग से 112 सदस्यीय टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स का गठन किया गया है।

राज्य पक्षी सारस संरक्षण योजना- राज्य में सारस की संख्या में हो रहे निरन्तर कमी को दूर करने हेतु इस योजना को चलाया जा रहा हैं। वर्तमान में पूरे विश्व में लगभग 8000 सारस बचे हुए है। जिनमें से 40% सारस उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं। इनमें से अधिकांश सारस बुलंदशहर, फर्रुखाबाद, मैनपुरी, इटावा, अलीगढ़, औरैया कन्नौज जनपदों में पाए जाते है।

इन्टीग्रेटेड डेवलपमेन्ट ऑफ लाइफ हैबिटेट्स- केन्द्र सरकार की सहायता से यह योजना सभी वन्य विहारों के विकास हेतु चलायी जा रही है, इसमें 2002-03 से सभी पक्षी विहारों को शामिल कर लिया गया है।
वन देवी संरक्षण योजना- उत्तर प्रदेश के मऊ में वन देवी जैव विविधता क्षेत्र का संरक्षण एवं विकास व वन देवी पार्क का जीर्णोधार हेतु यह योजना चलायी जा रही है।

 

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