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उत्तर प्रदेश की राजव्यवस्था- मंत्रिपरिषद, मुख्यमंत्री, महाधिवक्ता

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उत्तर प्रदेश राजव्यवस्था में भारत के राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल को संवैधानिक प्रमुख के रूप में नियुक्त किया जाता है। राज्यपाल प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद को पांच साल के लिए नियुक्ति करता है, जिसमें राज्य की कार्यकारी शक्तियां निहित होती हैं। जिसके चलते राज्यपाल राज्य का एक औपचारिक प्रमुख बना रहता है, जबकि मुख्यमंत्री और उनकी परिषद दिन-प्रतिदिन के सरकारी कार्यों के लिए जिम्मेदार होते हैं। आइये विस्तार से इन समस्त प्रावधानों पर नजर डालते हैं। 

राज्य की मंत्रिपरिषद

अनुच्छेद 163- राज्यपाल मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद का गठन करता है।
अनुच्छेद 164 - राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। सभी मंत्री, राज्यपाल के प्रसाद पर्यन्त अपने पद को धारण करते हैं। 

विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को राज्यपाल मुख्यमंत्री पद पर नियुक्त करते हैं। यदि विधानसभा में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है तो राज्यपाल स्वविवेक से मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है। राज्य की मंत्रीपरिषद सामूहिक रूप में राज्य विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होती है।2003 में 91वें संविधान संशोधन द्वारा राज्य मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की अधिकतम संख्या मुख्यमंत्री सहित विधानसभा की कुल सदस्य संख्या की 15% निर्धारित की गयी है। इस प्रावधान के अनुसार 403 सदस्यों वाली उत्तर प्रदेश विधानसभा में, मंत्रिपरिषद में कुल 61 सदस्य हो सकते हैं। 

मंत्री बनने की योग्यता :

राज्यपाल , मुख्यमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य मंत्री बनने के योग्य है। यदि कोई व्यक्ति सदन का सदस्य नहीं है तब भी मुख्यमंत्री उसे मंत्रिपरिषद में शामिल कर सकता है लेकिन उस व्यक्ति को 6 माह में, किसी भी सदन का सदस्य बनना होगा । ऐसा करने में असफल रहने पर उसे मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देना पड़ेगा ।

मंत्रियों द्वारा शपथ ग्रहण : पद ग्रहण से पहले मंत्रिपरिषद के सभी सदस्यों को राज्यपाल द्वारा शपथ दिलाई जाती है। सभी सदस्य दो बार शपथ लेते हैं प्रथम शपथ पद की तथा दूसरी गोपनीयता की। शपथ का प्रारूप संविधान की अनुसूची 3 में वर्णित है।

मंत्रियों की श्रेणियां:

राज्य मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की तीन श्रेणियां हैं– 
कैबिनेट मंत्री- वरिष्ठतम मंत्री, जो मंत्रिमंडल का हिस्सा होते हैं, तथा प्रमुख पोर्टफोलियो संभालते हैं।
राज्यमंत्री- मंत्रिपरिषद के सदस्य नहीं होते हैं।
उपमंत्री- कनिष्क मंत्री, जिन्हें स्वतंत्र रूप से कोई मंत्रालय नहीं दिया जाता है।

मंत्रिमंडल, मंत्री परिषद का भाग है, जो आकार में छोटा किन्तु महत्व की दृष्टि से मंत्रिपरिषद से अधिक महत्वपूर्ण होता है। शासन की नीतियों का संचालन मंत्रिपरिषद के द्वारा किया जाता है।

मंत्रिपरिषद का कार्यकाल:

मंत्रिपरिषद का कार्यकाल विधानसभा में बहुमत पर निर्भर करता है। सामान्यत पूर्ण बहुमत वाली सरकार का कार्यकाल, विधानसभा के कार्यकाल अर्थात 5 वर्ष तक हो सकता है। व्यक्तिगत रूप से किसी मंत्री का कार्यकाल, मुख्यमंत्री के विश्वास पर निर्भर करता है। मुख्यमंत्री कभी भी राज्यपाल से सिफ़ारिश कर मंत्रिपरिषद में फेर बदल कर सकता है। मंत्री परिषद सामूहिक रूप से विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होती है। यदि मंत्री परिषद के प्रति, या किसी एक मंत्री के प्रति विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है तो पूरी मंत्री परिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है। नीति संबंधी मामलों में मंत्रिपरिषद का सामूहिक उत्तरदायी होता है अर्थात कोई मंत्री अपनी ही मंत्री परिषद द्वारा पारित किसी नीति / योजना की सार्वजनिक रूप से आलोचना नहीं कर सकता है।

मुख्यमंत्री
राज्य मंत्री परिषद का प्रधान मुख्यमंत्री होता है। मुख्यमंत्री कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान होता है। संविधान के अनुच्छेद 164 के अंतर्गत मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करता है। आमतौर पर विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को राज्यपाल मुख्यमंत्री बनाने के लिए बाध्य है। यदि विधानसभा में किसी भी दल को बहुमत प्राप्त नहीं है तो राज्यपाल स्वविवेक से मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है, जिसे विधानसभा में अपना बहुमत साबित करना होता है। 

श्री गोविन्द वल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री थे, जबकि श्री योगी आदित्यनाथ जी उत्तरप्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री हैं। उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला मुख्यमंत्री श्रीमती सुचेता कृपलानी, भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री थी। भारत के किसी भी राज्य की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ( उत्तर प्रदेश की 4 बार मुख्यमंत्री बनी ) थी ।

मुख्यमंत्री बनने की अहर्ता:

  • विधान सभा या विधान परिषद का सदस्य हो या 6 माह की समयावधि में विधानमण्डल का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो ।

मुख्यमंत्री की शक्तियां 
मंत्री परिषद की नियुक्ति राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर करता है। मुख्यमंत्री मंत्रियों का एवं उनके विभागों का चयन अपने विवेकानुसार करता है। मुख्यमंत्री मंत्री परिषद और राज्यपाल के मध्य सेतु का कार्य करता है। 

अनु. 167 में वर्णित मुख्यमंत्री के कर्तव्य:

  • राज्यपाल को मंत्रिपरिषद से संबंधित सूचना देना।
  • राज्यपाल द्वारा ऐसी सूचना मांगने पर सूचना उपलब्ध कराना।
  • मुख्यमंत्री, विधान सभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता होता है। वह राज्यपाल को विधानसभा को भंग करने का परामर्श दे सकता है।
  • मुख्यमंत्री मंत्रीमंडल की बैठक की अध्यक्षता करता है। उसकी अनुपस्थिति में वरिष्ठतम मंत्री मंत्रीमण्डल की अध्यक्षता करेगा ।
  • शासन के सभी विभागों के मध्य समन्वय स्थापित करने का कार्य मुख्यमंत्री करता है। 

राज्य का महाधिवक्ता
महाअधिवक्ता राज्य का प्रथम विधिक सलाहकार होता है। जिसकी नियुक्ति राज्यपाल द्वारा,मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाती है। (अनु. 165)

महाधिवक्ता बनने के लिए अहर्ता

व्यक्ति उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने की योग्यता रखता हो अर्थात जो भारत का नागरिक हो । 10 वर्षों तक उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में कार्य कर चुका हो। 

कार्यकाल:

महाधिवक्ता, राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त अपना पद धारण करता है। यानि उसका कार्यकाल निश्चित नहीं होता है। 
महाधिवक्ता, राज्यपाल द्वारा निर्धारित मानदेय प्राप्त करता है। 

कार्य: 

  • महाधिवक्ता का प्रमुख कार्य विधि मामलों में राज्य सरकार को परामर्श देना है।
  • समय समय पर राज्यपाल उसे क़ानूनी कार्य सौंप सकते हैं।
  • महाधिवक्ता राज्य के किसी भी न्यायालय में, सरकार का पक्ष रखता है।
  • अनुच्छेद 177 के अनुसार - महाधिवक्ता राज्य विधान मण्डल की कार्यवाहियों में भाग लेने और बोलने का अधिकार रखता है किन्तु उसे सदन में मतदान का अधिकार नहीं होता है क्योंकि वो सदन का सदस्य नहीं है।

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